Supreme Court Judgement: शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि 20 अगस्त को मामले पर विचार करते हुए उसने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी थी.
Supreme Court Judgement: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत खारिज करने के आदेश को अपलोड करने में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टेनो बुक जब्त करने का आदेश दिया. मामले को संज्ञान में लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि न्यायाधीश के सचिव की स्टेनो बुक जब्त की जाए ताकि पता लगाया जा सके कि आदेश कब टाइप किया गया और कब ठीक किया गया. न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि आदेश 31 जुलाई, 2025 का था और इसे 20 अगस्त तक उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि एक विवेकपूर्ण जांच की जाए और आदेश के टाइप और अपलोड करने के बारे में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) से रिपोर्ट एकत्र की जाए. शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि 20 अगस्त को मामले पर विचार करते हुए उसने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी थी.
सचिव से मांगा स्पष्टीकरण
29 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि रजिस्ट्रार जनरल ने 22 अगस्त को न्यायाधीश के सचिव से स्पष्टीकरण मांगा था. इसने कहा कि सचिव ने 22 अगस्त को जवाब दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि सचिव ने आदेश अपलोड होने के समय कोई जवाब नहीं दिया था, सिवाय इसके कि न्यायाधीश 1 अगस्त से 20 अगस्त के बीच कुछ चिकित्सा प्रक्रिया और सर्जरी से गुजर रहे थे. पीठ ने कहा कि सचिव द्वारा स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने की तिथि पर ही आदेश अपलोड कर दिया गया था. हालांकि, इस तथ्य का उल्लेख उन्होंने स्वयं किया था. पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आदेश 31 जुलाई को पारित नहीं किया गया था, बल्कि वास्तव में, यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पारित किया गया था. सचिव की स्टेनो बुक जब्त की जाए और यह पता लगाया जाए कि किस तिथि को आदेश को पीसी पर टाइप और सही किया गया था.
याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडात्मक कदम न उठाने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने ने कहा कि एक विवेकपूर्ण जांच की जाए और टाइपिंग और अपलोडिंग के संबंध में एनआईसी से पीसी की रिपोर्ट प्राप्त की जाए, और उसे हलफनामे पर दायर किया जाए. पीठ ने एक व्यक्ति की अग्रिम ज़मानत खारिज किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया. पीठ ने हरियाणा राज्य सहित सभी राज्यों को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की. पीठ ने निर्देश दिया कि इस बीच, अंतरिम उपाय के रूप में फरीदाबाद में दर्ज प्राथमिकी के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाए, बशर्ते कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करे. याचिकाकर्ता ने 20 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि उच्च न्यायालय द्वारा 31 जुलाई को पारित आदेश इसकी वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था.
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