Introduction
12 December, 2025
Dhurandha: बॉलीवुड में स्पाई फिल्में बनना कोई नई बात नहीं हैं. हर एक-दो साल में एक ऐसी फिल्म आती ही है जो देशभक्ति, बड़े-बड़े लोकेशन, हाई-ऑक्टेन एक्शन और तेज़-तर्रार एजेंटों से भरी होती है. पर ‘धुरंधर’ इन सबके बीच जैसे किसी दूसरी ही दुनिया से आया एक किरदार लगता है. रणवीर सिंह की ये फिल्म न सिर्फ स्पाय जॉनर का चेहरा बदलती है, बल्कि ऑडियन्स को एक ऐसे माहौल में ले जाती है जहां चमक-दमक की जगह बेचैनी है, सुपरहीरो जैसी ताकत की जगह कमजोरी है और तेज़ रफ्तार एक्शन की जगह हिला देने वाला सन्नाटा है. ‘धुरंधर’ का टाइटल ट्रैक जब शुरू होता है- ‘लेडीज़ एंड जेंटलमेन, यू आर नॉट रेडी फॉर दिस’, तब लगता है कि शायद आगे बड़े धमाके होंगे. हालांकि, असली झटका तब लगता है जब फिल्म उस लाइन को बिल्कुल नए मतलब के साथ सच साबित करती है. क्योंकि ऑडियन्स वाकई में इतनी बढ़िया स्पाई फिल्म देखने के लिए तैयार नहीं थी. न फिल्म में दिखाए जाने वाले वॉयलेंस के लिए, न हैवी कहानी के लिए और न इस तरह के स्पाई वर्ल्ड के लिए जो सिर्फ दिखावटी थ्रिलर नहीं, बल्कि लगातार एक एडवेंचर और थ्रिल जैसा महसूस कराती है. कहा जा सकता है कि ‘धुरंधर’ धीरे-धीरे, पर गहराई से असर करती है. ये फिल्म किसी तरह की जल्दी में नहीं है और यही इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती भी है.

मजबूत कहानी
वैसे भी बॉलीवुड की स्पाई फिल्मों की बात आते ही आम तौर पर दिमाग में तेज रफ्तार एक्शन, दुनिया घूमते-धूमते मिशन, स्टाइलिश हीरो, आइटम सॉन्ग और देशभक्ति से भरी इमोशनल लाइनें ही चलती हैं. मगर डायरेक्टर आदित्य धर की नई फिल्म ‘धुरंधर’ इस फॉर्मूले से बिल्कुल उलटी दिशा में चलती है. फिल्म की शुरुआत में तो यही लगता है कि ‘धुरंधर’ भी शायद एक हाई-ऑक्टेन स्पाई ड्रामा होगी, लेकिन कहानी जैसे-जैसे खुलती है, ये एहसास होता है कि ये फिल्म सिर्फ स्पाई नहीं दिखाती, बल्कि जासूस के अंदर घुसकर उसके मेंटल, इमोशनल और फिजिकल स्ट्रगल को खोलकर रख देती है. ये फिल्म ऑडियन्स को तैयार होने का टाइम ही नहीं देती. ये उन्हें सीधे ही एक ऐसी दुनिया में फेंक देती है जो खतरनाक है, गंदी है, पॉलिटि्स की धूल में लिपटी है और जिंदा रहने की जद्दोजहद में जलती रहती है.

