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India-Russia & China: रूस और चीन के साथ भारत की तिकड़ी, अमेरिका को क्यों लगी मिर्ची?

by Sanjay Kumar Srivastava
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India-Russia & China

दोस्ती हो या दो देशों के संबंध बनते बिगड़ते हैं, खासकर वैश्विक स्तर पर ये संबंध आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिज्ञ और वर्चस्व के होते हैं. ऐसे ही बदलाव दुनिया के पटल पर देखने को मिल रहा है.

  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह की रिपोर्ट

India-Russia & China: दोस्ती हो या दो देशों के संबंध बनते बिगड़ते हैं, खासकर वैश्विक स्तर पर ये संबंध आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिज्ञ और वर्चस्व के होते हैं. ऐसे ही बदलाव दुनिया के पटल पर देखने को मिल रहे हैं और अब नये रिश्ते की बात से दुनिया में हलचल मच गई है. रूस, भारत और चीन की तिकड़ी यानी आरआईसी त्रिपक्षीय फोरम फिर से सक्रिय हो सकता है. जाहिर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मनमानी से आरआईसी पुनर्जन्म ले सकता है, एक तरफ चीन से अमेरिका की पुरानी दुश्मनी है तो दूसरी तरफ रूस पर यूक्रेन से युद्ध खत्म करने का दवाब है, वहीं ट्रंप के रवैये से भारत नाखुश है. भारत और अमेरिका के बीच अभी तक टैरिफ पर समझौता नहीं हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान- भारत के बीच युद्ध खत्म कराने को लेकर ट्रंप अपनी बार बार वाहवाही लेने की कोशिश कर रहा है जबकि भारत ट्रंप के सीजफायर की थ्योरी लगातार नकारता रहा है. दरअसल अमेरिका रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म कराना चाहता है लेकिन रूस और भारत के रिश्ते से अमेरिका नाराज दिख रहा है क्योंकि एक तरफ भारत रूस से तेल खरीद रहा है और दूसरी तरफ यूक्रेन-रूस के बीच युद्ध पर यूएन में भारत तटस्थ हो जाता है. तीसरी बड़ी बात है कि आरआईसी को फिर से जीवित किया जा रहा है जिससे अमेरिका को मिर्ची लग गई है. ट्रंप भारत-पाकिस्तान पर अपनी पीठ खुद थपथपा कर ये जताना चाहता है कि दुनिया में वही बिग बॉस है तो दूसरी तरफ अमेरिका अपने पिछलग्गू नाटो और यूरोपियन यूनियन के जरिए ये संदेश देना चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ट्रंप ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर से मिलकर भारत को असहज करने की कोशिश की थी.

भारत-चीन और रूस की दोस्ती क्यों?

दरअसल भारत और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ रहीं हैं लेकिन भारत बेहद सतर्क है. पिछले ही महीने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग संगठन(एससीओ) की बैठक में चीन की यात्रा की थी. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलने के रूप में देखा जा रहा है. अभी हाल में विदेश मंत्री ने चीन का दौरा किया था और दोनों देशों ने अपने संबंधों को बेहतर करने की सहमति बनाने की कोशिश की. चीन ने कहा है कि वह भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार है. जयशंकर ने यहां तक कह दिया है कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध केवल दोनों देशों के आपसी हितों पर आधारित होंगे. पाकिस्तान या किसी अन्य तीसरे देश की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी. भारत और चीन के रिश्ते में आई नरमी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल में भी 6 साल बाद कैलाश मान सरोवर की यात्रा शुरू हुई.

रूस का नया प्रपोजल

ये सब चल ही रहा था कि भारत और चीन के रिश्ते में आई नरमी को देखते हुए रूस ने एक नया प्रपोजल दिया है. रूसी उप विदेश मंत्री आंद्रेई रुडेंको फिर से त्रिपक्षीय प्रारूप यानी आरआईसी को सक्रिय करने की बात की और तुरंत चीन ने भी रूस के प्रस्ताव का समर्थन किया है. दुनिया के पटल पर एक रिश्ता बन रहा है और भारत एक तीर से दो निशाना करना चाहता है. ट्रंप को संदेश देने के लिए भारत ने इस पर खुलेपन का संकेत दिया है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि यह तीनों देशों को साझा चिंता के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक साथ लाता है. उन्होंने बैठक के लिए किसी समय-सीमा की पुष्टि किए बिना कहा कि तीनों देशों के बीच पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तरीके से कार्यक्रम तय किया जाएगा. इस तिकड़ी से अमेरिका परेशान हो गया है और अपने पिछलग्गुओं के जरिए दवाब बनाना शुरू कर दिया है. पहले नाटो के प्रमुख मार्क रुटे ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस से तेल और गैस व्यापार जारी रखने पर 100% सख्त सजा की चेतावनी दी है. ये इसीलिए दिया गया कि रूस यूक्रेन से सीजफायर के लिए तैयार हो जाए. नाटो की धमकी पर भारत ने कहा कि इस पर दोहरा मापदंड नहीं चलेगा.

