Supreme Court News : सुप्रीम कोर्ट में बौद्ध संगठन ने एक अर्जी पर विचार करने के लिए दी. इसमें दावा किया गया है कि कुछ हिंदू पर्सनल कानून बौद्धों पर भी लागू होते हैं जो उनके मौलिक अधिकार के खिलाफ हैं.
Supreme Court News : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लॉ कमीशन से एक बौद्ध संगठन की उस अर्जी पर विचार करने के लिए कहा है. बौद्ध संगठन का मानना है कि कुछ पर्सनल हिंदू कानून, जो बौद्धों पर भी लागू होते हैं वह फंडामेंटल राइट्स के खिलाफ हैं, जिसमें धर्म मानने की आजादी भी शामिल है. चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ एक्शन कमेटी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए लॉ कमीशन से कहा कि वह इस अर्जी को एक रिप्रेजेंटेशन के तौर पर देखे कि कई कानूनी नियम में बौद्ध कम्युनिटी के फंडामेंटल राइट्स और कल्चरल प्रैक्टिस के खिलाफ हैं. अगर इस तरह की कई गलतियां मिलती हैं तो उसमें बदलाव करने की जरूरत है और उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
21वां लॉ कमीशन कर रहा है विचार
वर्तमान कानून प्रक्रिया के मुताबिक, बौद्धों पर भी हिंदुओं जैसे ही पर्सनल लॉ लागू होते हैं, जैसे कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956 और हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 में बताया गया है. वहीं, संविधान की धारा 25 के तहत हिंदू की परिभाषा में बौद्ध, जैन और सिख शामिल हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि क्या आप संविधान और पर्सनल लॉ में बदलाव करने के लिए आदेश चाहते हैं? आपने सरकारी अथॉरिटी से कहां संपर्क किया है और आप चाहते हैं कि केशवानंद भारती और बेसिक स्ट्रक्चर में भी बदलाव करें. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कानून और न्याय मंत्रालय के दिसंबर 2024 के एक संवाद पर भी ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि 21वां लॉ कमीशन यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) पर अपनी बातचीत में इस मुद्दे पर लगातार विचार कर रहा है. साथ ही इस मुद्दें पर विभिन्न लोगों की भी राय मांगी गई है.
लॉ कमीशन बदलाव के लिए रिकमेंडेशन देता है
वहीं, पिटीशनर के वकील ने कहा कि भारत में बौद्धों की एक अलग कम्युनिटी है और इस बारे में कई बार रिप्रेजेंटेशन दी जा चुकी हैं. अब पीठ ने कहा है कि लॉ कमीशन देश की एकमात्र एक्सपर्ट बॉडी है, जिसको सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज या हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हेड करते हैं. साथ ही लॉ कमीशन ऐसे कॉन्स्टिट्यूशनल बदलावों के लिए रिकमेंडेशन दे सकता है. बेंच ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि लॉ कमीशन नए कानूनों में बदलाव, उन्हें रद्द करने और हमारे संवैधानिक मूल्यों और नैतिकता के हिसाब से बनाने की सलाह देता है. साथ ही शीर्ष अदालत किसी कानून या नियमों को बनाने या हटाने के लिए रिट ऑफ मैंडेमस जारी नहीं कर सकता है. पिटीशनर ट्रस्ट भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार के लिए काम कर रहा है. उनका कहना है कि कुछ नियम बौद्धों के मौलिक अधिकार के खिलाफ हैं. बेंच ने कहा कि लॉ पैनल ने इस मुद्दे पर होलिस्टिक व्यू लिया और उसी के हिसाब से सुझाव दिए.
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