Indian Missiles: भारत की आधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी अब सिर्फ बचाव नहीं, बल्कि दुश्मन को रोकने का सटीक हथियार बन चुकी है.थल, जल और नभ में भारत की ताकत बढ़ाने वाली ये मिसाइलें तकनीकी दृष्टि से इतनी उन्नत हैं कि दुश्मन को पहले ही कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर देती हैं.
Indian Missiles: भारत की आधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी ने अब सिर्फ एक रक्षात्मक ढांचे की भूमिका नहीं, बल्कि एक आक्रामक और रणनीतिक हथियार के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है.यह टेक्नोलॉजी भारत को एक वैश्विक सैन्य शक्ति के रूप में पहचान दिला रही है, जहां थल (जमीन), जल (समुद्र) और नभ (आकाश) – तीनों आयामों में देश की सामरिक ताकत अभूतपूर्व रूप से बढ़ी है.भारत की मिसाइल प्रणाली आज इस मुकाम पर पहुंच चुकी है कि वह किसी भी दुश्मन को पलभर में जवाब देने, उसकी रणनीतियों को विफल करने और उसके मनोबल को तोड़ने की क्षमता रखती है.मिसाइलों में लगी एडवांस तकनीकें जैसे – हाइपरसोनिक गति, स्मार्ट नेविगेशन, मल्टीपल टारगेटिंग सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेजर्स – इन्हें अत्यधिक सटीक और भरोसेमंद बनाती हैं.इनका असर केवल युद्ध के मैदान में नहीं बल्कि कूटनीतिक और भू-राजनीतिक मोर्चों पर भी दिखता है.पड़ोसी देशों को भारत की इस शक्ति का आभास हो चुका है, जिसके चलते वे कोई भी कदम उठाने से पहले कई बार सोचने को मजबूर हो जाते हैं.
भारतीय रक्षा प्रणाली की यह अगली पीढ़ी की मिसाइलें अब सिर्फ एक देश की जरूरत नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी हैं.
भारत की रक्षा रणनीति में मिसाइलों की भूमिका हुई बेहद अहम
बीते कुछ वर्षों में भारत ने सिर्फ हथियारों की संख्या नहीं बढ़ाई, बल्कि उनके पीछे की तकनीक को भी अत्याधुनिक बनाया है. 2025-26 के बजट में 6.81 लाख करोड़ रुपये का सुरक्षा आवंटन इस बात का संकेत है कि भारत अब ‘रिएक्टिव’ नहीं, बल्कि ‘प्रोएक्टिव’ रक्षा नीति अपना रहा है.इसमें से लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये सिर्फ मिसाइलें और रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए निर्धारित किए गए हैं, जबकि 31 हजार करोड़ रुपये रक्षा अनुसंधान और विकास पर खर्च होंगे. यह दर्शाता है कि भारत अब सिर्फ आयात पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि आत्मनिर्भर बनकर खुद की तकनीक को मजबूती देगा.
छोटी लेकिन घातक- शॉर्ट रेंज मिसाइलें

भारत की शॉर्ट-रेंज टैक्टिकल मिसाइलें बेहद खतरनाक साबित हो रही हैं. पृथ्वी-I और पृथ्वी-II मिसाइलें क्रमशः 150 से 350 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन को निशाना बना सकती हैं.वहीं, प्रहार मिसाइल 150 से 500 किलोमीटर तक की दूरी में सटीक हमला करने में सक्षम है. इसका खास फायदा यह है कि किसी भी सीमावर्ती संघर्ष में भारत तुरंत जवाब दे सकता है, वो भी कम समय में और ज्यादा सटीकता के साथ. शौर्य मिसाइल, जो हाइपरसोनिक गति और न्यूक्लियर कैपेबिलिटी के साथ आती है, उसे तेज़ी से तैनात किया जा सकता है और यह दुश्मन की रडार में आने से पहले ही लक्ष्य भेद सकती है.
पानी के अंदर से मार- बैलिस्टिक सबमरीन मिसाइलों का खेल

भारत की जल आधारित मिसाइल क्षमता भी दिन-ब-दिन मजबूत हो रही है. K-15 ‘सागरिका’, K-4 और आगामी K-6 जैसी मिसाइलें भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत आधार बन चुकी हैं. इनकी रेंज 750 किलोमीटर से लेकर 6,000 किलोमीटर तक है और इनमें MIRV (Multiple Independently Targetable Reentry Vehicle) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है, जो एक साथ कई लक्ष्यों को अलग-अलग दिशाओं में नष्ट कर सकती है.
स्मार्ट और सटीक- एंटी टैंक और एयर-टू-एयर मिसाइलें
नाग, हेलिना, SANT और MPATGM जैसी मिसाइलें भारत की जमीनी लड़ाई में बेहद उपयोगी हैं। ये मिसाइलें “फायर एंड फॉरगेट” मोड में काम करती हैं और टॉप अटैक प्रोफाइल से टैंक जैसे भारी वाहनों को पूरी तरह तबाह कर देती हैं. वहीं, आकाश और QRSAM जैसी जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें देश की हवाई सुरक्षा के लिए एक मजबूत कवच बन चुकी हैं. ये मिसाइलें 25 से 80 किलोमीटर की दूरी तक दुश्मन के विमानों और मिसाइलों को हवा में ही मार गिराने में सक्षम हैं.
लंबी दूरी के ‘शेर’- अग्नि और क्रूज मिसाइलें

भारत की अग्नि श्रृंखला – अग्नि-I से लेकर अग्नि-V तक – इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) क्षमता रखती है. इनमें अग्नि-V की रेंज 5,500 किलोमीटर से अधिक है, जो भारत को वैश्विक स्तर पर एक ‘स्ट्रैटेजिक पावर’ के रूप में स्थापित करती है. इसके अलावा ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें भी भारत के पास हैं, जो कम ऊंचाई पर उड़ती हैं और दुश्मन को चौंकाते हुए निशाना साधती हैं.
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