बिना मसाले की कहानी
कागज़ पर ‘धुरंधर’ एक क्लासिक स्पाई थ्रिलर की तरह ही शुरू होती है. भारत में लगातार हमले, जिसकी जड़े पाकिस्तान के कराची तक पहुंचती हैं. फिर दुश्मन देश में एक अंडरकवर एजेंट को भेजा जाता है. हालांकि, आदित्य धर ने इसमें किसी तरह का ग्लैमर नहीं दिखाया. न बड़े-बड़े स्टाइलिश गैजेट, न फैंसी गाड़ियां, न सुपरस्टार जैसी एंट्री. हमज़ा, यानी रणवीर सिंह का किरदार, लियारी की दुनिया में हीरो बनकर नहीं उतरता. वो उस दुनिया में फेंका गया आदमी है, जो बस जिंदा रहने की कोशिश कर रहा है. और यही ‘धुरंधर’ को बाकी जासूसी फिल्मों से अलग करता है.
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फिल्म का असली खेल
‘धुरंधर’ सिर्फ मिशन पर नहीं टिकी है. ये फिल्म उस मोहल्ले, उस सिस्टम, उन गलियों और उन लोगों की राजनीति पर ज्यादा टिकी है जो वहां रहते हैं. अगर फिल्म से ये एक लाइन हटा दी जाए कि हमज़ा भारत का जासूस है, तो भी ‘धुरंधर’ उतनी ही मजबूत कहानी लगती है. तब ये कहानी एक ऐसी दुनिया बन जाती है जिसमें एक आम आदमी धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर ताकत हासिल करता है. वो एक-एक इंच अपनी जगह बनाता है, लोगों को इम्प्रेस करता है, डरा देता है, भरोसा जीतता है और उस जमीन का हिस्सा बन जाता है जो पहले उसकी दुश्मन थी. यानी फिर ये अंडरवर्ल्ड राइज़ की कहानी बन जाती. 3 घंटे 43 मिनट की ‘धुरंधर’ आजकल की बॉलीवुड फिल्मों की तरह एक देश से दूसरे देश नहीं कूदती. ये एक जगह की तरह ही ज़िंदगी को पकड़कर रखती है. ‘धुरंधर’ में न तो चकाचौंध है, न ग्लैमर का ओवरडोज, न ही वो स्टाइलिश एक्शन जो आमतौर पर इस जॉनर का ट्रेडमार्क माना जाता है.

रेड स्क्रीन
एक मोड़ पर लाल स्क्रीन के अंदर ‘धुरंधर’ की कहानी टूटती सी लगती है. तभी रंग गायब, लड़खड़ाती आवाजें और इमोशन्स का तूफान सीधे लोगों के दिल तक पहुंचता है. आदित्य धर का ये ऐसा स्टेप था, जिसने ऑडियन्स को हिला दिया. उन्होंने बताया कि ‘धुरंधर’ स्टाइलाइज्ड वॉयलेंस नहीं, बल्कि सच्चाई लेकर आई है. इसके अलावा ‘धुरंधर’ का सबसे शानदार पहलू है उसका प्रोडक्शन डिजाइन. जैसे लियारी सिर्फ लोकेशन नहीं लगती, बल्कि ये फिल्म का कैरेक्टर बन जाती है. घुटन, गर्मी, धूल, पसीना, गली-कूचे, जर्जर इमारतें, सब कुछ फिल्म में इतना रीयल है कि लगता है हम खुद उसी दुनिया में बंद हैं. यानी फिल्म कहीं भी सेट जैसी नहीं लगती. हर गली, हर कमरा, हर कोना ऐसे लगता है जैसे वहां लोग सालों से रहते हों.

