Introduction
Facts of Lakshmi Puja On Diwali: दीवाली को दूसरे शब्दों में अमावस्या का त्योहार भी कहा जाता है. दीवाली को भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व माना जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर रात में ही क्यों मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिषीय कारण हैं. अन्य त्योहारों में आप सुबह या शाम कभी भी पूजा कर सकते हैं, लेकिन मां लक्ष्मी की पूजा दीवाली के दिन रात में ही की जाती है तब ही इसे शुभ माना जाता है.
Table of Content
- रात्रि का समय माता लक्ष्मी को है प्रिय
- समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं मां लक्ष्मी
- क्या होता है प्रदोष काल?
- मां लक्ष्मी को पसंद है स्वच्छता
- अयोध्या वापस लौटे थे भगवान श्रीराम
- रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान
- पश्चिम बंगाल में होती है काली पूजा
- तंत्र-मंत्र की साधना करते हैं तांत्रिक
- क्यों की जाती है तंत्र-मंत्र की साधना ?
- क्या कहते हैं ज्योतिष पंडित?
- कैसे होती है मां लक्ष्मी की पूजा
रात्रि का समय माता लक्ष्मी को है प्रिय
शास्त्रों के अनुसार, लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में यानी की सूर्यास्त के तुरंत बाद किया जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार रात्रि का समय माता लक्ष्मी के लिए प्रिय होता है. दीवाली के दिन अमावस्या होती है, इस दिन आसमान में चांद भी दिखाई नहीं देता है, चारों तरफ अंधकार होता है. ऐसे में घरों में दीप जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है. माता लक्ष्मी को ज्योति का प्रतीक माना जाता है. दीवाली के दिन दीप जलाकर यह संदेश देतें हैं कि अज्ञानता को दूर कर अपने जीवन में ज्योति को लाते हैं.
समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं मां लक्ष्मी
ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान ही मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और तब से ही उनका पूजन दीवाली के दिन किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन की घटना भी रात में ही हुई थी और यह भी एक कारण है कि लक्ष्मी पूजन रात के समय करना शुभ माना जाता है. ऐसे मान्यता है कि रात के समय ही मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और केवल उन्हीं घरों में जाती हैं, जो स्वच्छ और प्रकाशमय होते हैं.
क्या होता है प्रदोष काल?
ज्योतिष शास्त्र की अगर बात करें तो लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त अमावस्या के बाद का ही होता है, जिसे की प्रदोष काल कहा जाता है. सूर्यास्त से लेकर लगभग तीन घंटे तक के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. ज्योतिष के अनुसार, प्रदोष काल को अत्यधिक शुभ माना जाता है. इसकी वजह यह भी है कि इस समय तामसिक शक्तियों के नाश का और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह का समय होता है. रात के समय मंत्रोच्चारण और दीप प्रज्वलन करने से घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य का वास होता है.
मां लक्ष्मी को पसंद है स्वच्छता
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां लक्ष्मी को सफाई और स्वच्छता बहुत पसंद है. यहीं वजह है कि दीवाली के दिन घरों की साफ-सफाई कर उसे सजाया जाता है. रात्रि के समय जब हम अपने घरों को दीपों से सजा देते हैं तो यह संकेत होता है कि हम अपने घरों में लक्ष्मी जी का स्वागत कर रहे हैं. दीवाली के दिन दीप जलाने का महत्व इसलिए भी है कि क्योंकि कहते हैं कि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है.
अयोध्या वापस लौटे थे भगवान श्रीराम
रामायण के मुताबिक, भगवान श्रीराम जब लंकापति रावण का वध करके माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे तो इस खुशी में पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजा दिया गया था. ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम जब वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो उनके आगमन पर दीवाली मनाई जाती है. उस दिन हर घर में दीप जलाए गए थे और तब से ही दीवाली का त्योहार मनाया जा रहा है. दीवाली को अंधकार पर विजय का पर्व भी कहा जाता है.
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रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान
एक मान्यता यह भी है कि माता पार्वती ने राक्षस का वध करने के लिए जब महाकाली का रूप धारण किया था. राक्षस का वध करने के बाद उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था तो महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे और जैसे ही भगवान शिव का स्पर्श हुआ महाकाली का क्रोध शांत हो गया था. कहते हैं कि इसी की याद में उनके शांत रूप मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, इस दिन इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है.
पश्चिम बंगाल में होती है काली पूजा
देश के अधिकतर राज्यों में दीवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम जैसे राज्यों में इस दिन मां काली की विशेष पूजा होती है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन मां काली 64,000 यागिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और इसलिए यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है.
तंत्र-मंत्र की साधना करते हैं तांत्रिक
एक तरफ जहां लोग अपने घरों में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ इस दिन तांत्रिक लोग शमशान घाट पर जाकर तंत्र-मंत्र की साधना में लीन रहते हैं. तंत्र विद्या सीखने वाले लोगों को इस दिन का
बेसब्री से इंतजार होता है.
क्यों की जाती है तंत्र-मंत्र की साधना ?
तांत्रिक विद्या को काला जादू के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन तांत्रिक रात में तंत्र-मंत्र की साधना करते हैं . अक्सर आपने फिल्मों या फिर लोगों से सुना होगा कि विद्या की सिद्धि दीवाली, गुप्त नवरात्रि या किसी शुभ मुहूर्त की रात्रि में किया जाता है. तंत्र विद्या का इस्तेमाल किसी कार्य में जल्दी सफलता पाने या किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है.
क्या कहते हैं ज्योतिष पंडित ?
अयोध्या के ज्योतिष पंडितों की मानें तो कार्तिक अमावस्या की रात्रि में तांत्रिक तंत्र-मंत्र की सिद्धि पाने के लिए शमशान घाट जाते हैं और अपनी पूजा करते हैं. इस दिन लोग शत्रुओं पर विजय पाने, गृह शांति और अपनी मन चाही इच्छा को पूर्ण करने के लिए कई तरह के टोने टोटके करते हैं. ज्योतिष पंडितों का कहना है कि तंत्र-मंत्र और टोटके की सिद्धि करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सदैव उन्हीं मंत्रो का आश्रय लें जो कल्याणकारी और हितकारी हो. किसी को क्षति पहुंचाने के लिए किए गए टोटके और मंत्र सिद्ध तो हो जाते हैं, लेकिन यह हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी के समस्त सुख को नष्ट कर देती है.
कैसे होती है मां लक्ष्मी की पूजा
लक्ष्मी पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी पूजा की जाती है. दीप, फूल, फल, मिठाई, और चावल अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद मंत्रोच्चारण किया जाता है और फिर आरती के बाद घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाएं जाते हैं न केवल घर के द्वार पर बल्कि पूरे घर को दीप से सजा दिया जाता है ताकि लक्ष्मी जी का घर में प्रवेश हो सके. लक्ष्मी जी की पूजा केवल धन की कामना के लिए नहीं बल्कि घर-परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति के लिए भी की जाती है.
Conclusion
वैसे तो अमावस्या का दिन तामसिक प्रवृत्तियों का समय होता है, लेकिन दीवाली पर लक्ष्मी जी की कृपा से यह समय शुभ और मंगलमय बन जाता है. यही कारण है कि इस दिन की रात को की गई लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है. कहते है कि इस दिन की गई पूजा का असर पूरे साल घर में रहता है हमारे घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है. दीवाली के दिन की पूजा का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि यह हमारे जीवन में अज्ञानता और अंधकार को मिटाकर ज्योति, ज्ञान और समृद्धि का स्वागत करने का अवसर भी है.
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