SIR Issue : जस्टिस बागची ने सुनवाई के दौरान इस बात पर जोर दिया कि नागरिकता का मुद्दा चुनाव आयोग तय कर सकता है? उसका काम है कि वह यह देखे कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं?
SIR Issue : सुप्रीम कोर्ट में बिहार समेत कई राज्यों में चल रही विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर एक याचिका दायर करके बताया कि चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन कर रहा है. इस मामलें शीर्ष अदालत ने सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या इलेक्शन कमीशन किसी संदिग्ध नागरिक के मामले में जांच कर रहा है. इसके अलावा क्या जांच प्रक्रिया उसकी संवैधानिक शक्ति के दायरे से बाहर है. ये टिप्पणियां चीफ जस्टिस सूर्यकांत (Suryakant) और जस्टिस जॉयमाल्य बागची (Joymalya Bagchi) की बेंच ने कई राज्यों में चल रही SIR करने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई के दौरान की.
नागरिक मुद्दा तय नहीं कर सकता EC
जस्टिस बागची ने सुनवाई के दौरान इस बात पर जोर दिया कि नागरिकता का मुद्दा चुनाव आयोग तय कर सकता है? उसका काम है कि वह यह देखें कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं, 18 साल उम्र और किसी निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से रहता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि नागरिकता का मुद्दा इलेक्शन कमीशन तय नहीं कर सकता है क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त विदेशियों का ट्रिब्यूनल ही यह फैसला कर सकता है. आपने कहा कि चुनाव आयोग के पास किसी व्यक्ति को विदेशी या गैर-नागरिक घोषित करने की शक्ति नहीं है. लेकिन शक के दायरे में आने के बाद इस मामले की जांच करने के लिए अधिकारियों के पास भेज सकता है.
तीन शर्तों पर होता वोटर तय
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि रिवीजन प्रक्रिया में अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन, प्रक्रिया की अनियमतता और नागरिक साबित करने का बोझ आम वोटर्स पर गैर-संवैधानिक तरीके से डालना शामिल है. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील शादान फरासत ने चुनावी सूचियों को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक और वैधानिक ढांचे का पता लगाया और कहा कि आर्टिकल 324 से 329, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) के साथ मिलकर एकल संवैधानिक संहिता बनाते हैं. उन्होंने कहा कि आर्टिकल 326 के अनुसार एक नागरिक को केवल तीन शर्तों को पूरा करना होता है, जिसमें भारतीय नागरिकता, 18 वर्ष की आयु प्राप्त और कुछ खास अयोग्यताओं का न होना. लेकिन चुनावी लिस्ट बाहर करने के लिए नए आधार को नहीं बनाया जा सकता है. वकील ने कहा कि चुनाव आयोग को एक नागरिक को लिस्ट बाहर निकालने का कोई आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर EC को मेरी नागरिकता पर शकत है तो वह जांच के लइए सिर्फ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास भेजी जानी चाहिए. इसके अलावा केंद्र और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ही कर सकता है.
स्वतंत्र फैसले की होती है जरूरत
उन्होंने कहा कि कानूनी योजना के तहत पहली बार शामिल होने के लिए नागरिकता कोई शर्त नहीं है और गैर-नागरिकता साबित करने का बोझ हमेशा राज्य पर होता है. उन्होंने आगे कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति लिस्ट में शामिल हो जाता है तो उसकी स्थिति को मजबूत अनुमानित मूल्य मिलता है और हटाने के लिए चुनावी अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से, स्वतंत्र फैसले की जरूरत होती है. इस पर पीठ ने पूछा कि फैसले और जांच में अंतर होता है? क्या ECI संदिग्ध नागरिकों के मामले में जांच कर सकता है?
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