Movies based on small town: आज की फिल्मों में छोटे शहरों की कहानियां सिर्फ सेटिंग नहीं, बल्कि किरदार बन चुकी हैं. ‘भूल चूक माफ’ जैसी फिल्में दर्शकों को एक बार फिर यह एहसास कराती हैं कि छोटे शहरों के लोगों, उनकी भाषा और उनकी जिंदगियों में जितनी सादगी होती है, उतनी ही गहराई भी.
Movies based on small town: बॉलीवुड में अब सिर्फ मेट्रो शहरों की चमक-धमक नहीं, बल्कि छोटे शहरों की आत्मा भी कहानियों का अहम हिस्सा बन रही है. जहां पहले फिल्मों का फोकस दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों पर होता था, वहीं अब देश के छोटे शहरों की गलियों, बोली-बानी, और संस्कृति को भी बड़े पर्दे पर खूबसूरती से उकेरा जा रहा है. जल्द रिलीज होने वाली फिल्म ‘भूल चूक माफ’ इसका ताजा उदाहरण है, जिसमें वाराणसी की मोहब्बत और माहौल दोनों दर्शकों को लुभाने वाले हैं.
राजकुमार राव की फिल्म ‘भूल चूक माफ’ की कहानी वाराणसी के एक प्रेमी जोड़े पर आधारित है. हालांकि यह फिल्म टाइम लूप जैसे दिलचस्प कॉन्सेप्ट पर बनी है, लेकिन साथ ही इसमें बनारस की गलियों, घाटों और ठेठ देसी माहौल की झलक भी देखने को मिलेगी. ये पहली फिल्म नहीं है जिसने किसी छोटे शहर को कहानी का अहम हिस्सा बनाया हो. इससे पहले भी कई फिल्मों ने भारत के दिल यानी छोटे शहरों की आत्मा को कहानी में पिरोया है और दर्शकों को उन जगहों से जोड़ दिया है.
बरेली की बर्फी (2017)

अश्विनी अय्यर तिवारी द्वारा निर्देशित इस फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में सेट है. कृति सेनन की बिट्टी मिश्रा, आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव के किरदारों के साथ फिल्म ने बरेली की बोली, संस्कृति और वहां के खुले मिजाज को बेहद दिलचस्प अंदाज में दिखाया. यह फिल्म छोटे शहरों की सोच और रिश्तों की उलझनों को सहजता से बयान करती है.
तनु वेड्स मनु (2011)

कानपुर की पृष्ठभूमि पर बनी आनंद एल राय की यह रोमांटिक कॉमेडी फिल्म भी छोटे शहर की मिठास लिए हुए है. कंगना रनौत की तनु और आर माधवन के मनु के बीच की प्रेम कहानी के साथ-साथ कानपुर की गलियों, वहां के लोकल अंदाज और शादी-ब्याह के रंगत को बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है.
टॉयलेट: एक प्रेम कथा (2017)

श्री नारायण सिंह द्वारा निर्देशित इस फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव नंदगांव पर आधारित थी. यह फिल्म समाज में खुले में शौच के मुद्दे को उठाती है और ग्रामीण भारत की जीवनशैली को दर्शाती है. अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की जोड़ी ने इस सामाजिक संदेश को हास्य और भावना के साथ लोगों के सामने पेश किया.
दम लगा के हइशा (2015)

शरत कटारिया की यह फिल्म 1990 के दशक के हरिद्वार को दर्शाती है. फिल्म की कहानी में न सिर्फ प्रेम और स्वीकृति की बात होती है, बल्कि उस दौर की भाषा, फैशन, गाने और शहर के धार्मिक माहौल को भी बखूबी दिखाया गया है. आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला.
जॉली एलएलबी 2 (2017)

इस फिल्म में लखनऊ शहर की कोर्ट-कचहरी, वहां की गलियों और स्थानीय राजनीति की झलक देखने को मिलती है. सुभाष कपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अक्षय कुमार एक जमीनी वकील के किरदार में हैं, जो सिस्टम से लड़ता है. फिल्म में लखनऊ की तहजीब और भाषा को भी बखूबी दर्शाया गया.
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