Court Decision: दिल्ली पुलिस का अमानवीय चेहरा एक बार फिर सामने आया है. कोर्ट के निर्देश पर पुलिस अब पांच साल पहले हुई एक युवक की संदिग्ध मौत की FIR दर्ज करेगी.
Court Decision: दिल्ली पुलिस का अमानवीय चेहरा एक बार फिर सामने आया है. कोर्ट के निर्देश पर पुलिस अब पांच साल पहले हुई एक युवक की संदिग्ध मौत की FIR दर्ज करेगी. यह मामला 23 वर्षीय ऑटो रिक्शा चालक विवेक कुमार की मौत से जुड़ा है, जिसका शव 5 नवंबर 2020 को दिल्ली जल बोर्ड के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट कोंडली में मिला था. विवेक के पिता ने अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि न्यू अशोक नगर पुलिस ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि उन्होंने उस संदिग्ध व्यक्ति का नाम भी बताया था, जिसके साथ विवेक को आखिरी बार देखा गया था. इसके अलावा 1 नवंबर 2020 के सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट रूप से दिख रहा था कि कुछ लोग विवेक को पीट रहे थे, फिर भी पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट मयंक गोयल ने 18 सितंबर को दिए आदेश में दिल्ली पुलिस की पूर्ण विफलता पर गंभीर टिप्पणी की.
पुलिस को संवेदनशील बनने की सलाह
अदालत ने कहा कि प्रक्रियात्मक नियमों के जाल में पीड़ित को उलझा दिया गया, जिससे आरोपी अब तक बच निकले हैं. कोर्ट ने पुलिस को ऐसे मामलों में अधिक संवेदनशील होने की सख्त हिदायत दी और कहा कि महिलाओं, बच्चों और हाशिए पर खड़े समूहों के खिलाफ अपराधों को लेकर संवेदनशीलता दिखाना समय की मांग है. अब अदालत के आदेश के बाद पुलिस को विवेक की मौत की एफआईआर दर्ज करनी होगी. यह मामला कानून व्यवस्था और पीड़ितों के साथ न्याय में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाता है. आदेश में आगे कहा गया कि हालांकि अंतिम लक्ष्य सबसे वांछनीय है, लेकिन यह यात्रा हमेशा सुखद नहीं होती है और कई बार पीड़ित खुद को असंवेदनशील हितधारकों से भरी व्यवस्था के खिलाफ खड़ा पाते हैं. कई बार पीड़ित खुद को कानूनों की प्रक्रियागत पेचीदगियों के साथ संघर्ष में पाते हैं. अदालत ने कहा कि यह पूरी व्यवस्था के लिए हमेशा पूर्ण विफलता का मामला रहा है जब हत्या जैसे जघन्य अपराधों के आरोपी आज़ाद घूमने में कामयाब हो जाते हैं.
अगली सुनवाई 25 सितंबर को
अदालत ने वर्तमान मामले को ऐसा ही एक उदाहरण पाया. पाया गया कि पुलिस अधिकारियों ने मामले की जांच के लिए कोई एफआईआर दर्ज नहीं की थी. इसके बजाय सभी जांच अधिकारियों (आईओ) ने पूर्व-निर्धारित धारणा के साथ रिपोर्ट लगाई की कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. अदालत ने कहा कि हत्या का एक संज्ञेय अपराध किया गया है और संबंधित स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) को कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करने और एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है. अदालत ने आदेश की एक प्रति संबंधित डीसीपी को भेजने का निर्देश दिया ताकि सभी संबंधित सहायक पुलिस आयुक्तों और एसएचओ को मानव जीवन की हानि के मामलों में एफआईआर दर्ज करने के बारे में जागरूक किया जा सके. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर के लिए निर्धारित की है.
ये भी पढ़ेंः घर खरीदारों से ठगी: मुंबई, बेंगलुरु समेत 5 शहरों में रियल एस्टेट घोटालों की जांच तेज, CBI को मिली हरी झंडी
