कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने जाति जनगणना और मनरेगा के मुद्दे पर पीएम मोदी समेत केंद्र सरकार पर निशना साधा है.
Congress Slams BJP on Caste Census: जाति जनगणना और मनरेगा के मुद्दे पर कांग्रेस ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करके केंद्र को घेरा है. अपने पोस्ट में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र पर कई आरोप लगाए और सवाल पूछे. हालांकि, कांग्रेस के सवालों पर अबतक बीजेपी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
क्या बोले जयराम रमेश?
जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “लंबे इंतज़ार के बाद बहुप्रचारित 16वीं जनगणना की अधिसूचना आखिरकार जारी हो गई है. लेकिन यह एकदम खोदा पहाड़, निकली चुहिया जैसा है – क्योंकि इसमें 30 अप्रैल 2025 को पहले से घोषित बातों को ही दोहराया गया है.असलियत यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की लगातार मांग और दबाव के चलते ही प्रधानमंत्री को जातिगत जनगणना की मांग के आगे झुकना पड़ा. इसी मांग को लेकर उन्होंने कांग्रेस नेताओं को “अर्बन नक्सल” तक कह दिया था. संसद हो या सुप्रीम कोर्ट – मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना के विचार को सिरे से खारिज कर दिया था. और अब से ठीक 47 दिन पहले, सरकार ने खुद इसकी घोषणा की. हालांकि आज की राजपत्र अधिसूचना में जातिगत गणना का कोई उल्लेख नहीं है. तो क्या यह फिर वही यू-टर्न है, जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी कुख्यात हो चुके हैं? या फिर आगे इसके विवरण सामने आयेंगे? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्पष्ट मत है कि 16वीं जनगणना में तेलंगाना मॉडल अपनाया जाए -यानी सिर्फ जातियों की गिनती ही नहीं बल्कि जातिवार सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़ी विस्तृत जानकारी भी जुटाई जानी चाहिए. तेलंगाना की जातिगत सर्वेक्षण में 56 सवाल पूछे गए थे. अब सवाल यह है कि 56 इंच की छाती का दावा करने वाले नॉन बायोलॉजिकल व्यक्ति में क्या इतनी समझ और साहस है कि वह 16वीं जनगणना में भी 56 सवाल पूछने की भी हिम्मत दिखा सकें?”
मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूछे ये सवाल…
मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल पूछते हुए पोस्ट में लिखा, “मोदी सरकार गरीबों की जीवन-रेखा मनरेगा को तड़पा-तड़पा कर खत्म करने की कवायद में जुटी है. मोदी सरकार ने अब वर्ष के पहले 6 महीनों के लिए मनरेगा खर्च की सीमा 60% तय कर दी है. मनरेगा जो संविधान के तहत RIGHT TO WORK का कानूनी अधिकार सुनिश्चित करती है, उसमें कटौती करना संविधान के खिलाफ अपराध है.
हमारे 5 सवाल —
- क्या ऐसा मोदी सरकार केवल इसलिए कर रही है क्योंकि वो गरीबों की जेब से करीब ₹25,000 करोड़ छीनना चाहती है, जो कि हर साल, साल के अंत तक, demand ज्यादा होने पर उसे अगले वित्तीय वर्ष में अलग से खर्च करने पड़ते हैं?
- चूंकि मनरेगा एक demand-driven योजना है, इसलिए यदि आपदाओं या प्रतिकूल मौसम की स्थिति में पहली छमाही के दौरान मांग में demand की वृद्धि होती है, तो क्या होगा? क्या ऐसी सीमा लागू करने से उन गरीबों को नुकसान नहीं होगा जो अपनी आजीविका के लिए मनरेगा पर निर्भर हैं?
- सीमा पार हो जाने पर क्या होगा? क्या राज्य demand के बावजूद रोजगार देने से इनकार करने के लिए मजबूर होंगे, या श्रमिकों को समय पर भुगतान के बिना काम करना होगा?
- क्या ये सच नहीं कि एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, केवल 7% परिवारों को वादा किए गए 100 दिन का काम मिल पाया है? (लिब टेक, 21 मई तक) करीब 7 करोड़ पंजीकृत वर्करों को मनरेगा से AADHAAR Based Payment की शर्त लगा बाहर क्यों किया गया?
- 10 सालों में मनरेगा बजट का पूरे बजट के हिस्से में सब से कम आवंटन क्यों किया गया? गरीब विरोधी मोदी सरकार, मनरेगा मजदूरों पर जुल्म ढाने पर क्यों उतारू है?
मनरेगा पर खर्च रोकने की कुल्हाड़ी, हर गरीब के जीवन पर मोदी सरकार द्वारा किया गया गहरा आघात है! कांग्रेस पार्टी इसका घोर विरोध करेगी. हम अपनी दो माँगों पर कायम हैं — पहली, मनरेगा श्रमिकों के लिए रोजाना ₹400 की न्यूनतम मजदूरी तय की जाए. दूसरी, साल में कम से कम 150 दिन का काम मिले.”
ये भी पढ़ें- कांग्रेस ने फिर उठाया अदाणी मुद्दा! टैक्स हेवन देशों पर केंद्र सरकार नहीं डाल रही दबाव