कोटा सुसाइड केस पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को लताड़ लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कई सवाल भी पूछे हैं और दो टूक कहा है कि वो जल्द ही कोई बड़ा निर्णय ले.
Supreme Court on Kota Suicide Cases: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार, 23 मई 2025 को कोटा आत्महत्या मामलों पर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आड़े हाथों लिया और लताड़ भी लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कोटा शहर में स्टूडेंट्स के बढ़ते सुसाइड केसों पर नाराजगी जताई और बढ़ रहे मामलों को गंभीर बताया. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इस मामले में राजस्थान सरकार से सख्त लहजे में पूछा कि आखिर आप कर क्या रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस साल कोटा से अबतक 14 आत्महत्याओं के मामले सामने आ चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में सरकार से सवाल किया कि आखिर कोटा से ही छात्रों की आत्महत्या के मामले क्यों सामने आ रहे हैं और सरकार ने इस गंभीर स्थिति पर क्या कदम उठाया है. इस दौरान टॉप कोर्ट ने 24 मार्च के अपने फैसले का भी हवाला दे दिया जिसके मुताबिक स्टूडेंट्स की मेंटल प्रॉब्लम और हेल्थ रिलेटेड प्रॉब्लम्स को दूर करने के संबंध में राष्ट्रीय कार्य बल का गठन हुआ था.
दी ‘सुप्रीम वॉर्निंग’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार इस गंभीर मामले को हल्के में न ले क्योंकि जरुरत पड़ने पर अदालत सख्त रुख भी अख्तियार कर सकती है. अहम ये है कि अदालत ने IIT खड़गपुर के एक मामले का भी इस दौरान जिक्र किया. दरअसल, IIT खड़गपुर में एक स्टूडेंट ने सुसाइड कर ली थी और उसके चार दिन बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
क्या बोले जस्टिस पारदीवाला?
राजस्थान सरकार की ओर से पेश हुए वकील से जेबी पारदीवाला ने कई सवाल किए. जेबी पारदीवाला ने पूछा, ”बतौर राज्य आप क्या कर रहे हैं, बच्चे लगातार सुसाइड क्यों कर रहे हैं और ये सब सिर्फ और सिर्फ कोटा में ही क्यों हो रहा है? बतौर राज्य आपने इस मुद्दे पर सोच-विचार क्यों नहीं किया.?” अहम ये है कि इससे पहले राजस्थान के कोटा में सुसाइड केस रोकने के लिए प्रशासन ने कई अहम कदम भी उठाए थे जिसमें पंखों में स्प्रिंग लगाना भी शामिल था. प्रशासन ने एक्सपर्ट्स से स्टूडेंट्स की काउंसलिंग भी कराई थी ताकि मुश्किल हालातों में वो जीवन को खत्म करने का चुनाव बिल्कुल भी न करें. कोटा से सामने आ रहे आत्महत्या के मामलों ने देशभर को सोचने पर मजबूर कर दिया है और मां-बाप के सामने भी बड़ी चुनौती मौजूदा समय में खड़ी हो गई है.
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