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गुजरात हाईकोर्ट का बड़ा फैसलाः प्रतिकूल टिप्पणी पर जज को दी जा सकती है अनिवार्य सेवानिवृत्ति

by Sanjay Kumar Srivastava
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Gujarat High Court

Gujarat High Court: गुजरात उच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों से उच्च नैतिक मूल्यों के साथ पूरी ईमानदारी बरतने का आह्वान किया है.

Gujarat High Court: गुजरात उच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों से उच्च नैतिक मूल्यों के साथ पूरी ईमानदारी बरतने का आह्वान किया है. कहा है कि किसी न्यायाधीश के पूरे सेवा रिकॉर्ड में उसके खिलाफ एक भी प्रतिकूल टिप्पणी या उसकी ईमानदारी पर सवाल उसकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त आधार है. न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति एलएस पीरजादा की पीठ ने मंगलवार को सुनाए गए अपने आदेश में कहा कि ऐसे न्यायिक अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी करना भी आवश्यक नहीं है क्योंकि जनहित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दंड के समान नहीं है. याचिकाकर्ता जेके आचार्य, जो एक तदर्थ सत्र न्यायाधीश हैं और जिन्हें उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत ने नवंबर 2016 में 17 अन्य सत्र न्यायाधीशों के साथ अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था, की दलीलों को खारिज कर दिया. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रत्येक न्यायाधीश को अपने न्यायिक कर्तव्य का निर्वहन ईमानदारी, निष्पक्षता और बौद्धिक ईमानदारी के साथ करना चाहिए क्योंकि वह जनता के विश्वास का पद संभालते हैं.

कारण बताओ नोटिस जरूरी नहीं

हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि पूरे सेवा रिकॉर्ड में एक भी असंप्रेषित प्रतिकूल टिप्पणी या संदिग्ध निष्ठा, किसी न्यायिक अधिकारी को जनहित में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के लिए पर्याप्त है. पीठ ने कहा कि ऐसे न्यायिक अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के पूर्ण न्यायालय के न्यायाधीश किसी न्यायिक अधिकारी को उसकी सामान्य प्रतिष्ठा के आधार पर उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत न होने पर भी अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर सकते हैं. ऐसे आदेश की न्यायिक समीक्षा केवल बहुत सीमित आधारों पर ही स्वीकार्य है. हाईकोर्ट की नीति के तहत 50 और 55 वर्ष की आयु के न्यायाधीशों का मूल्यांकन करने और जिनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं पाया गया, उन्हें सेवानिवृत्त करने के लिए आचार्य को 17 अन्य सत्र न्यायाधीशों के साथ अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया गया था. आचार्य ने इस फैसले के साथ-साथ इसे लागू करने में राज्य सरकार और राज्यपाल की कार्रवाई को भी चुनौती दी थी.

जनता के विश्वास का पद है न्यायाधीश

अदालत ने कहा कि जनहित या प्रशासन के हित में अनिवार्य/समयपूर्व सेवानिवृत्ति का आदेश कोई सज़ा नहीं है. अदालत ने कहा कि हम दोहराना चाहेंगे कि कभी-कभी संदिग्ध निष्ठा को साबित करने और उसे रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए ठोस या भौतिक साक्ष्य जुटाना बहुत मुश्किल होता है. सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए आदेश में न्यायाधीशों से अपेक्षित उच्च नैतिक मानकों को रेखांकित किया गया. कहा कि एक न्यायाधीश जिस पद पर होता है वह जनता के विश्वास का पद होता है. एक न्यायाधीश को त्रुटिहीन निष्ठा और निर्विवाद स्वतंत्रता वाला व्यक्ति होना चाहिए. उसे उच्च नैतिक मूल्यों के साथ मूल रूप से ईमानदार होना चाहिए. एक लोकतंत्र के फलने-फूलने और कानून के शासन को जीवित रखने के लिए न्याय प्रणाली और न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत होना होगा. प्रत्येक न्यायाधीश को अपने न्यायिक कार्यों को निष्ठा, निष्पक्षता और बौद्धिक ईमानदारी के साथ निर्वहन करना होगा.

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