Indian Army Dress: इंडियन आर्मी की ड्रेस में गुजरते वक्त के साथ कई बड़े बदलाव हुए हैं. इन बदलावों के साथ कई कहानियां और दिलचस्प इतिहास भी जुड़ा हुआ है.
Indian Army Dress: इंडियन आर्मी अपनी बहादुरी के लिए जानी जाती है और समय-समय पर इसकी ड्रेस भी बदलती रही है. इंडियन आर्मी की ड्रेस इसके जज्बे और बहादुरी का भी प्रतीक है. ये महज एक कपड़ा नहीं बल्कि कभी न झुकने और टूटने वाले हौसले को दर्शाती है जिसका हर देशवासी सम्मान करता है. ब्रिटिश काल से मौजूदा वक्त तक इसमें कई बदलाव हो चुके हैं और इंडियन आर्मी की ड्रेस का इतिहास भी काफी पुराना है. हर ड्रेस के साथ ही एक कहानी भी जुड़ी है. जैसे-जैसे भारतीय सेना आधुनिक हो रही है, वैसे-वैसे ही इसकी ड्रेस से लेकर कई चीजों में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. आज हम इंडियन आर्मी की ड्रेस में हुए बदलाव और इसके इतिहास पर ही नजर डालेंगे.
लाल से खाकी तक का सफर है काफी दिलचस्प
भारतीय सशस्त्र बलों की ड्रेस इसके औपनिवेशिक अतीत से विरासत में मिली. लाल रंग की ड्रेस में ब्रिटिश सैन्य परंपरा साफतौर पर दिखाई पड़ती थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब बंगाल में डेरा डाला तो देश को तीन प्रेसिडेंसी बंगाल, बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी में बांट दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस दौरान स्थानीय लोगों की सिपाही के रूप में नियुक्ति करनी शुरू की. उस दौरान जिन स्थानीय लोगों को सेना में भर्ती किया गया वो लाल रंग की ड्रेस पहना करते थे.

लाल से खाकी हुई ड्रेस
लाल रंग की वर्दी जब सिपाही पहना करते थे तो उन्हें युद्द के मैदान में आसानी से पहचाना जा सकता था जो एक बड़ी समस्या बन गई और बदलाव की जरुरत महसूस की गई. साल 1848 में सर हैरी बर्नेट लम्सडेन और विलियम स्टीफ़न राइक्स हॉडसन ने लाल की जगह खाकी रंग की ड्रेस पेश की. खाकी एक उर्दू शब्द है जिसका मतलब होता है धूल या मिट्टी का रंग. भारतीय मौसम और कंडिशन के लिहाज से खाकी रंग काफी जंचा और ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे काफी पसंद किया. खाकी रंग की वजह से युद्ध के मैदान में सैनिकों को पहचानना काफी मुश्किल हो गया यानी कि इस रंग की पेशकश कामयाब हुई ये तरीका काफी कारगर साबित हुआ. खाकी को 1857 तक पूरे भारत में अपना लिया गया. दुनिया के कई देश इस रंग के मुरीद हो गए.

1947 में मिली राष्ट्रीय पहचान
1947 में जब भारत ने स्वतंत्रता का स्वाद चखा तो ब्रिटिश भारतीय सेना का नाम बदलकर भारतीय सेना रख दिया गया. पाकिस्तानी सेना से खुद को अलग दिखाने के लिए भारतीय सेना ने अपनी खाकी ड्रेस को जैतून-हरे रंग की लड़ाकू वर्दी से बदला. भारतीय सेना की ड्रेस से ब्रिटिश प्रतीकों को हटा दिया गया और उसकी जगह राष्ट्रीय प्रतीकों को लगा दिया गया. जहां पाकिस्तान की सेना ने अपनी आर्मी की ड्रेस के लिए आधे चांद का निशान चुना तो वहीं भारतीय सेना ने अशोक चिह्न को अपनाया.

मुश्किल चुनौती के लिए फिर हुआ बदलाव
1980 और 1990 के दशक के दौरान भारतीय सेना को ड्रेस के रंग की वजह से काफी जटिलताओं का सामना करना पड़ा खासतौर से पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर जैसे बेहद संवेदनशील इलाकों में. इसकी वजह से ड्रेस के कलर को ऐसा करने की जरुरत महसूस हुई कि कोई भी उसे आसानी से पहचान न सके और रंग भी दिखाई ना पड़े. 1980 के दशक में भारतीय सेना की ड्रेस में मिट्टी के हरे और भूरे रंग को जोड़ा गया ताकि सैनिक जंगलों और पहाड़ी इलाकों में इस तरह घुल-मिल जाएं कि उन्हें दुश्मन पहचान न सकें.

साल 2000 में भी हुआ बदलाव
साल 2000 में इंडियन आर्मी की ड्रेस में एक और बड़ा बदलाव हुआ. इस दौरान फ्रांसीसी सेना में इस्तेमाल पैटर्न को भारतीय जरुरतों के हिसाब से अपनाया गया. इस पैटर्न की मदद से मुश्किल हालातों में सैनिकों का वहां की कंडिशन्स का इस्तेमाल करना और भी आसान हो गया यानी कि ऐसा पैटर्न ताकि वो आसानी से दिखाई न पड़ें और दुश्मन के बेहद करीब पहुंचकर उसे ढेर कर सकें. इंडियन आर्मी की ड्रेस का ये वही पैटर्न था जिसे हमने करीब दो दशकों तक बॉलीवुड में देखा. ये पैटर्न जंगलों और ऊंचाई वाले इलाकों के लिए तो बिल्कुल उपयुक्त था लेकिन राजस्थान जैसे रेगिस्तानी इलाकों में ये कारगर साबित नहीं हुआ.

2022 में हुआ ऐतिहासिक बदलाव
2022 में इंडियन आर्मी की ड्रेस में एक और बड़ा बदलाव हुआ. सेना दिवस के मौके पर भारतीय सेना ने अपनी नई वर्दी लॉन्च की जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के साथ डिजाइन किया गया. इस नई ड्रेस में कॉटन-पॉलिएस्टर भी मिक्स था जिसकी वजह से वर्दी हल्की होने के साथ ही अधिक हवादार हो गई और जल्दी सूख सकती थी. जंगलों से लेकर रेगिस्तान जैसी कंडिशन के लिए ये ड्रेस बिल्कुल उपयुक्त साबित हुई. ये रंग आसानी से नहीं दिखता है.
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