Home Top News चुप्पी और झिझक से महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा ये जानलेवा रोग, हर साल 75,000 लोगों की होती है मौत

चुप्पी और झिझक से महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा ये जानलेवा रोग, हर साल 75,000 लोगों की होती है मौत

by Sanjay Kumar Srivastava
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cervical cancer

विशेषज्ञों ने कहा कि प्रारंभिक अवस्था में इसका उपचार काफी संभव है. यदि इसका शीघ्र पता चल जाए तो 95 प्रतिशत मामलों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है.

Mumbai: विशेषज्ञों ने गुरुवार को कहा कि गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर ( cervical cancer) से हर साल करीब 75,000 लोगों की मौत हो जाती है, इसलिए महिलाओं को संदेह, चुप्पी और झिझक को दूर कर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है. उन्हें नियमित एवं समय पर जांच कराने की जरूरत बताई गई.विशेषज्ञों ने कहा कि गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है, जो हर साल करीब 75,000 लोगों की जान ले लेता है. ऐसा अक्सर देर से पता चलने के कारण होता है. टाटा मेमोरियल सेंटर की उप निदेशक, कैंसर महामारी विज्ञान केंद्र, डॉ. गौरवी मिश्रा ने टाटा ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि प्रारंभिक अवस्था में इसका उपचार अत्यधिक संभव है. यदि इसका शीघ्र पता चल जाए तो 95 प्रतिशत मामलों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है.

लक्षणों को नजरअंदाज करती हैं महिलाएं

फिर भी कई महिलाएं समय पर जांच नहीं कराती हैं. उन्होंने कहा कि लाखों महिलाएं लक्षणों को नजरअंदाज करती हैं. कहा कि महिलाएं या तो सर्वाइकल कैंसर और इसके लक्षणों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण या डर, कलंक और चुप्पी की संस्कृति के कारण जो जांच में देरी का कारण बनती है. ये महिलाएं सिर्फ ग्रामीण इलाकों से नहीं हैं, उनमें से कई युवा, शिक्षित और शहरी इलाकों से भी हैं. उन्होंने कहा कि यह जांच बिना किसी लक्षण के भी 30 साल की उम्र से शुरू करके नियमित अंतराल पर करवानी चाहिए. टीएमसी की मनो-कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सविता गोस्वामी ने कहा कि आमतौर पर महिलाएं कैंसर से जुड़े होने के डर से जांच कराने से हिचकिचाती हैं.

30-65 साल की महिलाओं में ज्यादा असर

उन्होंने कहा कि टाटा ट्रस्ट्स ने पिछले साल झारखंड, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में राज्य सरकारों व साझेदारों के साथ मिलकर 26,000 से ज़्यादा सर्वाइकल कैंसर की जांच की है. इससे उन प्रमुख भावनात्मक और सामाजिक बाधाओं का पता चला है जो महिलाओं को मदद लेने से रोकती हैं, भले ही वह उपलब्ध हो. भारत में 30-65 साल की महिलाओं में सबसे ज्यादा सर्वाइकल कैंसर का असर पाया गया है. मुख्य चुनौतियां कम जागरूकता और संकोच है.

लक्षणों के न होने पर भी रहता है जोखिम

कहा कि जिन महिलाओं को शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं, वे उन्हें सर्वाइकल कैंसर से नहीं जोड़तीं और जो देखती हैं, वे शर्म या डर के कारण कार्रवाई में देरी कर देती हैं. टाटा कैंसर केयर फ़ाउंडेशन के चिकित्सा संचालन प्रमुख डॉ. रुद्रदत्त श्रोत्रिय ने कहा कि कई महिलाएं इस तथ्य से भी अनजान हैं कि लक्षणों के न होने पर भी जोखिम मौजूद हो सकता है, जिससे जांच ज़रूरी हो जाती है. उन्होंने कहा कि टाटा ट्रस्ट्स ने एक सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, ‘खुद से जीत’ शुरू किया है, जो महिलाओं से समय पर गर्भाशय-ग्रीवा कैंसर की जांच कराने और अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करता है.

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