Bihar Election: बिहार चुनाव में नैतिकता तार-तार हो गई. टिकट बंटवारे में नेताओं के बेटे, बेटियों और पत्नियों का बोलबाला रहा.
Bihar Election: बिहार चुनाव में नैतिकता तार-तार हो गई. टिकट बंटवारे में नेताओं के बेटे, बेटियों और पत्नियों का बोलबाला रहा. बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का प्रभाव जारी है. बड़ी संख्या में उम्मीदवार स्थापित राजनेताओं के बेटे, बेटियां, पत्नियां या करीबी रिश्तेदार हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जहां तक वंशवाद के राजनीति में प्रवेश का सवाल है, बिहार में कोई भी पार्टी इस आधार पर नैतिक श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकती. 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के लिए 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होंगे और नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. विभिन्न राजनीतिक दलों से चुनाव मैदान में उतरे प्रमुख बेटे, बेटियां और पत्नियां हैं. राजद के तेजस्वी यादव (पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के छोटे बेटे और उत्तराधिकारी) राघोपुर से, भाजपा के सम्राट चौधरी (पूर्व मंत्री शकुनि चौधरी के बेटे) तारापुर से, राजद के ओसामा शहाब (गैंगस्टर से राजनेता बने दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे) रघुनाथपुर से भाग्य आजमा रहे हैं.
उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी हैं स्नेहलता
इसके अलावा सासाराम से राष्ट्रीय लोक मोर्चा की स्नेहलता (पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी), झंझारपुर से भाजपा के नीतीश मिश्रा (पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा के बेटे), इमामगंज से हम की दीपा मांझी (केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू), मोरवा और चाणक्य प्रसाद रंजन (जद(यू) बांका सांसद गिरधारी प्रसाद यादव के बेटे), जिन्होंने बेलहर सीट से राजद उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. इसके अलावा जेडी(यू) की कोमल सिंह (लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद वीणा देवी की बेटी) गायघाट से, जेडी(यू) के चेतन आनंद (पार्टी सांसद लवली आनंद के बेटे) नबीनगर से, नितिन नबीन (दिवंगत भाजपा नेता नबीन किशोर सिन्हा के बेटे) बांकीपुर से, संजीव चुरासाई (भाजपा नेता गंगा प्रसाद चौरसिया के बेटे) दीघा से और राहुल तिवारी (राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी के बेटे) शाहपुर से चुनाव लड़ रहे हैं.
मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं शिवानी
राकेश ओझा (भाजपा नेता दिवंगत विशेश्वर ओझा के बेटे) शाहपुर से, वीणा देवी (सूरजभान सिंह की पत्नी, जो हाल ही में राजद में शामिल हुए हैं) मोकामा से और शिवानी शुक्ला (राजद के कद्दावर नेता मुन्ना शुक्ला की बेटी) लालगंज से चुनाव लड़ रही हैं. नागरिकों ने कहा कि लोगों को वंशवाद के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. क्यों कि वे आसानी से राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं. वे स्थापित राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि पिछले 77 सालों में बिहार में शिक्षा को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई. लोगों ने कहा कि जहां तक वंशवादियों के राजनीति में प्रवेश का सवाल है, बिहार में कोई भी पार्टी इस आधार पर नैतिक श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकती. विकास ने कहा कि बिहार में ग्रामीण आबादी का शिक्षा स्तर बहुत कम है. नवीनतम जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में केवल 14.71 प्रतिशत आबादी ने कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की है. वे राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं हैं. यही कारण है कि राजनीतिक दल कम शिक्षित मतदाताओं का लाभ उठाते हैं और वंशवादियों को चुनावी मैदान में उतरने देते हैं.
साधारण कार्यकर्ता सोच भी नहीं सकता
राजद की राज्य इकाई के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने पीटीआई से कहा कि यह सच है कि एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता इन दिनों चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोच सकता. साथ ही जब ग्लैमर हर भारतीय चुनाव का अभिन्न अंग बन गया है, तो सामान्य पार्टी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. उन्होंने कहा कि यह भी एक तथ्य है कि उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा धन के बेलगाम उपयोग ने चुनाव को कठिन बना दिया है. बिहार भाजपा प्रवक्ता नीरज कुमार ने पीटीआई से कहा कि भाजपा केवल उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को महत्व देती है जिन्होंने संगठनात्मक कार्य किया है और जो ‘जन’ के प्रति सक्षम और प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लिया जा सकता है. उन्होंने पार्टी संगठन के हर स्तर पर काम किया है. हमारे प्रधानमंत्री बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं.
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