दिल्ली में एयर पॉल्यूशन की समस्या को कम करने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं. अब दिल्ली सरकार ने एयर पॉल्यूशन को कम करने के लिए खास प्लान बनाया है.
Artificial Rain in Delhi: दिल्ली में प्रदूषण पर जोरदार अटैक के लिए दिल्ली सरकार एक्टिव मोड में है और खास प्लान भी बना लिया है. इस संबंध में दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने न्यूज एजेंसी PTI को अहम जानकारी दी है. पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने शुक्रवार को कहा कि आर्टिफिशियल रेन कराने और एयर पॉल्यूशन के लेवल को कम करने के उद्देश्य से दिल्ली में सितंबर के पहले दो हफ्तों में पहला क्लाउड सीडिंग टेस्ट होगा. बता दें कि पहले जुलाई की शुरुआत में होने वाले इन परीक्षणों को स्थगित कर दिया गया था क्योंकि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), IIT-कानपुर और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (IITM), पुणे से मिली जानकारी के अनुसार जुलाई में मौसम की स्थिति प्रभावी सीडिंग के लिए अनुकूल नहीं थी.
कितना बजट किया आवंटित
मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने इस पायलट परियोजना के लिए 3.21 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसका नेतृत्व IIT-कानपुर का एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग कर रहा है. अहम ये है कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने परीक्षणों के लिए परिचालन मंजूरी दे दी है. विमान क्लाउड सीडिंग डिवाइसेस से लैस है और इसके चालक दल के पास सभी आवश्यक लाइसेंस और सर्टिफिकेट हैं. सिरसा ने स्पष्ट किया कि विमान निषेध किए गए क्षेत्रों से दूर रहेगा और संचालन के दौरान विमानन सुरक्षा मानदंडों का कड़ाई से पालन करते हुए कोई हवाई फोटोग्राफी नहीं की जाएगी. सिरसा ने कहा, “हमने सभी आवश्यक अनुमतियां ले ली हैं और विमान पूरी तरह से तैयार है. क्लाउड सीडिंग अब सितंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में होगी.” उन्होंने आगे कहा, “विमान पर उपकरण लगाने का काम आईआईटी-कानपुर द्वारा पूरा कर लिया गया है और हम पूरी तरह तैयार हैं.”
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी है, जिसका उपयोग वर्षा या बर्फबारी को बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसमें बादलों में रासायनिक पदार्थ, जैसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड), या कैल्शियम क्लोराइड, छिड़के जाते हैं. ये पदार्थ बादलों में नमी को संघनित करने में मदद करते हैं, जिससे पानी की बूंदें या बर्फ के कण बनते हैं और वर्षा होती है. क्लाउड सीडिंग आमतौर पर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करने, जलाशयों को भरने, या कृषि के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए की जाती है. इसे हवाई जहाज, रॉकेट, या जमीनी उपकरणों के माध्यम से किया जाता है. यह तकनीक तब प्रभावी होती है जब बादल पहले से ही नमी से भरे हों, लेकिन वर्षा न हो रही हो. हालांकि, क्लाउड सीडिंग की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे मौसम की स्थिति, बादलों का प्रकार, और क्षेत्र का भौगोलिक ढांचा.
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