CBI investigation : सीबीआई (CBI) ने पिछले साल दिसंबर में रोहतास जिले के सासाराम में एक डिनर पार्टी में बिहार पुलिस के एक डिप्टी एसपी (DSP)और उनके अंगरक्षक द्वारा कथित तौर पर एक व्यक्ति की हत्या की जांच अपने हाथ में ले ली है.
CBI investigation : सीबीआई (CBI) ने पिछले साल दिसंबर में रोहतास जिले के सासाराम में एक डिनर पार्टी में बिहार पुलिस के एक डिप्टी एसपी (DSP)और उनके अंगरक्षक द्वारा कथित तौर पर एक व्यक्ति की हत्या की जांच अपने हाथ में ले ली है. दो पुलिस अधिकारियों और एक पीड़ित के भाई द्वारा दिए गए बयान के आधार पर एजेंसी ने राज्य पुलिस की तीन एफआईआर (FIR) को फिर से दर्ज किया है. मामला उन आरोपों पर केंद्रित है कि राणा ओम प्रकाश और उनके दोस्त अपने दोस्त शिवम सिंह का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्र हुए थे, जब उपाधीक्षक (यातायात) आदिल बिलाल और उनके अंगरक्षक चंद्रमौली नागिया अज्ञात व्यक्तियों के साथ आए और पूछताछ करने लगे. जब ओम प्रकाश और उसके दोस्तों ने इसका विरोध किया, तो बिलाल और नागिया ने उन्हें धमकाया और अचानक सर्विस रिवॉल्वर से गोली चला दी, जिसमें प्रकाश की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दो अन्य अतुल सिंह और विनोद पाल घायल हो गए.
पुलिस पर डीएसपी को बचाने का आरोप
नागिया के अनुसार, वह और बिलाल एक बाइक सवार का पीछा कर रहे थे, जो उस परिसर में घुस आया था जिसमें प्रकाश और अन्य मौजूद थे. पुलिस को देखते ही उन्होंने नागिया और बिलाल पर हमला कर दिया और उनकी सर्विस बंदूकें छीनने की कोशिश की. इस झड़प में गलती से रिवॉल्वर चल गई. इकट्ठी हुई भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया, जिन्हें अपनी जान बचाने के लिए गोलियां चलानी पड़ीं. नागिया ने अपने बयान के आधार पर दर्ज एफआईआर में कहा था. इस मामले में स्वीकार किए गए तथ्य यह हैं कि एक व्यक्ति की मौत हो गई है और दो अन्य व्यक्ति घायल हो गए हैं, जब वे घटनास्थल पर एकत्र हुए थे. न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने कहा था कि दो और एफआईआर दर्ज की गई हैं. एक डीएसपी के अंगरक्षक द्वारा और दूसरी स्थानीय एसएचओ द्वारा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि घटना हुई थी. न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस उस डीएसपी को बचाने की कोशिश कर रही है, जिस पर मृतक पर गोली चलाने का आरोप है.
पुलिस एकतरफा बयान नहीं दर्ज कर सकतीः कोर्ट
उन्होंने कहा कि पुलिस उपाधीक्षक के अंगरक्षक और स्थानीय थाने के एसएचओ के कहने पर दर्ज की गई एफआईआर प्रथम दृष्टया कहानी पर नियंत्रण करने और जांच की दिशा को विकृत करने का एक पूर्व-प्रयास प्रतीत होता है. पुलिस जल्दबाजी में एकतरफा/विकृत बयान दर्ज नहीं कर सकती और इस तरह पीड़ित के बयान को गलत साबित नहीं कर सकती. न्यायाधीश ने कहा कि वर्तमान मामले में, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस शुरू से ही याचिकाकर्ता द्वारा अपने भाई की हत्या के बारे में दर्ज कराए गए मामले को गलत साबित करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में पुलिस अधिकारी स्वयं आरोपी हैं. याचिकाकर्ता के इस तर्क में दम देखना अनुचित नहीं होगा कि सच्चाई को उजागर करने के लिए घटना की गहन जांच की जानी चाहिए. यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि न्याय का उद्देश्य पूरा हो. उन्होंने कहा कि सीबीआई जैसे सक्षम, विश्वसनीय, निष्पक्ष और निष्पक्ष कर्मियों के निकाय द्वारा वास्तविक सच्चाई को उजागर करके इस चुनौती का सामना किया जा सकता है.
ये भी पढ़ेंः मुंबई में कबूतरों को दाना डालने पर रोक से जैन समुदाय और मराठी संगठन आमने-सामने, कई हिरासत में
