Home राजनीति वोटिंग के बाद क्यों लगाई जाती है नीले रंग की स्याही, किसने की थी इसकी शुरुआत

वोटिंग के बाद क्यों लगाई जाती है नीले रंग की स्याही, किसने की थी इसकी शुरुआत

by Rashmi Rani
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blue ink applied after voting

Lok Sabha Election 2024: नीले रंग कि स्याही आपकी अंगुली पर इसलिए लगाई जाती है ताकि आपके नाम पर कोई और व्यक्ति वोट न डाल सके.

07 April, 2024

Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहा है. जिसकी धूम आपको नजर भी आने लग गई होगी. कांग्रस से लेकर बीजेपी सभी जनसभा को संबोधित कर रहें हैं. 19 अप्रैल को देश में पहले चरण का चुनाव होगा और आप में से कई लोग वोट डालने जाएंगे. जब आप वोट डाल देते हैं तो आपकी अंगुली पर नीले रंग की स्याही लगाई जाती है. क्या आपने कभी सोचा है कि अंगुली पर ये नीले रंग की स्याही क्यों लगायी जाती है और ये स्याही जल्दी मिटती क्यों नहीं है. यहां आपके सारे सवालों का जवाब हम देंगे.

सुकुमार सेन ने की थी शुरुआत

देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इसकी शुरुआत की थी. चुनाव में नीले रंग कि स्याही का इस्तेमाल करने का श्रेय उन्हीं को जाता है. नीले रंग कि स्याही आपकी अंगुली पर इसलिए लगाई जाती है ताकि आपके नाम पर कोई और व्यक्ति वोट न डाल सके. इसके अलावा यह इसलिए भी किया जाता है कि कोई भी वोटर्स इस स्याही की वजह से एक ही चुनाव में एक से ज्यादा बार मतदान न कर सकें. ये स्याही आपकी बाईं हाथ की अंगुली पर लगाई जाती है. जिसका कारण यह है कि ज्यादातर लोग दाहिने हाथ से काम करते हैं तो अगर दाहिने हाथ में लगाई गई तो खाने पीने के दौरान स्याही में जो केमिकल होता है वह भोजन नली या मूंह में जा सकता है जो काफी हानिकारक होगा.

केवल मतदाताओं के लिए ही जाता है बनाया

यह स्याही कोई आम स्याही नहीं होती है. इसे मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड नाम की कंपनी बनाती है. इसे केवल मतदाताओं के लिए ही बनाया जाता है. सिल्वर नाइट्रेट केमिकल से इसे बनाया जाता है. यह केमिकल पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और इतना पक्का हो जाता है कि मिटता ही नहीं है. जिसकी वजह यह है कि सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है जो कि पानी में घुल नहीं सकता है. नीले रंग की स्याही कम से कम 72 घंटे तक आपकी त्वचा पर रहती है.

1962 पहली बार किया गया था इस्तेमाल

नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल पहली बार 1962 में किया गया था तब से ही देश में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने नीले रंग की स्याही का शुरुआत की थी.आपके बता दें कि इस स्याही को केवल सरकार या चुनाव से जुडी एजेंसियां ही खरीद सकती हैं और कोई भी इसे नहीं खरीद सकता है. केवल भारत ही नहीं बल्कि कई अन्य देश भी भारत से नीली स्याही को खरीदते हैं. हालांकि MVPL इसके अलावा भी बहुत सारे पेंट बनाती है.

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