Dhanteras Katha : कल से धनतेरस का पावन पर्व मनाया जाएगा. हर साल दीपावली के दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा. ऐसे में क्या आपको इससे जुड़ी कथा मालूम है?
Dhanteras Katha : इस साल 20 अक्टूबर को दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. इसके पहले यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर को धनतेरस सेलिब्रेस किया जाना है. इसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन बर्तन, झाड़ू और सोना-चांदी खरीदना बेहद शुभ माना जाता है. साथ ही यह सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इस खास मौके पर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और यमराज की पूजा की जाती है. ऐसे में इस आर्टिकल के जरिए आइए जानते हैं धनतेरस की कथा के बारे में.
धनतेरस का महत्व
धनतेरस के त्योहार दीवाली की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक जब समुद्र मंथन हुआ तो भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. इसके कारण यह दिन ‘धनतेरस’ के नाम से जाना जाता है. भगवान धन्वंतरि को स्वास्थ्य और आयुर्वेद के देवता भी माना जाता है, इसलिए इस दिन उन्हें आरोग्य और दीर्घायु के लिए पूजते हैं. इस दिन माता लक्ष्मी और कुबेर की आराधना भी की जाती है, जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहे.
स्वास्थ्य और आयुर्वेद के भी जनक हैं भगवान धन्वंतरि
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना जाता है और भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है जिन्होंने समाज को चिकित्सा विज्ञान यानी कि आयुर्वेद का ज्ञान दिया. इसी कारण धनतेरस के दिन देशभर में वैद्य समाज भगवान धन्वंतरि जयंती के रूप में उनकी पूजा करता है.
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समुद्र मंथन के दौरान हुए थे प्रकट
ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. इस दौरान उनके हाथ में सोने का कलश था जिसके देखकर देवताओं ने इसे अमृत का प्रतीक माना. तब से लेकर इस दिन बर्तन और सोना-चांदी खरीदने की परंपरा शुरू हुई. इस दिन सोना, बर्तन और झाड़ू खरीदने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
क्या है धनतेरस की पौराणिक कथा
धनतेरस की कथा इस प्रकार है कि एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेते समय उन्हें दया आई है. इस सवाल को सुनते एक यमदूत ने बताया कि एक बार ऐसा हुआ जब एक नवविवाहिता अपने पति की मृत्यु पर विलाप कर रही थी, तब उसका हृदय पसीज गया था. कथा की माने तो एक दिन हंस नामक राजा शिकार पर गया था और रास्ता भटक गया. भटकते-भटकते वह दूसरे राज्य में पहुंच गया. वहां के शासक हेमा ने पड़ोसी राजा का आदर-सत्कार किया. उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया था. तब ज्योतिषियों ने बताया कि अगर इस बालक का विवाह होता है, तो उसकी 4 दिन बाद मृत्यु हो जाएगी. तब राजा ने अपने बेटे को यमुना तट पर एक गुफा में रखा ताकि वहां स्त्रियों की परछाईं भी उस पर न पड़े. लेकिन ऐसा हो न सका और संयोगवश राजा हंस की बेटी वहां चली गई. ब्रह्मचारी के वहां मौजूद राजकुमार को देख उस पर मोहित हो गई. दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया और 4 दिन बाद ही राजकुमार की मृत्यु हो गई. तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का दुख देखकर हृदय पसीज गया था.
अकाल मृत्यु से इत तरह बच सकता है मनुष्य
कथा के अनुसार जब यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके. तब यमराज ने कहा कि धनतेरस पर विधि विधान से पूजा-अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती. इसलिए इस दिन यमराज, माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है.
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