Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें राजनैतिक दलों और कॉर्पोरेट के बीच लेन-देन की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच कराने की मांग की गई है.
25 April, 2024
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट के बीच लेन-देन की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच कराने की मांग की गई है. इसके अलावा पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को केंद्र सरकार की तरफ से राजनीतिक फंडिंग के लिए शुरू की गई, साथा ही इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) योजना को रद्द कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, योजना के तहत अधिकृत वित्तीय संस्थान, भारतीय स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग (ईसी) के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड संबंधी डेटा शेयर किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सार्वजनिक किया गया था. केंद्र सरकार ने दो जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना लागू की थी. इसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए, राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले कैश दान के विकल्प के रूप में लाया गया था.
आर्थिक स्रोतों की जांच करने का निर्देश देने की मांग
NGO कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की तरफ से दायर याचिका में इसे “घोटाला” बताते हुए “शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों” के आर्थिक स्रोतों की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई है. वकील प्रशांत भूषण के जरिए दायर याचिका में कंपनियों की तरफ से दान किए गए पैसे को “क्विड प्रो क्वो व्यवस्था” के हिस्से के रूप में वसूलने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया फैसला
इसके अलावा बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच का यह फैसला लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया, साथ ही 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में SBI के चेयरमैन की ओर से हलफनामा दायर कर कहा गया था कि बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) से संबंधित तमाम डिटेल चुनाव आयोग को सौंप दिया है. इनमें बॉन्ड का यूनिक नंबर भी शामिल है. यूनिक नंबर उजागर होने से इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) के खरीददार का बॉन्ड भुनाने वाली राजनीतिक पार्टियों का पता चल चुका है.
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