Bombay High Court News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें एक शख्स ने एक नाबालिग से दुष्कर्म करने के बाद उससे शादी कर ली. आरोपी ने अपील करके केस को रद्द करने की मांग की थी.
Bombay High Court News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस मामले में सख्त रुख अपनाया है जिसमें एक शख्स ने नाबालिग से शादी करने के बाद पॉक्सो एक्ट के तहत लगे केस को खत्म करने की अपील की. हाई कोर्ट ने कहा कि उसे सिर्फ इसलिए पॉक्सो अधिनियम के तहत लगे आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता है. क्योंकि उसने नाबालिग से विवाह कर लिया और अब उनका एक बच्चा भी है. नागपुर की पीठ के न्यायमूर्ति उर्मिला फाल्के और नंदेश देशपांडे ने 26 सितंबर को पारित आदेश में उस व्यक्ति की दलील को खारिज करने से इनकार कर दिया जिसमें उसने 17 साल की लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाए थे और उसने पंजीकरण तभी कराया जब लड़की 18 साल की हो गई.
कोर्ट ने की याचिका खारिज
कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों के साथ संबंध में तथ्यात्मक सहमति पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत अप्रासंगिक है. अदालत ने उस व्यक्ति और उसके परिवार की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया. आरोपी समेत परिवार वालों पर भारतीय न्याय संहिता, पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता की शादी के समय उम्र 17 साल की थी और इस साल मई में उसने एक बच्चे को जन्म दिया. आपको बताते चलें कि यौन उत्पीड़न होने की जानकारी उसके परिवार को मिलने के बाद आरोपी से उसकी शादी करा दी गई. आरोपी ने दावा किया की वह सहमति से लड़की के साथ संबंध में था और उसकी लड़की के 18 साल की उम्र पूरी करने के बाद हुई थी.
पॉक्सो का काम बच्चों को सुरक्षा देना
आरोपी ने आगे दावा किया कि अगर उस पर मुकदमा चलाया जाता है तो इसका प्रभाव लड़की के साथ बच्चे पर भी पड़ेगा. साथ ही उन्हें समाज में भी स्वीकार नहीं किया जाएगा. दूसरी तरफ लड़की भी अदालत में पेश हुई जहां पर उसने भी एफआईआर रद्द करने पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की. कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि पॉक्सो एक्ट का मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन उत्पीड़न और बाल पोर्नोग्राफी से बचाना है. यही वजह है कि पॉक्सो एक्ट लाया गया. साथ ही यह भी कहा कि किशोर प्रेम के लिए आयु वर्ग क्या होनी चाहिए यह सवाल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है. वर्तमान मामले में अभियुक्त और पीड़िता का कहना है कि विवाह मुस्लिम रीति रिवाजों से हुआ है, लेकिन तथ्य यह है कि उस समय उसकी आयु 18 साल से कम थी.
गैर-कानूनी कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
कोर्ट ने कहा कि जब लड़की ने बच्चे को जन्म दिया तो उस वक्त भी उसकी उम्र 18 साल नहीं थी. अदालत ने कहा कि आरोपी की शादी के समय उसकी उम्र 27 साल थी और उसे समझना चाहिए था कि उसे लड़की को 18 साल का इंतजार करना चाहिए था. पीठ ने कहा कि लड़की ने अब बच्चे को जन्म दे दिया है तो आरोपी को गैर-कानूनी कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
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