Home Top News सियोल का बड़ा ऐलान! 2018 की सैन्य संधि बहाल करने का वादा, प्योंगयांग से संवाद की नई पुकार

सियोल का बड़ा ऐलान! 2018 की सैन्य संधि बहाल करने का वादा, प्योंगयांग से संवाद की नई पुकार

by Jiya Kaushik
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Korean Politics: उत्तर कोरिया की कठोर स्थिति, रूस के साथ उसकी नजदीकियां और परमाणु कार्यक्रम इस संवाद प्रक्रिया की सबसे बड़ी बाधाएं हैं. अब नजर इस बात पर है कि क्या सियोल की यह शांति पहल कूटनीतिक गतिरोध को तोड़ पाएगी या नहीं.

Korean Politics: दक्षिण कोरिया के नए उदारवादी राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने ऐलान किया है कि उनकी सरकार 2018 की अंतर-कोरियाई सैन्य संधि को बहाल करने की दिशा में काम करेगी. इस समझौते का उद्देश्य सीमा पर तनाव कम करना और दोनों देशों के बीच सैन्य भरोसा बढ़ाना था. यह कदम पिछली सरकार की कड़ी नीतियों से बिल्कुल विपरीत है और ऐसे समय में आया है जब उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षाएं और रूस के साथ उसकी नजदीकियां बढ़ रही हैं.

कोरिया की जापानी उपनिवेशवाद से मुक्ति की 80वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने एक टेलीविज़न संबोधन में कहा कि उनकी सरकार “2018 की 19 सितंबर की सैन्य संधि” को चरणबद्ध तरीके से बहाल करने के लिए सक्रिय कदम उठाएगी. उन्होंने उत्तर कोरिया से अपील की कि वह आपसी भरोसा बहाल करने और संवाद पुनः शुरू करने के लिए सियोल के प्रयासों का सकारात्मक जवाब दे.

2018 की सैन्य संधि और उसका महत्व

2018 में तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रपति मून जे-इन और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के बीच हुए समझौते ने भूमि, समुद्र और वायु में बफर ज़ोन बनाए थे, ताकि सीमा पर झड़पों से बचा जा सके. इसके तहत दोनों देशों ने अग्रिम मोर्चे पर प्रचार गतिविधियां और आक्रामक सैन्य अभ्यास रोकने पर सहमति जताई थी.

पिछली सरकार का रुख और तनाव की वापसी

2024 में दक्षिण कोरिया की रूढ़िवादी सरकार ने यह समझौता निलंबित कर दिया था, जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण की ओर कचरे से भरे गुब्बारे भेजने शुरू किए. इसके बाद सियोल ने अग्रिम मोर्चे पर सैन्य गतिविधियां और प्रचार अभियानों को फिर से शुरू किया. इस दौरान, उत्तर कोरिया पहले ही घोषणा कर चुका था कि वह इस संधि का पालन नहीं करेगा.

ली जे म्युंग का संदेश और नीति में बदलाव

राष्ट्रपति ली ने कहा, “दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच आकस्मिक झड़पों को रोकने और सैन्य भरोसा बनाने के लिए हम सक्रिय और क्रमिक कदम उठाएंगे. हम उत्तर के मौजूदा सिस्टम का सम्मान करते हैं और किसी भी प्रकार के ‘एब्जॉर्प्शन यूनिफिकेशन’ (शामिल करके एकीकरण) का प्रयास नहीं करेंगे, न ही किसी शत्रुतापूर्ण कार्रवाई में शामिल होंगे.”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया के निरस्त्रीकरण के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के प्रति प्रतिबद्ध है, लेकिन यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होगी जिसे केवल संवाद और सहयोग से ही संभव किया जा सकता है.

उत्तर कोरिया की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक चुनौती

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उत्तर कोरिया इस पहल पर कैसी प्रतिक्रिया देगा. हाल ही में किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग ने सियोल की सरकार पर व्यंग्य करते हुए कहा कि वह “झूठे दावे” कर रही है कि उत्तर ने अपने अग्रिम मोर्चे के लाउडस्पीकर हटा दिए हैं. उत्तर कोरिया ने पहले ही कहा है कि उसे दक्षिण या अमेरिका के साथ संवाद में कोई तत्काल रुचि नहीं है, खासकर तब जबकि दक्षिण कोरिया और अमेरिका का संयुक्त सैन्य अभ्यास होने वाला है, जिसे प्योंगयांग अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है.

रूस-उत्तर कोरिया गठजोड़ और क्षेत्रीय समीकरण

विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर कोरिया वर्तमान में दक्षिण कोरिया या अमेरिका के साथ बातचीत को प्राथमिकता नहीं दे रहा, बल्कि रूस के साथ अपने रिश्तों को गहरा कर रहा है. 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से प्योंगयांग ने मास्को को हजारों सैनिक और बड़ी मात्रा में हथियार, तोपखाना और मिसाइलें भेजी हैं. यह सैन्य सहयोग न केवल कोरियाई प्रायद्वीप में बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी तनाव बढ़ा रहा है. ली जे म्युंग का यह कदम कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की दिशा में एक नई पहल हो सकती है, लेकिन मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियां इसे बेहद चुनौतीपूर्ण बना रही हैं.

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