Top 5 scams in history of Indian market: ये पांच घोटाले सिर्फ अपराध नहीं थे, ये चेतावनी थे, बाजार की सतर्कता, नियामकों की सजगता और निवेशकों की समझदारी के लिए. हर बार जब बाजार चमकता है, ये घटनाएं याद दिलाती हैं कि अंधी कमाई की दौड़ में सच सबसे बड़ा मूल्य होता है.
Top 5 scams in history of Indian market: भारतीय शेयर बाजार का इतिहास जितना रोमांचक है, उतना ही घोटालों से भरा भी रहा है. कुछ घोटाले इतने बड़े और चौंकाने वाले थे कि उन्होंने न केवल बाजार की नींव हिला दी, बल्कि निवेशकों की विश्वास प्रणाली को भी गहरी चोट पहुंचाई. इन घोटालों के पीछे जो नाम हैं, वे आज भी लोगों की जबान पर हैं- नायक नहीं, बल्कि चेतावनी के रूप में. आइए नजर डालते हैं भारत के 5 सबसे कुख्यात शेयर बाजार घोटालों पर, जिनका असर आज भी महसूस किया जाता है.
हर्षद मेहता स्कैम (1992)

जब ‘बिग बुल’ ने बैंकिंग को शेयर बाजार से जोड़ा, 1992 का घोटाला भारतीय स्टॉक मार्केट की सबसे काली घटनाओं में से एक माना जाता है. हर्षद मेहता, जिन्हें कभी ‘बिग बुल’ कहा जाता था, ने सरकारी बैंकों की धनराशि का दुरुपयोग कर शेयर बाजार में कृत्रिम तेजी पैदा की. उन्होंने बैंक रसीदों (BRs) और लूपहोल्स का इस्तेमाल कर लगभग ₹4000 करोड़ का घोटाला किया. जैसे ही यह घोटाला सामने आया, बाजार में जबरदस्त गिरावट आई और लाखों निवेशकों की पूंजी डूब गई. इस घोटाले ने भारत की वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता की नई मांग खड़ी की.
केतन पारेख स्कैम (2001)

जब टेक बूम बना ‘K-10’ स्टॉक्स का जाल, हर्षद मेहता के शिष्य माने जाने वाले केतन पारेख ने एक नई रणनीति अपनाई – तकनीकी और मीडिया कंपनियों के शेयरों में फर्जी तेजी. ‘K-10 स्टॉक्स’ नामक दस कंपनियों में उन्होंने कृत्रिम ट्रेडिंग से शेयर के दाम आसमान पर पहुंचा दिए. फर्जी वित्त पोषण, सह-बैंकिंग और क्रॉस-होल्डिंग्स से ₹1000 करोड़ से अधिक का घोटाला किया गया. जब बुलबुला फूटा, तो बाजार हिला और निवेशकों को फिर से भारी नुकसान उठाना पड़ा.
सत्यम कंप्यूटर स्कैम (2009)

जब एक IT कंपनी का सच तकनीक से भी तेज निकला, सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज एक भरोसेमंद आईटी कंपनी मानी जाती थी, लेकिन उसके चेयरमैन रामलिंगा राजू ने खुद माना कि उन्होंने कंपनी की बैलेंस शीट में वर्षों तक ₹7000 करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी की. नकली बिलिंग, काल्पनिक कर्मचारियों और फर्जी लाभ के जरिए उन्होंने निवेशकों और नियामकों को भ्रमित किया. यह घोटाला भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर बड़ा सवाल बनकर उभरा और SEBI तथा MCA की कार्यप्रणाली में कई सुधार हुए.
एनएसई को-लोकेशन स्कैम (2015-2018)

इस घोटाले में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के कुछ हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स को ‘को-लोकेशन’ सुविधा का विशेष और अनुचित लाभ दिया गया.इससे वे आम निवेशकों की तुलना में कुछ मिलीसेकंड पहले डेटा तक पहुँच पाते थे, जिससे वे गलत तरीके से मुनाफा कमाते रहे. इस तकनीकी धोखाधड़ी ने सवाल उठाए कि क्या बाजार में वाकई सभी को समान अवसर मिलते हैं? इस केस ने रेगुलेटरी सिस्टम की निगरानी शक्ति को नए स्तर पर पहुँचा दिया.
अडानी-हिंडनबर्ग विवाद (2023)

जब वैश्विक रिपोर्ट ने एक साम्राज्य को हिला दिया हालिया वर्षों में सबसे चर्चित मामला रहा अमेरिकी फर्म ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए आरोप. रिपोर्ट में स्टॉक मैनिपुलेशन, अत्यधिक मूल्यांकन और शेल कंपनियों के जरिए धन के प्रवाह का दावा किया गया. इस रिपोर्ट के बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में जबरदस्त गिरावट आई और निवेशकों की चिंता चरम पर पहुंच गई. हालांकि समूह ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन इस विवाद ने भारत में कॉर्पोरेट पारदर्शिता की बहस को फिर हवा दी.
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