Home Top News सत्ता में होते हुए भी हताश क्यों हैं भाजपाई? भाजपा संगठन में असमंजस से विपक्ष की राह आसान

सत्ता में होते हुए भी हताश क्यों हैं भाजपाई? भाजपा संगठन में असमंजस से विपक्ष की राह आसान

by Sanjay Kumar Srivastava
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BJP workers

UP Politics: योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब महज डेढ़ साल ही बचे हैं, लेकिन मनोनयन के ढेर सारे सरकारी पदों पर अब तक तैनाती नहीं हो पाई.

  • Reported by Rajeev Ojha

UP Politics: पार्टी हमें ऐसे ऐसे टास्क दे रही है कि जैसे हम कोई वेतनभोगी कर्मचारी हैं. पूरा-पूरा दिन पार्टी के काम में चला जाता है, लेकिन पार्टी को हमारे बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है. यह एक आम भाजपा कार्यकर्ता की पीड़ा है, जो उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले में सुनी जा सकती है. संगठन से लेकर सरकार तक में कार्यकर्ताओं के समायोजन पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है. कई फैसले तो नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय न हो पाने की वजह से नहीं हो पा रहे हैं. कार्यकर्ताओं का मानना है कि फैसलों में देरी से ही यह मर्ज बढ़ता जा रहा है. उत्तर प्रदेश में डबल इंजन और ज्यादादार शहरों में ट्रिपल इंजन की सरकार के बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं में गहरी निराशा है. आखिर क्या वजह है कि भाजपा के कार्यकर्ता सत्ता में होने के बाद भी निराश व हताश हैं? राजनीतिक विश्लेषक भी आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि लगातार विचार-विमर्श की प्रक्रिया में ही लगी रहने वाली इस पार्टी में आखिर कैसे कार्यकर्ताओं की भावनाओं की अनदेखी हो रही है?

पदों पर तैनाती की देरी से बढ़ रही बेचैनी

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब महज डेढ़ साल ही बचे हैं, लेकिन मनोनयन के ढेर सारे सरकारी पदों पर अब तक तैनाती नहीं हो पाई. कार्यकर्ता सरकार के कई निगमों और आयोगों में अपने समायोजन का इंतजार ही करते रहे. यही हाल संगठन का है. पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम ही तय नहीं कर पा रही है. इसी तरह अभी 27 जिला और शहर अध्यक्षों का चुनाव नहीं हो पाया है. भाजपा ने संगठन की दृष्टि से यूपी में कुल 98 जिला और शहर इकाइयां बना रखी हैं. अब अटकलें यह भी लगाई जाने लगी हैं कि पार्टी अपने मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह को ही दोबारा मौका दे सकती है, क्योंकि उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ के इस्तीफे के बाद उनकी सियासी अहमियत बढ़ गई है.

प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार हो गए ठंडे

पार्टी भूपेंद्र सिंह को जाट नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करती रही है. इस बीच कार्यकर्ता प्रदेश संगठन में बदलाव के लिए मन बनकर बैठा है. माना जा रहा था कि आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी संगठन को नया रंग-रूप देगी, जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा. ताजा हालात यह है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में लगे दावेदार भी अब हाथ पर हाथ रखकर बैठ गए हैं. भाजपा के प्रवक्ताओं के पास भी अब इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता है. पहले वे यही कहा करते थे कि पार्टी में संगठन पर्व चल रहा है, जल्द ही घोषणा हो जाएगी.

वर्षों से चली आ रही यह कार्यशैली

यह बात लगभग दशकभर से भी ज्यादा पुरानी है. भाजपा के एक तत्कालीन बड़े पदाधिकारी से जब यह पूछा गया था कि विधानसभा के टिकट कब तक घोषित होंगे तो उनका जवाब था कि जितने चरण में चुनाव होंगे, उतने चरण में टिकट घोषित होंगे. इस तरह पिछले कई वर्षों से भाजपा की यही कार्यशैली चली आ रही है. बात चाहे संगठन की हो या लोकसभा, विधानसभा सीट किसी भी निकाय चुनाव के टिकट की, पार्टी का फैसला अंतिम क्षण में ही आता है. अब कार्यकर्ता इस कार्यशैली से ऊब गए हैं. उन्हें लगता है कि पार्टी में जिसे पद मिल जाता है, वह कार्यकर्ताओं की चिंता करना छोड़ देता है. आने वाले दिनों में विधान परिषद के 11 सीटों और पंचायत के चुनाव होने हैं. विधान परिषद की 11 सीटों के दावेदार भी अभी से सक्रिय हो गए हैं.

पंचायत चुनाव नजदीक होने से शिकायतों की बाढ़

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव नजदीक होने के कारण जिलों में शिकायतों की बाढ़ आ गई है. अभी हाल ही में एक समारोह में बोलते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं यह बात कही. उन्होंने कहा कि मेरे पास कुछ लोग आए थे और एक मामले की शिकायत करते हुए जांच का आदेश कराना चाहते थे. मैंने कहा कि आपने 4 साल तक यह शिकायत क्यों नहीं की तो उन्होंने कहा कि हम लोग चुनाव नजदीक आने का इंतजार कर रहे थे. फिर मुख्यमंत्री ने चुटकी ली कि जब चुनाव नजदीक आता है तो शिकायतें बढ़ जाती हैं. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सरकार को संगठन की ज्यादा जरुरत पड़ने वाली है. संगठन ही सरकार के खिलाफ किसी भी दुष्प्रचार का जवाब देता है.

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