अमेरिका की आड़ में नाटो और यूरोपियन यूनियन का खेल

नाटो की धमकी के तुरंत बाद यूरोपियन यूनियन ने रूस पर एक्शन लिया है जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ सकता है. जाहिर है कि रूस से भारत कम कीमत पर तेल खरीदता है और यही वजह है कि भारत 40 फीसदी कच्चा तेल रूस से खरीदता है, ये बात अमेरिका को पच नहीं रहा है. यही वजह है कि यूरोपियन यूनियन ने रूस के जरिए भारत को भी संदेश देने की कोशिश की है. रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट पर नकेल कसने की कोशिश की है, मतलब रोसनेफ्ट कंपनी का तेल यूरोपियन यूनियन को नहीं जा पाएगा. ये बताना जरूरी है कि रोसनेफ्ट कंपनी का भारत से भी रिश्ता है. गुजरात में स्थित नायरा एनर्जी में रोसनेफ्ट कंपनी की 49.13 फीसदी हिस्सेदारी है. इस कंपनी से यूरोपियन यूनियन में रिफाइनड होकर तेल नहीं जा पाएगा. रूस पर नकेल कसने के लिए यूरोपियन यूनियन ने कीमत भी तय कर दिया है मतलब अब रूसी तेल की कीमत 47.6 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. पहले यह सीमा 60 डॉलर थी. इसका मतलब ये है कि अब रूस को कम कीमत पर तेल बेचना पड़ेगा इसके लिए रूस तैयार होता है या नहीं ये एक बड़ा सवाल है. यूरोपियन यूनियन नायरा को बैंकिंग लेनदेन में दिक्कत हो सकती है. खासकर उन बैंकों के साथ जो यूरोप से जुड़े हैं. रिफाइनरी के काम के लिए जरूरी यूरोपीय तकनीकी मदद मिलने में भी परेशानी हो सकती है. ये भी जानना जरूरी है कि नायरा एनर्जी सिर्फ 4 फीसदी तेल ही यूरोप भेजता है जबकि रिलायंस की भागीदारी करीब 90 फीसदी है.

क्या भारत दूसरे देशों से तेल खरीदेगा?

यूरोपियन यूनियन की एक तरफा कार्रवाई पर भारत सरकार ने कहा है कि भारत किसी एकतरफा प्रतिबंध को नहीं मानता है. जो संयुक्त राष्ट्र के दायरे से बाहर हो. विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि ऊर्जा क्षेत्र में दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए जबकि नाटो के बयान पर पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा था कि हम बहुत शुरुआत से ही इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि हमें जहां से भी तेल खरीदना होगा हम खरीदेंगे. क्योंकि प्रधानमंत्री की आखिरी प्राथमिकता भारतीय उपभोक्ता के साथ है. मतलब भारत के लिए विकल्प खुला है. पुरी ने कहा कि भारत दूसरे देशों से कच्चा तेल ले सकता है.

आरआईसी क्या है?

जाहिर है नाटो, यूरोपियन यूनियन और अमेरिका नहीं चाहता है कि आरआईसी आगे बढ़े, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्धविराम की बात आगे नहीं बढ़ पाएगी. आरआईसी (रूस, भारत, चीन) की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी लेकिन कोरोना काल की वजह से इसकी बैठक नहीं हुई. फिर 2020 में भारत और चीन के बीच तनातनी की वजह से ठंडे बस्ते में चली गई . इस त्रिपक्षीय मंच का उद्देश्य प्रमुख गैर-पश्चिमी शक्तियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है लेकिन चीन की दादागिरी की वजह से भारत अमेरिका के करीब चला गया. भारत कूटनीतिक के मामले में मजा हुआ खिलाड़ी है. एक तरफ अमेरिका से रिश्ता भी रखना है तो दूसरी तरफ रूस के साथ संबंध बनाकर भी रखना है.

क्या चीन पर विश्वास किया जा सकता है?

चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि 2020 में गलवान घाटी पर जिस तरह कब्जा करने की कोशिश की गई, उसकी वजह से दोनों देशों के बीच संबंध खराब हुए थे. वहीं चीन कभी अरुणाचल प्रदेश को लेकर अडंगा लगाता रहा है और दलाईलामा के लेकर दोनों देशों के बीच मनमुटाव बना रहता है. अभी दोनों देशों के बीच एलएसी (Line of Actual Control) का मुद्दा नहीं सुलझ पाया है. जबकि भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ चीन का पुराना रिश्ता है. जिस तरह हाल के भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान चीन ने पाकिस्तान को परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से मदद की तो ऐसे में चीन पर कैसे भरोसा किया जा सकता है. दूसरी मुश्किल है कि अमेरिकी से दूरी बनाने पर अगर भारत और चीन के बीच रिश्ते में खटास आती है तो अमेरिका फिर से भारत के साथ खड़ा नहीं होगा. भारत के सामने चुनौती है कि चीन और अमेरिका के साथ कैसे बैलेंस बनाकर रखा जाए.

  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स

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