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क्या होता है न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत में अंतर? यहां जाने पूरी डिटेल

by Live Times
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What is the difference between judicial custody and police custody? Know complete details here

Judicial Custody And Police Custody News : न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत में बारीक अंतर होता है. कई दफा लोग इसको समझ नहीं पाते हैं, जिसके कारण दुविधा में पड़ जाते हैं.

1 April, 2024

Judicial Custody And Police Custody News : आपराधिक मामलों में आपने पुलिस हिरासत (Police Custody) और न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) जैसे शब्दों का नाम अकसर सुना होगा. कानून के इस शब्द को हम सुनते रहते हैं. समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें इस अंतर की जानकारी नहीं होती है. पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी में रखने का खास मकसद होता है. किसी आरोपी को न्यायिक या फिर पुलिस हिरासत में इसलिए रखा जाता है, ताकि वह बाहर रहकर किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सके और गवाहों को प्रभावित न कर सकें. इस स्टोरी में आपको पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के बीच अंतर के बारे में बता रहे हैं.

ज्यूडिशियल कस्टडी (न्यायिक हिरासत)

ज्यूडिशियल कस्टडी के दौरान किसी भी शख्स को आरोपों के बाद मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाता है, वहां पर मजिस्ट्रेट तय करता है कि उस शख्स को पुलिस हिरासत में भेजना है या न्यायिक हिरासत में. इसके अलावा जो आरोपी कोर्ट में सरेंडर करता है, उन्हें भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है. ज्यूडिशियल कस्टडी के दौरान आरोपी को जेल में रखा जाता है और पुलिस या जांच एजेंसी को पूछताछ के लिए अदालत से परमिशन लेनी पड़ती है, उसकी इजाजत के बिना कोई भी आरोपी से पूछताछ नहीं कर सकता है. न्यायिक हिरास में किसी आरोपी को तब तक जेल में रहना पड़ता है जब तक उसे जमानत न मिल जाए. बता दें कि न्यायिक हिरासत में रहने वाले शख्स की सुरक्षा सीधे कोर्ट के अधीन आती है.

पुलिस हिरासत (पुलिस कस्टडी)

पुलिस हिरासत में लिए गए आरोपी को थाने में बनाए गए लॉकअप में रखा जाता है. इस दौरान पुलिस आरोपी से पूछताछ कर सकती है और उन्हें इस बारे में मजिस्ट्रेट से आज्ञा लेने की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन पुलिस कस्टडी के बाद 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता है. इसके बाद ही मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में भेजने का फैसला लेते हैं. वहीं, पुलिस कस्टडी में आरोपी की सुरक्षा पुलिस के अधीन ही आती है. लूट, चोरी और हत्या समेत कई मामलों में आरोपी को पुलिस कस्टडी में रखा जा सकता है.

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