Bhopal Gas Tragedy: 2 दिसंबर 1984 की भयानक रात आज भी भोपाल के लोगों को डराती है, जब जहरीली हवा ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था.
3 December, 2025
Bhopal Gas Tragedy: भारत के इतिहास की सबसे भयानक रात थी 2 दिसंबर 1984 की, जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चैन की नींद सो रहे लोग अगली सुबह उठे ही नहीं. उस भयानक रात में एक जहरीली हवा ने खामोशी के साथ हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया. 2-3 दिसंबर की रात को हवा में एक ऐसा जहर मिल गया, जिसने कुछ ही घंटों में 2500 से 3000 लोगों की जान ले ली. जिंदा लोग तो मारे गए ही, गर्भ में पल रहीं जानें भी नहीं बच सकीं. इतना ही नहीं जहर इस कदर भोपाल के मिट्टी, पानी और हवा में मिल गया है कि आज भी वहां बच्चे दिव्यांग पैदा हो रहे हैं.
फैक्ट्री से लीक हुआ जहर
भोपाल में यूनियन कार्बाइड लिमिटेड नाम की फैक्ट्री थी, जहां कीटनाशक दवाएं बनती थीं. स्थानीय लोगों के लिए वह फैक्ट्री रोजगार का एक जरिया भी थी, लेकिन 2-3 दिसंबर की रात को इसी फैक्ट्री ने भोपाल में लोगों की जिंदगियां छीन लीं. फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 से खतरनाक गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव होने लगा. कुछ ही घंटों में यह गैस भोपाल शहर की हवा, मिट्टी और पानी में मिल गई. 40 टन जहरीली गैस धीरे धीरे आस पास की गलियों और घरों में घुसकर लोगों की सांसों में समा गई.

सड़कों पर बिछी थी लाशें
लोगों का दम घुटने लगा और उनकी आंखें जलने लगीं. वे तड़प-तड़पकर जमीन पर गिर गए. धीरे-धीरें उनकी सांसे रुक गईं. चारों तरफ चीख-पुकार मच गया. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यह अचानक क्या हो गया. कुछ ही घंटों में पूरा शहर गैस चैंबर में तब्दील हो गया था, जिससे बाहर निकलना संभव नहीं था. अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लग गई, लेकिन डॉक्टरों को भी समझ नहीं आ रहा था कि एक गैस का असर कैसा रोका जाए. बच्चों समेत लोग मदद की तलाश में सड़कों पर भागने लगे और आखिर में वहीं गिर गए. सुबह तक सड़कों पर लाशें बिछी हुई दिखी. अगली सुबह किसी को यकीन नहीं हुआ कि रातभर भोपाल जिंदगी के लिए तड़प रहा था.
41 साल बाद भी डराती है वो रात
पहले दो दिनों में ही 50 हजार लोगों का इलाज किया गया, लेकिन पीड़ितों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि संसाधन कम पड़ गए. इस हादसे में तुरंत लगभग 3000 लोगों की जान चली गई और हजारों लोग हमेशा के लिए शारीरिक रूप से कमजोर हो गए. सरकारी आंकड़ों में कुल मरने वालों की संख्या 5000-5500 तक है, लेकिन कई स्वतंत्र रिपोर्ट्स 20-22 हजार लोगों के मारे जाने की बात कहती हैं. यहां तक कि उस समय की गर्भवती महिलाओं ने बाद में ऐसे बच्चों को जन्म दिया जो शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर पैदा हुए. इस भयानक हादसे के बाद कारोबार-बाजार सब ठप हो गया. लोग ट्रेनों में भर-भरकर पलायन करने लगे. आज उस प्रलय को बीते हुए 41 साल हो गए हैं. आज भी उस भयानक रात को याद करके लोगों की रूह कांप जाती है.

जहरीला कचरा अब भी मौजूद
गैस त्रासदी के 41 साल बाद भी, जहरीले कचरे का खतरा कम नहीं हुआ है. अब उस कचरे को जलाने से बनी 899 टन ज़हरीली राख मध्य प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के लिए एक नया सिरदर्द बन गई है. यह राख मई- जून 2025 के बीच पीथमपुर ट्रीटमेंट प्लांट में यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन कचरे को जलाने के दौरान बनी थी. खतरनाक राख एक शेड में लीक-प्रूफ कंटेनरों में पड़ी है और इसे फेंकने का कोई साफ सिस्टम नहीं है. आज भी पीड़ित सही मुआवजे और न्याय की मांग कर रहे हैं.
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