आवाज़ कम, असर ज्यादा
रणवीर सिंह ने ‘धुरंधर’ में ऐसा काम किया है जो उनके करियर के सबसे शांत, लेकिन सबसे भारी परफॉर्मेंस में से एक है. हमज़ा ज्यादा बोलता नहीं, लेकिन वो हर इमोशन को चेहरे, आंखों और सांसों की रफ्तार में लेकर चलता है. वैसे भी एक अंडरकवर एजेंट ग्लैमरस नहीं दिखा सकता, क्योंकि उसे बचकर रहना होता है और रणवीर सिंह इस रिएलिटी को पूरी तरह पकड़कर चलते हैं और कहते हैं, घायल हूं, इसलिए घातक हूं. दूसरी तरफ फिल्म का वॉइलेंस उतना ही कच्चा, उतना ही जंगली और उतना ही चुभने वाला है जैसा असल दुनिया के गैंग इलाकों में होता है. यानी न स्लो मोशन, न बीट ड्रॉप, न स्टाइल- बस रिएलिटी. ये फिल्म बताती है कि जासूस का काम सेफ नहीं होता. इसके लिए कोई अवॉर्ड नहीं मिलता, कोई वादा नहीं होता. यानी अगर एजेंट पकड़ा जाए, तो देश उसे पहचानने से भी इनकार कर देता है. वहीं, अक्षय खन्ना फिल्म में बैलेंस लाते हैं, उनका काम सस्पेक्ट, नेता, गाइड और खतरे की घंटी, सब एक साथ लाता है. धुरंधर में रणवीर सिंह और अक्षय खन्ना ने ऐसे रोल दिए हैं जिन्हें लंबे समय तक याद रखा जाएगा. अक्षय की एंट्री से लेकर उनकी मौत तक, वो स्क्रीन पर किसी बादशाह की तरह रहे हैं. इसके अलावा अर्जुन रामपाल का किलर अंदाज़ और संजय दत्त का घातक चार्म इस फिल्म में अलग ही जान डाल देता है. इन सबके अलावा आर माधवन ने एक बार फिर अपनी नेचुरल एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राकेश बेदी ने भी एक करप्ट पॉलिटीशियन का रोल बहुत ही अच्छी तरह से निभाया है. इन सबके अलावा एक और किरदार है, जिसके बिना ये स्टोरी पूरी नहीं हो सकती थी और वो है उजैर बलोच. इस किरदार को एक्टर दानिश पंडोर ने निभाया है. उन्होंने भी अपना काम बहुत ही बढ़िया किया है.

कलेक्शन
बात करें ‘धुरंधर’ के धुंआधार बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के बारे में तो, इस फिल्म ने 28.60 करोड़ रुपये की बंपर ओपनिंग की थी. 5 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई रणवीर सिंह की इस फिल्म ने दूसरे दिन यानी शनिवार को 33.10 करोड़ रुपये और रविवार को 44.80 करोड़ का बिजनेस किया. यानी पहले वीकेंड में ही फिल्म 100 करोड़ क्लब के नज़दीक पहुंच चुकी थी. हालांकि, वीक डेज में भी ‘धुरंधर’ वीक नहीं पड़ी और सोमवार को फिल्म ने देशभर में 24.30 करोड़ रुपये की कमाई की. मंगलवार को 28.60 करोड़ और बुधवार को 29.20 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. गुरुवार को ‘धुरंधर’ ने 29.10 करोड़ रुपये का बिजनेस किया और मेकर्स को खुश कर दिया. अब फिल्म का सिनेमाघरों में दूसरा वीकेंड शुरू हो रहा है. ऐसे में उम्मीद है कि ‘धुरंधर’ की कमाई की रफ्तार अभी और तेजी से बढ़ेगी. वैसे गुरुवार तक का टोटल कलेक्शन 218 करोड़ रुपये हो चुका है. इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पब्लिक इस स्पाई-एक्शन फिल्म पर कितना प्यार लुटा रही है.

लियारी की अनकही दास्तान
पाकिस्तान के कराची शहर का एक इलाका, लियारी जिसका नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में दो चीजें आती हैं- पुराने दौर की गैंगवार और डर. लेकिन ये जगह सिर्फ वॉयलेंस की कहानी नहीं है, बल्कि एक ऐसा मोहल्ला है जिसने सदियों से लोगों को पनाह दी, संस्कृतियों को संजोया और आखिरकार खुद को फिर से बदलने की हिम्मत दिखाई. आदित्य धर की स्पाई थ्रिलर धुरंधर ने इस इलाके पर लोगों की नज़रें दोबारा टिकाईं. फिल्म ने 2000 के दशक के लियारी को अपना कैनवास बनाया और यहां की सड़कों, गलियों, पॉलिटिक्स और गैंगवार को पर्दे पर उतारा. ये वही जगह है जिसे ‘कराची की मां’ कहा जाता है. क्योंकि ये शहर के बनने से भी पहले यहां बस चुकी थी. तो आखिर कैसे एक छोटा-सा डॉकवर्कर मोहल्ला धीरे-धीरे इतने गैंगों का अड्डा बन गया? और कैसे आज वही लियारी धीरे-धीरे अपनी छवि बदल रही है?

