Uttarkashi Cloud Brust: धराली गांव की यह आपदा उत्तराखंड में बार-बार आने वाली प्राकृतिक त्रासदियों की गंभीरता को रेखांकित करती है. जहां एक ओर लापता लोगों के परिवारों की सांसें थमी हुई हैं, वहीं प्राचीन धरोहर के दबने से संस्कृति पर भी चोट हुई है.
Uttarkashi Cloud Brust: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में कुदरत का कहर एक बार फिर टूटा है. मंगलवार को आए बादल फटने की घटना से गंगोत्री मार्ग पर स्थित धराली गांव का बड़ा हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया. एक ओर जहां दर्जनों लोग लापता हैं, वहीं एक प्राचीन शिव मंदिर भी मलबे में दब गया है. राहत और बचाव कार्य ज़ोरों पर है, लेकिन बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा.
गुमशुदा लोगों की तलाश में जुटी टीमें
मंगलवार दोपहर को धराली गांव में अचानक आई बाढ़ ने पूरे इलाके को चौंका दिया. यह गांव गंगोत्री धाम की यात्रा के प्रमुख पड़ावों में से एक है. यहां हर साल ‘हर दूध मेला’ आयोजित होता है, जिसकी वजह से हादसे के वक्त बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे. अब तक करीब 130 लोगों को सुरक्षित निकाला गया, लेकिन 60 से अधिक लोगों के लापता होने की आशंका जताई जा रही है. अधिकारियों का मानना है कि यह संख्या और भी अधिक हो सकती है. अब तक चार मौतों की पुष्टि हुई है, लेकिन एक भी शव मलबे से नहीं निकाला जा सका है.
11 जवान भी लापता
इस त्रासदी में 11 सैनिकों के भी लापता होने की पुष्टि की गई है. सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव के अनुसार, राहत कार्यों का नेतृत्व 14 राज राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हर्षवर्धन कर रहे हैं, जो 150 जवानों के साथ मौके पर डटे हैं. सेना ने एमआई-17 और चिनूक हेलिकॉप्टरों को भी राहत व बचाव के लिए लगाया है. अपने ही सैनिकों के लापता होने और बेस कैंप को नुकसान पहुंचने के बावजूद, सैनिक हौसले के साथ मिशन में जुटे हैं.
प्राचीन कल्प केदार मंदिर भी मलबे में समाया
केवल इंसानी जान ही नहीं, इस बाढ़ में सांस्कृतिक धरोहर भी दब गई. धराली में स्थित प्राचीन शिव मंदिर ‘कल्प केदार’ भी कुदरती कहर की भेंट चढ़ गया. माना जाता है कि यह मंदिर पहले भी किसी आपदा में जमीन के भीतर दब गया था, जिसकी खोज 1945 में खुदाई के दौरान हुई थी. मंदिर के स्थापत्य में केदारनाथ धाम की झलक मिलती है. विशेष बात यह थी कि यहां श्रद्धालु नीचे उतरकर शिवलिंग की पूजा करते थे, और खीर गंगा का पानी प्राकृतिक रूप से गर्भगृह में पहुंचता था. अब यह मंदिर एक बार फिर मलबे में समा गया है, जिससे स्थानीय लोगों की आस्था को भी गहरा आघात लगा है.
धराली गांव की यह आपदा उत्तराखंड में बार-बार आने वाली प्राकृतिक त्रासदियों की गंभीरता को रेखांकित करती है. जहां एक ओर लापता लोगों के परिवारों की सांसें थमी हुई हैं, वहीं प्राचीन धरोहर के दबने से संस्कृति पर भी चोट हुई है. सेना, स्थानीय प्रशासन और राहत दलों का संघर्ष अभी जारी है, लेकिन सवाल यह भी है, क्या हमारी विकास नीतियां पहाड़ों की सहनशीलता से ज़्यादा भारी होती जा रही हैं?
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