Home Education एम्स में दिव्यांग MBBS उम्मीदवार को दाखिला देने का निर्देश, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बदलनी होगी मानसिकता

एम्स में दिव्यांग MBBS उम्मीदवार को दाखिला देने का निर्देश, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बदलनी होगी मानसिकता

by Sanjay Kumar Srivastava
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Supreme Court of India

सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अप्रैल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड द्वारा छात्र के नए मूल्यांकन का निर्देश दिया था.

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा पास करने वाले दिव्यांग उम्मीदवार को सीट आवंटित करने का निर्देश दिया है. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कबीर पहाड़िया की याचिका पर अपने आदेश में कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 में निहित उचित आवास दान का मामला नहीं बल्कि मौलिक अधिकार है, जिनकी पांच अंगुलियां आधी बढ़ी हुई हैं और उन्हें उनकी चलने-फिरने की दिव्यांगता के कारण एमबीबीएस में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अप्रैल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड द्वारा उनके नए मूल्यांकन का निर्देश दिया था.

अपीलकर्ता ने NEET-UG 2024 में हासिल की है उच्च रैंक

बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि पहाड़िया ने विभिन्न कार्यों के दौरान अपनी मौजूदा उंगलियों का उपयोग करके कार्यात्मक अनुकूलन का प्रदर्शन किया. पहाड़िया ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता को प्रवेश देने से इनकार करना हमारे संवैधानिक ढांचे में निहित समान अवसर और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को भी कमजोर करती है. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें लगता है कि मानसिकता बदलनी चाहिए. मामूली विचलन किसी भी तरह से अपीलकर्ता को प्रवेश देने से वंचित नहीं कर सकता. उसने NEET-UG 2024 में उच्च रैंक हासिल की है.

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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) और बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूबीडी) के मौलिक अधिकारों और सम्मान की रक्षा यह सुनिश्चित करके की जानी चाहिए कि उनकी क्षमताओं का मूल्यांकन व्यक्तिगत, साक्ष्य आधारित और रूढ़िवादी धारणाओं से मुक्त हो, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. 2016 के अधिनियम के तहत बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों की परिभाषा ऐसे व्यक्तियों के रूप में की गई है जिनकी दिव्यांगता 40 प्रतिशत या उससे अधिक है, जैसा कि किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित किया गया हो.

दिव्यांग व्यक्तियों का बहिष्कार करने के बजाए दी जाएं सुविधाएं

पीठ ने अपने 2 मई के फैसले में कहा कि मौलिक समानता का संवैधानिक जनादेश मांग करता है कि दिव्यांग व्यक्तियों और बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी क्षमताओं के आधार पर बहिष्कार करने के बजाय उचित सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि 2024-2025 शैक्षणिक सत्र में काफी प्रगति हुई है और इस प्रकार उक्त सत्र में अपीलकर्ता को प्रवेश देना समीचीन नहीं होगा. पीठ ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को आगामी शैक्षणिक सत्र में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में अनुसूचित जाति पीडब्ल्यूबीडी कोटे के तहत एमबीबीएस यूजी पाठ्यक्रम 2025 में एक सीट आवंटित की जाएगी.

कोई भी योग्य उम्मीदवार एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश से न हो वंचित

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित करने की प्रक्रिया दो महीने के भीतर पूरी करने का भी निर्देश दिया ताकि पीडब्ल्यूबीडी श्रेणी में कोई भी योग्य उम्मीदवार अपने अधिकार के बावजूद एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित न हो. याचिकाकर्ता की ओर से न्यायमूर्ति वीके जैन, जो दोनों ही बेंचमार्क विकलांगता (शून्य दृष्टि) से पीड़ित हैं, उपस्थित हुए, जबकि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की ओर से न्यायमित्र गौरव अग्रवाल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे उपस्थित हुए. न्यायालय ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के विरुद्ध प्रणालीगत भेदभाव समाप्त हो तथा प्रवेश प्रक्रिया में समान अवसर और सम्मान के उनके अधिकार को बरकरार रखा जाए. पहाड़िया ने एनईईटी में 720 में से 542 अंक प्राप्त किए थे. उनकी विकलांगता को “दोनों हाथों में कई अंगुलियों की जन्मजात अनुपस्थिति और बाएं पैर (दूसरे और तीसरे पैर की अंगुली) की भागीदारी के रूप में वर्णित किया गया है, जिसकी सीमा 42 प्रतिशत आंकी गई है.

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