कैसे और किसने बसाया?
वैसे, फिल्म में इतनी डिटेल नहीं दिखाई हैं, लेकिन लियारी का इतिहास 1700 के दशक में शुरू होता है. अरब सागर के किनारे, मछुआरों का एक छोटा गांव. नाव, जाल और बिजनेस, यही इस जगह की जिंदगी थी. फिर आए ब्रिटिश जिन्होंने 1850 के आसपास कराची के पोर्ट को मॉर्डन बनाया और बिजनेस बढ़ने लगा. मजदूरों, मछुआरों, डॉकवर्करों की जरूरत बढ़ी और लोग दूर-दूर से यहीं आकर बसने लगे. धीरे-धीरे ये इलाका इतना भीड़भाड़ वाला हो गया कि सड़कें छोटी पड़ने लगीं, घर सिमटने लगे और फेसिलिटी नाम की चीज नहीं बची. इसके बाद भी लियारी ने सबको अपनाया. यही वजह है कि इस जगह को “कराची की मां” कहा गया. मगर 1947 के बाद पाकिस्तान की पहली राजधानी बनी कराची. मुहाजिर यहां बड़ी संख्या में आए. कहने को तो लियारी पुराना और मजबूत इलाका था, लेकिन संसाधन कम थे. दूसरी तरफ सरकार भी इस इलाके पर ध्यान देने के मूड में नहीं थी. नतीजा ये हुआ कि पॉपुलेशन और गरीबी, दोनों बढ़ती गई.

गैंगों का दौर
इस बीच लियारी में दो गैंग बने- काला नाग और दलाल. ये गैंग बड़े लेवल पर हिंसा नहीं करते थे, लेकिन इन्होंने इलाके में ड्रग्स लाने का काम शुरू कर दिया और यहीं से एक काला चैप्टर शुरू हो गया. फिर 1970 में राजनीतिक में मोड़ आया और लियारी PPP का गढ़ बन गया. जब जुल्फिकार अली भुट्टो यहां चुनाव प्रचार के लिए आए, तो लोगों को लगा कि आखिर कोई नेता उनकी सुन रहा है. बेनज़ीर भुट्टो ने तो अपना वलीमा भी यहां के काकरी ग्राउंड में किया था. फिर साल 1979 में अफगान युद्ध हुआ जिससे नया खतरा बढ़ने लगा. सोवियत-अफगान युद्ध हुआ और पाकिस्तान में शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गई. बड़ी संख्या में पठान कराची में आए, उनमें से कई तो अच्छे हथियारबाज थे. यानी उनके साथ हथियार आए, ड्रग्स की तस्करी बढ़ी, नए गैंग बने,पुराने गैंग मजबूत हुए और लियारी धीरे-धीरे कराची का वाइल्ड वेस्ट बन गया. फिर 80 और 90 के दशक में ये गैंग पॉलिटिक्स का हिस्सा बन गए. इससे गैंगों की ताकत बढ़ने लगी. इसी गैंग कल्चर ने उस माहौल को जन्म दिया जिस पर धुरंधर की कहानी रची गई है. 2000 के दशक में लियारी कराची का सबसे खतरनाक इलाका बन गया. तब यहां रोज गोलीबारी, किडनैपिंग, ड्रग्स, गैंगवार, सब आम बात थी.
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