Home Latest News & Updates 63 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब प्रयागराज के ‘मानसरोवर’ सिनेमा हाल पर मालिक का कब्जा

63 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब प्रयागराज के ‘मानसरोवर’ सिनेमा हाल पर मालिक का कब्जा

by Sanjay Kumar Srivastava
0 comment
Supreme Court

मुरलीधर अग्रवाल के कानूनी उत्तराधिकारी अतुल कुमार अग्रवाल ने केस जीत लिया और परिणामस्वरूप किरायेदार स्वर्गीय महेंद्र प्रताप काकन के कानूनी उत्तराधिकारियों को अब सिनेमा हॉल का कब्जा सौंपना होगा.

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रयागराज में “मानसरोवर पैलेस” सिनेमा हॉल का कब्ज़ा असली मालिक के परिजनों को सौंपने का आदेश देकर 63 साल पुराना किराएदारी विवाद खत्म कर दिया. न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “हम सिनेमा हॉल से संबंधित लंबे समय से चल रहे मुकदमे पर आखिरकार पर्दा डालते हैं.

किराएदार को सिनेमा हाल सौंपने के लिए 31 दिसंबर 2025 तक का दिया समय

अपील स्वीकार करते हुए कहा कि 1999 के रिट में 9 जनवरी 2013 को उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश को रद्द किया जाता है. अदालत ने कहा है कि 31 दिसंबर 2025 तक किराएदार सिनेमा हाल को मालिक को सौंप दे. यह “प्रतिवादियों द्वारा सामान्य वचनबद्धता दाखिल करने और फैसले की तारीख से चार सप्ताह के भीतर किराया/उपयोग और कब्जे के शुल्क के सभी बकाया, यदि कोई हो, को चुकाने के अधीन होगा. कानूनी झगड़े में मुकदमेबाजी के दो दौर हुए और अंत में स्वर्गीय मुरलीधर अग्रवाल के कानूनी उत्तराधिकारी अतुल कुमार अग्रवाल ने केस जीत लिया और परिणामस्वरूप किरायेदार स्वर्गीय महेंद्र प्रताप काकन के कानूनी उत्तराधिकारियों को अब सिनेमा हॉल का कब्जा सौंपना होगा.

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2013 के एक फैसले को खारिज कर दिया, जिसने मालिक के परिवार की बेदखली याचिका को खारिज कर दिया था और एक अपीलीय प्राधिकारी के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें किरायेदार को सिनेमा हॉल का कब्जा जारी रखने की अनुमति दी गई थी. विवाद 1952 के एक पट्टा समझौते से उपजा है, जिसके तहत स्वर्गीय राम आज्ञा सिंह द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए किरायेदार ने सिनेमा परिसर पर कब्जा कर लिया था. उत्तर प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 1947 के तहत पहले की मुकदमेबाजी किराएदार के पक्ष में समाप्त हो गई, लेकिन नए 1972 किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत 1975 में बेदखली के लिए एक नया आवेदन दायर किया गया.

निर्धारित प्राधिकारी ने शुरू में वास्तविक व्यक्तिगत आवश्यकता का हवाला देते हुए बेदखली की अनुमति दी. हालांकि इसे अपील पर उलट दिया गया, जिससे उच्च न्यायालय और अंततः सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती मिली. दूसरे दौर में मालिकों की दलील को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने 24-पृष्ठ का फैसला लिखते हुए इस बात पर जोर दिया कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता को “उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए.

फैसले में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि सिनेमा परिसर मकान मालिक के परिवार, विशेष रूप से मुरलीधर के विकलांग बेटे अतुल कुमार के भरण-पोषण के लिए आवश्यक था, जिसके पास आजीविका का कोई स्वतंत्र साधन नहीं था. शीर्ष अदालत ने किराएदार की इस दलील को खारिज कर दिया कि मकान मालिक का परिवार अन्य व्यवसायों में शामिल था या उसके पास पर्याप्त आय थी. फैसले में कहा गया कि दावे निराधार थे और वास्तविक आवश्यकता साबित करने की कानूनी आवश्यकता के लिए अप्रासंगिक थे.

ये भी पढ़ेंः पहलगाम में नीरज उधवानी की मौज-मस्ती की यात्रा साबित हुई आखिरी, दुबई से आया था दोस्त की शादी में

You may also like

LT logo

Feature Posts

Newsletter

@2025 Live Time. All Rights Reserved.

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?