IIT Guwahati: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने दूषित जल से सीसा (लेड) हटाने के लिए साइनोबैक्टीरिया आधारित एक प्राकृतिक और कम लागत वाली तकनीक विकसित की है.
IIT Guwahati: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने दूषित जल से सीसा (लेड) हटाने के लिए साइनोबैक्टीरिया आधारित एक प्राकृतिक और कम लागत वाली तकनीक विकसित की है. साइनोबैक्टीरिया सूक्ष्मजीव है. यह जल में मौजूद सीसे को प्रभावी रूप से अवशोषित करता है. शोधकर्ताओं के अनुसार, यह तकनीक दुनिया के सबसे ज्यादा पर्यावरणीय खतरों में से एक सीसा प्रदूषण का स्थायी समाधान बन सकती है. दूषित पानी में पाए जाने वाला यह विषैला धातु वैश्विक स्तर पर 80 करोड़ से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, जिनमें अकेले भारत के लगभग 27.5 करोड़ बच्चे शामिल हैं. यह खोज जल शुद्धिकरण के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इस शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ हैज़र्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित हुए हैं.
दूषित जल से भारत में लगभग 27.5 करोड़ बच्चे प्रभावित
जैव विज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर देबाशीष दास के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सीसा सबसे विषैले प्रदूषकों में से एक है, जो 80 करोड़ से ज़्यादा बच्चों को प्रभावित करता है. अकेले भारत में लगभग 27.5 करोड़. यह आमतौर पर औद्योगिक कचरा, कृषि अपवाह और पुरानी पानी की पाइपलाइनों के माध्यम से पानी में प्रवेश करता है. एक बार जब कोई जल संसाधन सीसे से दूषित हो जाता है, तो यह दशकों तक बना रहता है, जीवों में जमा हो जाता है और गंभीर तंत्रिका संबंधी, हृदय संबंधी, गुर्दे और विकास संबंधी समस्याएं पैदा करता है. सीसा हटाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक उपचार और सिंथेटिक अधिशोषक जैसे पारंपरिक तरीके आम तौर पर महंगे होते हैं और अक्सर अन्य प्रदूषक उत्पन्न करते हैं. दास ने आगे कहा कि इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए हमने जैव-उपचार का उपयोग किया. कहा कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें सूक्ष्मजीव दूषित वातावरण को साफ करते हैं. ये सूक्ष्मजीव प्राकृतिक रूप से मिट्टी और पानी में मौजूद होते हैं और पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने में मदद करते हैं.
पानी साफ करने की लागत में करीब 60% तक की कमी
टीम ने साइनोबैक्टीरियम के विभिन्न भागों पर शोध किया ताकि यह जांचा जा सके कि कौन से घटक सीसा संदूषकों को अवशोषित करने और हटाने में सबसे अधिक कुशल हैं. उन्होंने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि साइनोबैक्टीरियम का एक भाग एक्सोपॉलीसेकेराइड्स या ईपीएस दूषित जल से 92.5 प्रतिशत की उच्चतम सीसा निष्कासन की क्षमता को प्रदर्शित करता है. इन साइनोबैक्टीरियल बायोसॉर्बेंट्स को न्यूनतम ऊर्जा इनपुट की आवश्यकता होती है और इन्हें परिष्कृत बुनियादी ढांचे के बिना बढ़ाया जा सकता है, जिससे ये व्यापक प्रयोग के लिए अधिक किफायती हो जाते हैं. दास ने कहा कि हमारी विकसित पद्धति का उपयोग करने पर कुल उपचार लागत लगभग 40 से 60 प्रतिशत तक कम की जा सकती है. उनके अनुसार, लागत में यह महत्वपूर्ण कमी और प्रक्रिया का पर्यावरण अनुकूल स्वभाव इसे उद्योगों और नगर पालिकाओं के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है. दास ने जोर देकर कहा कि यह दृष्टिकोण न केवल प्रदूषण नियंत्रण के लिए किफायती समाधान प्रदान करेगा बल्कि दीर्घकालिक रूप से एक स्थायी विकल्प भी बन सकता है.
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