Israel-Iran Conflict: सूत्रों के अनुसार, ट्रंप की ईरान पर तत्काल हमले की कोई योजना नहीं थी, लेकिन कूटनीति के रास्ते बंद होने के कारण यह कदम उठाना पड़ा.
Israel-Iran Conflict: इजरायल और ईरान के बीच चल रही जंग ने अब और विनाशकारी मोड़ ले लिया है, क्योंकि अमेरिका भी इस युद्ध में कूद पड़ा है. बीती रात अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज और इस्फाहान पर भीषण बमबारी की. हिंद महासागर के डिएगो गार्सिया में बने अमेरिका-ब्रिटेन के संयुक्त सैन्य अड्डे से उड़े B-2 स्पिरिट बॉम्बर ने बंकर बस्टर बमों से इन ठिकानों को निशाना बनाया. सबसे ज्यादा हमले फोर्डो न्यूक्लियर साइट पर हुए, जो जमीन के 90 मीटर नीचे बना है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद इस हमले की पुष्टि की और ईरान को युद्धविराम की सलाह दी. लेकिन सवाल यह है कि आखिर अमेरिका ने 15 दिन की मोहलत खत्म होने से पहले ही जंग में कूदने का फैसला क्यों लिया?
कूटनीति का ठप पड़ना
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप की ईरान पर तत्काल हमले की कोई योजना नहीं थी, लेकिन कूटनीति के रास्ते बंद होने के कारण यह कदम उठाना पड़ा. बीते दिनों जिस तरह के हालात बने, उनकी गंभीरता को देखते हुए ट्रंप ने सेना को हमले का आदेश दिया. अमेरिका का मानना है कि ईरान के साथ बातचीत का कोई रास्ता नहीं बचा, जिसके चलते परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना जरूरी हो गया.
खामेनेई पर निशाना
हमले की दूसरी बड़ी वजह ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई हैं. अमेरिका और इजरायल लंबे समय से खामेनेई को निशाना बनाना चाहते हैं. खामेनेई अपने परिवार के साथ पहाड़ी के अंदर बने एक गुप्त बंकर में छिपे हैं. इस बंकर की लोकेशन का पता है, लेकिन इसे नष्ट करने की क्षमता केवल अमेरिका के पास है. हालांकि अभी परमाणु ठिकानों पर ही हमले हुए हैं, लेकिन भविष्य में खामेनेई के बंकर को भी निशाना बनाया जा सकता है.
परमाणु बम को रोकना
अमेरिका का मुख्य लक्ष्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है. उसे शक है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु बम विकसित कर रहा है. इजरायल और अमेरिका ने मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों की पहचान की, जिनमें फोर्डो सबसे महत्वपूर्ण है. इस ठिकाने को नष्ट करने की क्षमता केवल अमेरिका के पास है, जिसके चलते उसने हमला किया. ईरान भले ही परमाणु बम बनाने से इनकार करता हो, लेकिन उसका परमाणु कार्यक्रम हमेशा से विवादों में रहा है.
मुस्लिम देशों का डर
ईरान एक शक्तिशाली मुस्लिम देश है. अगर वह परमाणु बम बना लेता है, तो अन्य मुस्लिम देश उसका समर्थन कर सकते हैं. इससे मुस्लिम देश एकजुट होकर अमेरिका के खिलाफ खड़े हो सकते हैं. अमेरिका, जो खुद को वैश्विक महाशक्ति मानता है, किसी अन्य देश को इस स्थिति में नहीं देखना चाहता. इसलिए ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकने के लिए अमेरिका ने यह हमला किया.
ये भी पढ़ें..ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका की एंट्री, तीन न्यूक्लियर साइट्स पर हमला, ट्रंप का बड़ा बयान