पिता-पुत्र की जोड़ी दिल्ली से पटियाला जा रही थी, जहां कर्नल तैनात थे और कथित घटना के समय भोजन के लिए हरबंस ढाबा पर रुके थे.
New Delhi: सीबीआई ने पंजाब पुलिस कर्मियों द्वारा एक कर्नल पर कथित हमले की जांच अपने हाथ में ले ली है और दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की है. कर्नल और बेटे के साथ मारपीट की घटना 13 और 14 मार्च की रात को पंजाब के पटियाला में एक सड़क किनारे ढाबे पर हुई थी. सीबीआई ने इस महीने की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश पर सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन, पटियाला द्वारा दर्ज दोनों एफआईआर को अपने अलग-अलग मामलों के रूप में फिर से दर्ज किया है. उन्होंने कहा कि एजेंसी ने अपनी विशेष अपराध इकाई को जांच का काम सौंपा है. कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ और उनके बेटे पटियाला में सड़क किनारे एक ढाबे पर खाना खा रहे थे, जब सात से आठ लोगों के एक समूह ने कार की पार्किंग से संबंधित विवाद को लेकर कथित तौर पर उनकी पिटाई कर दी.
भोजन के लिए हरबंस ढाबा पर रुके थे कर्नल
पिता-पुत्र की जोड़ी दिल्ली से पटियाला जा रही थी, जहां कर्नल तैनात थे और कथित घटना के समय भोजन के लिए हरबंस ढाबा पर रुके थे. पीड़ित द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में ये आरोप लगाया गया था. पीड़ितों ने यह भी दावा किया कि हमलावर पंजाब पुलिस के चार इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी और उनके सशस्त्र अधीनस्थों ने बिना किसी उकसावे के उन पर और उनके बेटे पर हमला किया. सीबीआई द्वारा दर्ज की गई दूसरी एफआईआर में भोजनालय के मालिक ने आरोप लगाया कि एक कार में सवार लोगों ने अपनी गाड़ी सड़क के बीच में खड़ी कर दी थी, जहां वे शराब पी रहे थे, तभी उनके और कुछ राहगीरों तथा एक अज्ञात कार में सवार लोगों के बीच मामूली झड़प हुई. कर्नल बाथ की याचिका पर उच्च न्यायालय ने 3 अप्रैल को हमले की जांच चंडीगढ़ पुलिस को सौंप दी थी और उसे चार महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया था.
पीड़ित की याचिका पर सीबीआई को मिली जांच
कर्नल की एक नई याचिका पर कार्रवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजेश भारद्वाज ने जांच सीबीआई को सौंप दी और चंडीगढ़ पुलिस को मामले का पूरा रिकॉर्ड एजेंसी को सौंपने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति राजेश भारद्वाज ने कहा कि शिकायतकर्ता (पीड़ित) दर-दर भटकता रहा, लेकिन उसके कहने पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई. हालांकि, घटना के आठ दिन बाद यानी 22 मार्च, 2025 को प्राथमिकी दर्ज की गई. मामले में आरोपियों की पहचान पुलिस अधिकारियों के रूप में हुई. इस प्रकार शिकायतकर्ता ने निष्पक्ष जांच न होने की आशंका के चलते पहले सीआरएम-एम-16421-2025 दायर करके जांच को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा कि अदालत ने निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए पंजाब के बाहर चंडीगढ़ पुलिस को जांच सौंपी थी, लेकिन अदालत ने स्थिति में कोई बदलाव नहीं पाया.
कोर्ट ने पुलिस की जांच पर उठाया सवाल
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जांच पूरी किए बिना, जब जांच एजेंसी ने पहले ही धारा 109 बीएनएस (धारा 307 आईपीसी) के तहत अपराध को हटा दिया है, तो जांच एजेंसी का दृष्टिकोण काफी स्पष्ट है. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी न केवल जांच में खामियां पैदा करने की कोशिश कर रही है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए जांच में गड्ढे बनाने की भी कोशिश कर रही है कि एक बार आरोप पत्र अदालत में दायर हो जाने के बाद अभियोजन पक्ष का मामला अदालत में मुश्किल से ही रेंग सके. अदालत ने सीबीआई को जांच सौंपते हुए कहा था कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को स्थापित कानून की कसौटी पर परखते हुए, अदालत यह पाती है कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की जांच एजेंसी द्वारा इस मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की कोई संभावना नहीं है. अदालत ने कहा कि जहां तक जांच में प्रगति का सवाल है, जांच जारी है, यह कहने के अलावा, अदालत को यह विश्वास दिलाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से की जा रही है. मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपी जाती है.
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