राजवीर के वकील विनोद कुमार यादव ने कहा कि मेरा मुवक्किल बार-बार दलील देता रहा कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
Mainpuri (UP): गैंगस्टर एक्ट के मामले में 62 वर्षीय राजवीर को 17 साल बाद न्याय मिला. अदालत ने उन्हें गुरुवार को बरी कर दिया. न्याय 17 साल बाद लंगड़ाता हुआ आया. अपने पीछे छोड़ गया 22 दिन की जेल, 300 अदालती सुनवाई, खोए हुए साल, टूटे हुए पारिवारिक रिश्ते और एक बेटा जिसे पढ़ाई छोड़कर मज़दूरी करनी पड़ी और यह सब, उसके किसी अपराध के लिए नहीं, बल्कि एक लिपिकीय भूल के लिए जो लगभग दो दशकों तक किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. पुलिस ने 31 अगस्त, 2008 को गैंगस्टर एक्ट में राजवीर का नाम दर्ज किया. एक ऐसा आरोप जो कलंक और बर्बादी दोनों लेकर आया. असली आरोपी रामवीर था, लेकिन एक कोतवाली इंस्पेक्टर ने, जो कि जीवन बदल देने वाली बड़ी भूल साबित हुई, नाम राजवीर के रूप में दर्ज कर दिया, जो उसका भाई था.
बेटे को पढ़ाई छोड़ करनी पड़ी मजदूरी
राजवीर के वकील विनोद कुमार यादव ने कहा कि मेरा मुवक्किल बार-बार दलील देता रहा कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. जमानत मिलने से पहले 22 दिनों तक जेल में रखा गया और फिर उसे अकेले ही व्यवस्था से लड़ने के लिए छोड़ दिया गया. 22 दिन जेल में बिताने के बाद राजवीर को ज़मानत मिल गई. राजवीर के वकील ने बताया कि यह तो बस शुरुआत थी उन मुकदमों की कहानी की, जिसमें उसे आगरा से लेकर मैनपुरी तक अदालतों के चक्कर काटने पड़े. मामला 2012 में मैनपुरी से आगरा स्थानांतरित कर दिया गया था. राजवीर ने इन वर्षों में लगभग 300 अदालती सुनवाइयों में हिस्सा लिया. यादव ने कहा कि वह अपने परिवार पर मुश्किल से ध्यान दे पाते थे. उनकी दो बेटियां, जिनमें से एक दिव्यांग है, अब शादीशुदा है. उनके बेटे गौरव को पढ़ाई छोड़नी पड़ी और अब वह मज़दूरी करता है.
अदालत ने पुलिस पर की सख्त टिप्पणी
वकील ने कहा कि एक ऐसा व्यक्ति जो कभी आशावान और मेहनती था, आज कानूनी पचड़े में फंस गया है. उसकी जमा-पूंजी खत्म हो गई, उसकी प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान लग गए और पारिवारिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ. यह सब उसकी अपनी नहीं, बल्कि एक गलती की वजह से. जब विशेष न्यायाधीश स्वप्न दीप सिंघल ने 24 जुलाई को राजवीर को दोषमुक्त करने का आदेश सुनाया, तब जाकर पीड़ित को राहत मिली. अदालत ने कहा कि पुलिस और अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण एक निर्दोष व्यक्ति को 22 दिन जेल में बिताने पड़े और 17 साल तक अदालत में एक झूठा मुकदमा लड़ना पड़ा. राजवीर के लिए, अदालती आदेश कुछ हद तक राहत तो देता है, लेकिन जो उसने खोया है उसकी भरपाई नहीं करता. अब वह अपने मैनपुरी स्थित घर में, वर्षों के बोझ से थोड़ा और झुके हुए, दिन बिताता है. उसके वकील ने कहा कि न्याय तो मिला, लेकिन इसमें इतना समय नहीं लगना चाहिए था. किसी भी निर्दोष व्यक्ति को 17 साल तक व्यवस्था से भीख नहीं मांगनी चाहिए.
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