Real Kolhapuri slippers: कोल्हापुरी चप्पलें केवल एक फुटवियर नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं. ऐसे में जरूरी है कि जब आप इनका चुनाव करें तो असली और नकली के बीच फर्क करना जानें.
Real Kolhapuri slippers: कोल्हापुरी चप्पलें केवल एक पारंपरिक पहनावा नहीं, बल्कि भारतीय शिल्प और सांस्कृतिक धरोहर की जीती-जागती मिसाल हैं. हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय फैशन शो में इन चप्पलों की झलक दिखाकर विदेशी ब्रांड प्राडा ने इन्हें फिर से सुर्खियों में ला दिया है. जहां एक ओर यह भारत के पारंपरिक डिजाइन की वैश्विक पहचान को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को भी समझना जरूरी हो गया है. आइए जानते हैं कि असली कोल्हापुरी चप्पलें कहां बनती हैं, कैसे बनाई जाती हैं और नकली से उनकी पहचान कैसे की जा सकती है.
क्या है कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास?
कोल्हापुरी चप्पलों की शुरुआत 12वीं सदी से मानी जाती है. चमड़े से बनी ये चप्पलें विशेष डिजाइन और टिकाऊपन के लिए जानी जाती हैं. इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें बनाने में आज भी पारंपरिक और प्राकृतिक तरीकों का ही प्रयोग होता है. शाहू महाराज के शासनकाल में इन चप्पलों को एक विशिष्ट पहचान मिली, कहा जाता है कि वे स्वयं इन्हें पहनते थे और तभी से ये महाराष्ट्र की संस्कृति में गहराई से जुड़ गईं.

कहां और कैसे बनती हैं कोल्हापुरी चप्पलें?
कोल्हापुर, महाराष्ट्र इन चप्पलों की जन्मभूमि है. यहां इन्हें ‘कोल्हापुरी पायताण’ कहा जाता है. इन्हें भैंस की खाल से बनाया जाता है, जिसे बबूल की छाल, चूना और अन्य प्राकृतिक चीज़ों की मदद से तैयार किया जाता है. इसके बाद चमड़े को मनचाहे आकार में काटा जाता है और हाथ से सूती या नायलॉन धागे से सिलाई की जाती है. इस पर पारंपरिक डिजाइन की कढ़ाई की जाती है और फिर इन्हें प्राकृतिक तेल से मुलायम और टिकाऊ बनाया जाता है. कभी-कभी इनमें मोती और लटकन भी सजाए जाते हैं, जिससे इनका सौंदर्य और बढ़ जाता है.
असली और नकली की पहचान कैसे करें
असली कोल्हापुरी चप्पल की पहचान उसके निर्माण की बारीकी और इस्तेमाल की गई सामग्री से की जा सकती है.
• हाथ से बनी होती हैं: असली चप्पलें पूरी तरह हस्तनिर्मित होती हैं और इनमें एक अलग किस्म की कलात्मकता दिखाई देती है.
• चमड़े की गंध: असली चमड़े में एक प्राकृतिक तीखी गंध होती है, जो प्लास्टिक या सिंथेटिक चप्पलों में नहीं होती.
• मजबूत सिलाई: इनकी सिलाई हाथ से की जाती है, जो बहुत मजबूत और साफ-सुथरी होती है.
• प्राकृतिक रंग और तेल: असली चप्पलें प्राकृतिक रंगों से रंगी होती हैं और इन्हें पॉलिश या तेल से कोमल और टिकाऊ बनाया जाता है.
• आवाज की पहचान: जब आप असली कोल्हापुरी चप्पल पहनकर चलते हैं, तो इनके अंदर लगे बीज की वजह से एक विशिष्ट आवाज आती है, जो नकली चप्पलों में नहीं होती.
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