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गाज़ा से यूक्रेन तक, वैश्विक संघर्षों में बढ़ी मानवीय कीमत; 2024 में 383 राहतकर्मी मारे गए, UN का आया बयान

by Jiya Kaushik
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UN on aid workers killed in global hotspots

UN on aid workers killed in global hotspots: 2024 का आंकड़ा केवल मौतों का नहीं, बल्कि मानवता पर एक गहरी चोट है. गाज़ा से लेकर सूडान और यूक्रेन तक, राहतकर्मी जो जीवन बचाने की लड़ाई लड़ते हैं, वही अपनी जान गंवा रहे हैं.

UN on aid workers killed in global hotspots: दुनिया भर में संघर्ष और युद्धग्रस्त इलाकों में काम करने वाले राहतकर्मियों पर हमले 2024 में भयावह स्तर तक पहुंच गए. संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के कार्यालय (OCHA) के अनुसार, इस वर्ष रिकॉर्ड 383 राहतकर्मी मारे गए, जिनमें से लगभग आधे गाज़ा पट्टी में इजराइल-हमास युद्ध के दौरान मारे गए. विश्व मानवीय दिवस पर जारी यह रिपोर्ट वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की “निष्क्रियता और उदासीनता” पर गहरा सवाल उठाती है.

गाज़ा में सबसे ज्यादा मौतें, “मानवता पर हमला”

डेटाबेस के अनुसार, 2024 में राहतकर्मियों पर 599 बड़े हमले हुए, जिनमें 180 से अधिक मौतें केवल गाज़ा और वेस्ट बैंक में हुईं. सबसे भयावह घटना 23 मार्च को रफ़ाह में दर्ज हुई, जब इजराइली सैनिकों ने भोर से पहले स्पष्ट रूप से चिह्नित एम्बुलेंसों पर फायरिंग कर दी. 15 मेडिकल स्टाफ और आपातकालीन कर्मी मौके पर ही मारे गए, और फिर उनके शवों व वाहनों को बुलडोजरों से दबाकर सामूहिक कब्र में दफना दिया गया. संयुक्त राष्ट्र और बचाव दल वहां एक हफ्ते बाद ही पहुंच सके. UN प्रमुख टॉम फ्लेचर ने कहा, “मानवीय सहयोगियों पर एक भी हमला पूरी मानवता पर हमला है. यह हिंसा अवश्यंभावी नहीं है, इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.”

सूडान, लेबनान और सीरिया में बढ़ा खतरा

गाज़ा के बाद सबसे ज्यादा मौतें सूडान में हुईं, जहां गृहयुद्ध ने हालात को और भयावह बना दिया है. सूडान में 60 राहतकर्मी मारे गए, जो 2023 की तुलना में दोगुने हैं. लेबनान, जहां इजराइल और हिज़्बुल्लाह में पिछले साल युद्ध छिड़ा था, वहां 20 राहतकर्मियों की मौत हुई, जबकि 2023 में यह आंकड़ा शून्य था. सीरिया और इथियोपिया में 14-14 मौतें हुईं, जबकि यूक्रेन में 13 राहतकर्मी मारे गए.

अंतरराष्ट्रीय निष्क्रियता पर सवाल

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि राहतकर्मी अक्सर स्थानीय नागरिक होते हैं जो अपनी ही समुदाय की सेवा कर रहे होते हैं, लेकिन उन्हें न केवल ड्यूटी पर बल्कि घरों में भी निशाना बनाया गया. फ्लेचर ने कहा, “इतने बड़े पैमाने पर हमले और शून्य जवाबदेही अंतरराष्ट्रीय तंत्र की शर्मनाक विफलता है. जिनके पास शक्ति है, उन्हें मानवता की रक्षा के लिए आगे आना होगा.” रिपोर्ट के अनुसार, 21 देशों में राहतकर्मियों पर हिंसा बढ़ी है और सबसे आम हमलावर सरकारों से जुड़े सुरक्षा बल या उनके सहयोगी रहे हैं.

2024 का आंकड़ा केवल मौतों का नहीं, बल्कि मानवता पर एक गहरी चोट है. गाज़ा से लेकर सूडान और यूक्रेन तक, राहतकर्मी जो जीवन बचाने की लड़ाई लड़ते हैं, वही अपनी जान गंवा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी साफ है, अगर दुनिया ने अब भी आंखें मूंदे रखीं, तो मानवीय सेवाओं की रक्षा नहीं, बल्कि उनकी कब्रगाह ही तैयार होगी.

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