Supreme Court: न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र और सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
Supreme Court: अंबाला में एक वरिष्ठ नागरिक दंपति से 1.05 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल गिरफ्तारी के बढ़ते मामलों पर कड़ी चिंता जताई है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र और सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जालसाजों ने अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों का इस्तेमाल कर यह धोखाधड़ी की थी. यह मामला तब सामने आया जब 73 वर्षीय पीड़िता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा, जिसके बाद कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया. पीठ ने कहा कि निर्दोष लोगों को डिजिटल रूप से गिरफ्तार करने के लिए अदालतों के आदेशों और न्यायाधीशों के हस्ताक्षरों की जालसाजी करना न्यायिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास पर हमला है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के घोटालों में अक्सर वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाया जाता है. सीबीआई पहले से ही ऐसे घोटालों की जांच कर रही है.
1 करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी और हरियाणा सरकार व अंबाला साइबर अपराध विभाग को वरिष्ठ नागरिक दंपति के मामले में अब तक की गई जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. यह मामला पीड़ित महिला द्वारा अदालत के संज्ञान में लाया गया था. पीड़िता ने आरोप लगाया था कि घोटालेबाजों ने कई बैंक लेनदेन के माध्यम से 1 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की. आरोपियों ने इसके लिए 3 से 16 सितंबर के बीच दंपति की गिरफ्तारी और निगरानी के लिए स्टाम्प और सील के साथ एक जाली अदालती आदेश तैयार किया. महिला ने कहा कि अदालत के आदेश को सीबीआई और ईडी अधिकारी के रूप में आरोपियों द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कई ऑडियो और वीडियो कॉल के माध्यम से दिखाया गया था. इस मामले में शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के विभिन्न प्रावधानों के तहत अंबाला में साइबर अपराध विभाग में दो एफआईआर दर्ज की गई थी.
धोखाधड़ी न्यायिक संस्थानों पर हमला
शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों के जाली हस्ताक्षरों वाले न्यायिक आदेश कानून के शासन के अलावा न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करता है. इस तरह की धोखाधड़ी संस्था की गरिमा पर सीधा हमला है. पीठ ने आगे कहा कि इस तरह के गंभीर आपराधिक कृत्य को धोखाधड़ी या साइबर अपराध के सामान्य या एकल अपराध के रूप में नहीं माना जा सकता. पीठ ने कहा कि हम इस तथ्य का भी न्यायिक संज्ञान लेना चाहते हैं कि यह मामला एकमात्र मामला नहीं है. मीडिया में कई बार यह बताया गया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे अपराध हुए हैं. इसलिए हमारा मानना है कि न्यायिक दस्तावेजों की जालसाजी, निर्दोष लोगों खासकर वरिष्ठ नागरिकों से जबरन वसूली/डकैती से जुड़े आपराधिक मामलों की पूरी तरह पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच कार्रवाई और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है.
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