India-Singapore: भारत और सिंगापुर के बीच होने वाली यह बैठक केवल समझौतों पर हस्ताक्षर भर नहीं होगी, बल्कि यह दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाई देने वाला मील का पत्थर साबित हो सकती है.
India-Singapore: भारत और सिंगापुर इस सप्ताह होने वाली उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय बैठक में उन्नत प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी, कौशल विकास और डिजिटलीकरण जैसे क्षेत्रों में करीब 10 समझौतों (MoUs) को अंतिम रूप देने की तैयारी में हैं. इन पहलों के जरिए दोनों देश न केवल आर्थिक और तकनीकी साझेदारी को मजबूत करेंगे, बल्कि ऊर्जा और डेटा कनेक्टिविटी में भी नए आयाम स्थापित करेंगे।
डेटा कनेक्टिविटी में ऐतिहासिक कदम
बैठक में एक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव पर भी चर्चा होगी, जिसके तहत भारत से सिंगापुर तक सौर ऊर्जा पहुंचाने के लिए समुद्र के नीचे केबल बिछाई जाएगी. यह केबल न केवल हरित ऊर्जा का आदान-प्रदान करेगी, बल्कि डेटा कनेक्टिविटी भी उपलब्ध कराएगी. हालांकि अंडमान ट्रेंच के कारण तकनीकी चुनौतियां सामने आई हैं, फिर भी दोनों देश इस परियोजना को संभव बनाने के लिए समाधान खोज रहे हैं.
ग्रीन अमोनिया का निर्यात
भारत से सिंगापुर को ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया का निर्यात भी चर्चा के एजेंडे में शामिल है. यह पहल दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग को एक नई दिशा देगी और सतत विकास के लक्ष्य को मजबूत करेगी.
कौशल विकास में बड़ा निवेश
दोनों देश सालाना 1 लाख भारतीय युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण देने की योजना बना रहे हैं. यह प्रशिक्षण विमानन, सेमीकंडक्टर्स और एडवांस मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित होगा. इसके साथ ही गिफ्ट सिटी, गुजरात में वित्तीय डेटा रेगुलेटरी “सैंडबॉक्स” की स्थापना भी डेटा कनेक्टिविटी पहल का हिस्सा है.
व्यापार और निवेश को नई गति
भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय बैठक (ISMR) में व्यापार बढ़ाने और सिंगापुर के निवेश को प्रोत्साहित करने पर भी जोर दिया जाएगा. सिंगापुर, भारत का आसियान में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और एफडीआई, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश तथा बाहरी वाणिज्यिक उधार का प्रमुख स्रोत है. पिछले वित्त वर्ष में सिंगापुर भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा, जिसमें आयात 21.2 अरब डॉलर और निर्यात 14.4 अरब डॉलर का रहा.
भारत और सिंगापुर के बीच होने वाली यह बैठक केवल समझौतों पर हस्ताक्षर भर नहीं होगी, बल्कि यह दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाई देने वाला मील का पत्थर साबित हो सकती है. चाहे बात हरित ऊर्जा की हो, तकनीकी सहयोग की या कौशल विकास की, इस साझेदारी का असर आने वाले वर्षों में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और वैश्विक भूमिका पर स्पष्ट दिखेगा.
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