SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन पर सियासत गरमाई हुई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सोमवार को अहम सुनवाई होगी. चुनाव आयोग के फैसले को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स NGO ने चुनौती दी है.
SIR issue in Supreme Court: बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ उस मामले पर विचार कर सकती है जिसमें चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूचियों के अपने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि इससे मतदाता सूची से “अयोग्य व्यक्तियों को हटाकर” चुनाव की शुद्धता बढ़ती है. चुनाव आयोग ने एसआईआर का निर्देश देने वाले अपने 24 जून के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रक्रिया में “शामिल” थे और उन्होंने पात्र मतदाताओं तक पहुचने के लिए 1.5 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट तैनात किए थे, लेकिन वे सर्वोच्च न्यायालय में इसका विरोध कर रहे हैं.
चुनाव आयोग ने दिया ये तर्क
चुनाव आयोग ने याचिकाकर्ताओं, जिनमें कई राजनीतिक नेता, नागरिक समाज के सदस्य और संगठन शामिल हैं, के आरोपों का खंडन करने के लिए दायर एक विस्तृत हलफनामे में कहा है कि एसआईआर मतदाता सूची से अपात्र व्यक्तियों को हटाकर चुनावों की शुद्धता को बढ़ाता है. कहा गया कि मतदान का अधिकार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 और 19 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62 के साथ अनुच्छेद 326 से प्राप्त होता है, जिसमें नागरिकता, आयु और सामान्य निवास के संबंध में कुछ योग्यताएं निर्धारित हैं. एक अपात्र व्यक्ति को मतदान का कोई अधिकार नहीं है, और इसलिए, वह इस संबंध में अनुच्छेद 19 और 21 के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स NGO का तर्क
इस बीच, एक रिप्लाइंग एफिडेविट में, मामले में मुख्य याचिकाकर्ता, गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने दावा किया है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) को व्यापक और अनियंत्रित विवेकाधिकार प्राप्त है, जिसके परिणामस्वरूप बिहार की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मताधिकार से वंचित हो सकता है. एनजीओ ने कहा, “याचिका में कहा गया है कि 24 जून, 2025 का एसआईआर आदेश, अगर रद्द नहीं किया गया, तो मनमाने ढंग से और बिना किसी उचित प्रक्रिया के, लाखों नागरिकों को अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार से वंचित कर सकता है, जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं.” इसमें कहा गया है कि बिहार की मतदाता सूची के एसआईआर में स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से आधार और राशन कार्ड को बाहर करना स्पष्ट रूप से बेतुका है और चुनाव आयोग ने अपने फैसले के लिए कोई वैध कारण नहीं बताया है.
‘मतदाताओं के साथ गंभीर धोखाधड़ी’
एनजीओ ने आगे दावा किया कि एसआईआर इस तरह से संचालित किया जा रहा है जो मतदाताओं के साथ गंभीर धोखाधड़ी है और बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) स्वयं गणना फॉर्म पर हस्ताक्षर करते पाए जा रहे हैं और मृतकों को फॉर्म भरते हुए दिखाया जा रहा है, और जिन लोगों ने फॉर्म नहीं भरे हैं उन्हें संदेश मिल रहा है कि उनके फॉर्म भर दिए गए हैं. दावा किया गया, “बिहार से जमीनी स्तर पर रिपोर्टें मिल रही हैं कि निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित अवास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मतदाताओं की जानकारी या सहमति के बिना, बीएलओ द्वारा बड़े पैमाने पर गणना फॉर्म अपलोड किए जा रहे हैं. कई मतदाताओं ने बताया है कि उनके फॉर्म ऑनलाइन जमा कर दिए गए हैं, जबकि उन्होंने कभी किसी बीएलओ से मुलाकात नहीं की या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए. यहां तक कि मृत व्यक्तियों के फॉर्म भी जमा किए गए हैं.”
राजनीतिक दलों का किया जिक्र
एनजीओ ने आगे कहा कि चुनाव आयोग का यह तर्क कि एसआईआर राजनीतिक दलों की चिंताओं को दूर करने के लिए आयोजित किया जा रहा है, पूरी तरह से खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल ने चुनाव आयोग से एसआईआर आदेश में निर्धारित जैसी नई प्रक्रिया की माँग नहीं की थी. “राजनीतिक दलों की चिंताएं गैर-मौजूद वोटों को जोड़ने और विपक्षी दलों का समर्थन करने वाले असली वोटों को हटाने, और मतदान समाप्त होने के बाद वोट डालने के मुद्दे पर थीं. यह ध्यान देने योग्य है कि किसी भी राजनीतिक दल ने मतदाता सूची में नए सिरे से संशोधन की मांग नहीं की.”
ये भी पढ़ें- हरिद्वार: मनसा देवी मंदिर में भगदड़ से 6 लोगों की मौत, कई घायल, इस अफवाह से मची अफरा-तफरी
