Udham Singh Martyrdom Day: 31 जुलाई का दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतीक है जिसमें एक युवा ने अपने देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. शहीद ऊधम सिंह का बलिदान आज भी भारतवासियों के हृदय में देशभक्ति की लौ जलाता है.
Udham Singh Martyrdom Day: 31 जुलाई 1940 को शहीद ऊधम सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत को उनके सबसे क्रूर अपराध का हिसाब चुकाया. यह वही दिन था जब उन्हें जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर के सहयोगी माइकल ओ’डायर की हत्या के बदले फांसी दी गई. उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अध्याय है जो साहस, प्रतिशोध और देशभक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है.
जलियांवाला बाग की चिंगारी बनी संघर्ष की मशाल
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर अंग्रेजों ने गोलीबारी की थी, जिसमें सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए थे. इस नृशंस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन एक युवा ऊधम सिंह के दिल में यह घटना बदले की आग बनकर जलने लगी. उन्होंने यह प्रण ले लिया कि वे इस अन्याय का न्याय जरूर करेंगे.

लंदन की अदालत और मौत की सजा
1940 में ऊधम सिंह ने लंदन में पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर की गोली मारकर हत्या कर दी. यह वही व्यक्ति था जिसने जनरल डायर के अमानवीय कृत्य का समर्थन किया था. गिरफ्तारी के बाद ऊधम सिंह ने अदालत में अपने अपराध को स्वीकार करते हुए गर्व से कहा, “मैंने यह भारत के लोगों के लिए किया है.” 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई.
शहादत जो बन गई प्रेरणा का स्रोत
ऊधम सिंह की शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गई. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि अन्याय का अंत संभव है, बशर्ते इरादा मजबूत हो. उनकी कुर्बानी ने आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाया कि स्वतंत्रता केवल मांगने से नहीं मिलती, उसके लिए लड़ना पड़ता है.
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