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बच्चे की देखभाल के लिए महिला ने मजबूरी में छोड़ी नौकरी, गुजारा भत्ता पाने की हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

by Sanjay Kumar Srivastava
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Delhi High Court

पति ने दावा किया कि महिला कमाने और खुद तथा बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम थी. वह उच्च शिक्षित और दिल्ली सरकार के एक स्कूल में अतिथि शिक्षिका थी.

New Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक महिला द्वारा अपने बच्चे की देखभाल के लिए एकल अभिभावक के रूप में नौकरी छोड़ना स्वैच्छिक रूप से काम छोड़ना नहीं था और वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार थी. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने 13 मई को एक आदेश में कहा कि इस स्थिति को बच्चे की देखभाल करने के सर्वोच्च कर्तव्य के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है. परिणामस्वरूप, न्यायालय ने एक महिला और उसके नाबालिग बेटे को अंतरिम भरण-पोषण देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया. पति ने ट्रायल कोर्ट के अक्टूबर 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी अलग रह रही पत्नी और बच्चे को 7,500 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था.

बच्चे के लिए 4,500 रुपये मासिक देने का निर्देश

हाईकोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अपने बच्चे के लिए 4,500 रुपये मासिक दे. साथ ही महिला को समान मासिक राशि देना जारी रखे. अदालत ने कहा कि यह अच्छी तरह से मालूम है कि नाबालिग बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसके अभिभावक पर पड़ती है, जिससे अक्सर पूर्णकालिक रोजगार करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है, खासकर उन मामलों में जहां मां के काम पर रहने के दौरान बच्चे की देखभाल के लिए परिवार का कोई समर्थन नहीं होता है. इसलिए फैसले में कहा गया कि महिला द्वारा रोजगार छोड़ने को “स्वैच्छिक रूप से काम छोड़ने के रूप में नहीं देखा जा सकता है, बल्कि बच्चे की देखभाल के सर्वोच्च कर्तव्य के परिणामस्वरूप ऐसा किया जाना चाहिए.

पति ने कहा-महिला उच्च शिक्षित और दिल्ली सरकार के एक स्कूल में थी अतिथि शिक्षिका

पति ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि महिला उच्च शिक्षित थी और पहले दिल्ली सरकार के एक स्कूल में अतिथि शिक्षिका के रूप में काम करती थी, जहां वह ट्यूशन फीस सहित 40 से 50 हजार रुपये मासिक कमाती थी. उसने दावा किया कि महिला कमाने और खुद तथा बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम थी. पति ने तर्क दिया कि पारिवारिक न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार न करके गलती की कि महिला ने अपनी मर्जी से अपना वैवाहिक घर छोड़ा था और न्यायालय के आदेश के बावजूद उसने पति के साथ अपने संबंधों को फिर से शुरू नहीं किया. उसने दावा किया कि वह उसके और नाबालिग बच्चे के साथ रहने को तैयार है.

पति की दलील- वकील के रूप में मिलते थे केवल 10 से 15 हजार रुपये मासिक

पति ने आगे कहा कि वह हरियाणा में एक वकील के रूप में अभ्यास कर रहा था,जहां उसे केवल 10 से 15 हजार रुपये मासिक मिलते थे, इसलिए वह ट्रायल कोर्ट के अंतरिम भरण-पोषण आदेश का पालन करने में असमर्थ था. दूसरी ओर महिला ने दलील दी कि वह बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण काम करने में असमर्थ थी. उसने कहा कि उसका पिछला रोजगार उसके उचित भरण-पोषण से इनकार करने का वैध आधार नहीं था. पत्नी ने तर्क दिया कि उसे आने-जाने में बहुत समय लगता था और उसे घर के पास काम नहीं मिल पाता था, इसलिए उसने अपना शिक्षण करियर छोड़ दिया. अदालत ने महिला की दलील को स्वीकार कर लिया और उसके स्पष्टीकरण को “उचित और न्यायोचित” पाया. पीठ ने कहा कि पुरुष का आय प्रमाण पत्र रिकॉर्ड में नहीं था और उसने पारिवारिक अदालत को अंतरिम भरण-पोषण की याचिका और अंतरिम में व्यवस्था जारी रखने के लिए नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया.

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