मध्य प्रदेश में संथारा की वजह से तीन साल की बच्ची की मौत हुई है. इस मामले के तूल पकड़ने के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मां-बाप, केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा है.
3 Year old girl died due to Santhara: मध्य प्रदेश में संथारा की वजह से तीन साल की बच्ची की मौत की खबर सामने आई है. मामले ने इतना तूल पकड़ा कि अब ये हाई कोर्ट पहुंच गया है. दरअसल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें कहा गया कि बच्ची की ‘संथारा’ संस्कार करवाने के बाद मौत हुई. इस मामले पर अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट भी एक्शन मोड में है और माता-पिता के साथ ही सरकार से भी जवाब मांगा है. इंदौर बेंच के जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी की पीठ ने माता-पिता के अलावा केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी कर दिया है. नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया है. जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 25 अगस्त को हो सकती है.
किसने दायर की जनहित याचिका?
एक्टिविस्ट प्रांशु जैन (23) ने याचिका दायर की है जिसमें कहा गया है कि बच्चों और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को संथारा व्रत लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है. प्रांशु जैन के वकील शुभम शर्मा ने पीटीआई को बताया कि उनकी याचिका में कहा गया है कि संथारा प्रक्रिया शुरू करने से पहले व्यक्ति की सहमति जरूरी होती है. वकील ने कहा, “इस मामले में ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित एक मासूम तीन वर्षीय लड़की को कथित तौर पर संथारा की शपथ लेने के लिए मजबूर किया गया, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई.” लड़की के माता-पिता IT पेशेवर बताए जा रहे हैं.
माता-पिता किया ये दावा
तीन साल की बच्ची की मौत के बाद मचे हंगामे पर माता-पिता ने दावा किया कि उन्हें एक जैन साधु से प्रेरणा मिली थी कि वे इस साल मार्च में अपनी इकलौती बेटी को संथारा की शपथ दिलाएं, उस समय वह ब्रेन ट्यूमर के कारण बहुत बीमार थी और उसे खाने-पीने में कठिनाई हो रही थी. उन्होंने कहा कि साधु द्वारा संथारा से जुड़ी रस्में पूरी करने के तुरंत बाद उसकी मृत्यु हो गई.
क्या है संथारा प्रथा?
संथारा प्रथा, जिसे सल्लेखना भी कहा जाता है, जैन धर्म में एक प्राचीन और पवित्र प्रथा है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से भोजन और जल त्यागकर अपने जीवन का अंत करता है. यह प्रथा आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए की जाती है. संथारा केवल तभी अपनाया जाता है जब व्यक्ति वृद्ध, असाध्य रोगी, या जीवन के अंतिम चरण में हो और उसे लगे कि उसका शरीर आत्मिक साधना में बाधक बन रहा है. यह आत्महत्या नहीं, बल्कि एक नियंत्रित और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति ध्यान, प्रार्थना, और पापों का प्रायश्चित करता है. जैन दर्शन के अनुसार, संथारा आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करने का साधन है. यह प्रथा कठोर नियमों के अधीन होती है और सामुदायिक सहमति के साथ शुरू की जाती है. संथारा लेने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन कम करता है और अंत में पूर्ण उपवास करता है. यह प्रक्रिया शांति और समर्पण के साथ पूरी की जाती है. 2015 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने संथारा को आत्महत्या मानकर प्रतिबंधित किया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले पर रोक लगा दी. जैन समुदाय इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानता है. संथारा जैन धर्म की अहिंसा और आत्म-नियंत्रण की भावना को दर्शाता है.
ये भी पढ़ें- BJP की फैक्ट फाइंडिंग टीम सामने लाई कोलकाता के लॉ कॉलेज में हुए दुष्कर्म का सच, की सिफारिश
