Aravali mountain dispute: अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा ने दिल्ली से राजस्थान तक विरोध के सुर तेज कर दिए हैं. अरावली को बचाने की मुहिम शुरू हो गयी है. सभी को डर इसके संरक्षण को लेकर है.
- रजनीश सिन्हा की रिपोर्ट
Aravali mountain dispute: अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा ने दिल्ली से राजस्थान तक विरोध के सुर तेज कर दिए हैं. अरावली के इलाके में रहने वाले और पर्यावरणविदों को डर है कि बदली हुई परिभाषा देश की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक अरावली के इकोलॉजिकल संतुलन को कहीं बिगाड़ नहीं दे. अरावली को बचाने की मुहिम शुरू हो गयी है. सभी को डर इसके संरक्षण को लेकर है. तैयारी रिव्यू पिटीशन की भी हो रही है. क्या है पूरा मसला और क्यों इतनी खास है ये पर्वत शृंखला. आइए जानते हैं विस्तार से…
अरावली पर्वतमाला पश्चिमी भारत की एक प्राचीन पर्वत शृंखला है. यह गुजरात के कच्छ से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से गुजरती है. दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक इसकी लंबाई लगभग 800 किलोमीटर है. इतिहास की दृष्टि से यह पर्वतमाला दो अरब वर्षों से भी अधिक पुरानी है और आज भी गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण लाइफलाइन का काम करती है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक कमेटी की अरावली पहाड़ियों और पर्वत शृंखलाओं की परिभाषा संबंधी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. नई परिभाषा के अनुसार केवल उसी भू-आकृति को अरावली पहाड़ियों में शामिल किया जाएगा, जो अपने स्थानीय धरातल से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो. इसके बाद शुरू हुआ बहस और चर्चाओं का दौर.
बचाने को Save Aravali Trust चला रही मुहिम
अरावली का दोहन लंबे वक्त से चल रहा है और इसे बचाने की मुहिम भी दशकों से चल रही है. बताया जाता है कि सन 1939 के साक्ष्य हैं कि उस वक्त भी अरावली क्षेत्र के अलग अलग इलाकों में अतिक्रमण को लेकर कई मामले सामने आए थे. कई दशकों से इसे बचाने की मुहिम जारी है. दिल्ली-NCR और हरियाणा से जुड़े अरावली शृंखला को बचाने की मुहिम में Save Aravali Trust नाम की संस्था बना कर भी लोग लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं. Save Aravali Trust फरीदाबाद के ट्रस्टी कैलाश बीधुड़ी ने बताया कि अरावली न केवल भूवैज्ञानिक इतिहास की किताब है, यह खनिजों से समृद्ध है. कई नदियों का स्रोत है. इसके जंगल जैव विविधता से भरे हैं, जहां दुर्लभ पौधे और जानवर पाए जाते हैं. अरावली का योगदान बहुआयामी है. उन्होंने कहा कि यह पर्यावरण संतुलन बनाए रखती है और जल संरक्षण में मदद करती है.
लोगों ने कहा-आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है अरावली
आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां संगमरमर, जस्ता, तांबा जैसे खनिज पाए जाते हैं. अरावली चाहे जितनी भी पुरानी हो मगर हर पीढ़ी ने इसके महत्व को समझा है. नयी पीढ़ी अरावली को लेकर संजीदा दिखी. कैलाश बीधुड़ी ने कहा कि सिर्फ पानी ही नहीं, अरावली दिल्ली- NCR का डस्ट बैरियर और प्राकृतिक कूलिंग सिस्टम भी है. इसके बिना वायु प्रदूषण और गर्मी बढ़ जाएगी और अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट तेज हो जाएगा, जिससे गर्मियां कई राज्य के लिए अत्यंत कठिन और असहनीय हो जाएंगी. कहा कि इस अरावली शृंखला से लोगों का गजब का जुड़ाव है. यहां आसपास गांवों के लोग भी समझते हैं कि इससे छेड़छाड़ किन परेशानियों में डाल देगी. वहीं स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि अरावली को लेकर इतना हंगामा इसलिए भी है क्योंकि डर इस बात का है कि नई परिभाषा से माइनिंग, कंस्ट्रक्शन और कमर्शियल एक्टिविटीज को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे अरावली रेंज की प्राकृतिक सुंदरता नष्ट होने का खतरा बढ़ जाएगा.
विकास के नाम पर प्रकृति से समझौता नहीं
ग्रामीणों ने कहा कि अरावली पर्वत शृंखला दिल्ली-NCR क्षेत्र के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती है, जो प्रदूषण, रेगिस्तान बनने और पानी के संकट को रोकने में अहम भूमिका निभाती है. उन्होंने मांग की कि सरकार अरावली को पूरी तरह से संरक्षित क्षेत्र घोषित करे. साथ ही एक सख्त और स्पष्ट संरक्षण नीति लागू करे. विकास के नाम पर प्रकृति से समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि अरावली का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य से जुड़ा है. अब न्यायालय का जो आदेश आया है उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में ही पिटीशन लगाने की तैयारी है.
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