Lok Sabha polls: यह मामला सिर्फ ओडिशा ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चुनावी सिस्टम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता की परीक्षा है. अब सबकी निगाहें ओडिशा हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो आने वाले चुनावों के लिए एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है.
Lok Sabha polls: 2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों को लेकर बीजू जनता दल (BJD) ने चुनाव आयोग (ECI) की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं. आठ महीनों से चली आ रही अनुत्तरित शिकायतों के बाद अब पार्टी ने विधिवत रूप से ओडिशा हाईकोर्ट का रुख करने का बड़ा फैसला किया है. यह कदम न केवल चुनाव आयोग की जवाबदेही तय करने की दिशा में अहम माना जा रहा है, बल्कि पूरे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की साख पर भी नई बहस छेड़ सकता है.
चुनावी प्रक्रिया में भारी अनियमितताओं का आरोप
BJD के प्रवक्ता अमर पटनायक, विधायक ध्रुव चरण साहू और पूर्व सांसद शर्मिष्ठा सेठी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पार्टी ने दिसंबर 2024 में चुनाव आयोग को विस्तृत शिकायत दी थी. इस शिकायत में EVM मतगणना में भारी विसंगतियों, वोटों की संख्या में असंगतियां, मतदान समय के बाद वोटों में 7 से 30 प्रतिशत तक की अप्रत्याशित बढ़ोतरी जैसे गंभीर मुद्दे शामिल थे. इन गड़बड़ियों ने चुनाव की निष्पक्षता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाया है.
राजनीतिक बयानबाजी से परे, सच्चाई की मांग
BJD ने स्पष्ट किया है कि उनका यह कदम किसी राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से अलग है. अमर पटनायक ने कहा कि जबकि कांग्रेस ने भी चुनावी धोखाधड़ी और ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाए हैं, BJD का फोकस चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और तकनीकी ऑडिट पर है. राहुल गांधी की ऑडिट सिस्टम की मांग के बाद यह कदम और भी प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि यह जनता में चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक है.
चुनाव आयोग से प्रभावी सुधार की मांग
BJD ने चुनाव आयोग से चुनावी प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की है. इसमें मतदाता सूची से लेकर वोटों की गिनती तक हर कदम का ऑडिट शामिल है.साथ ही पार्टी ने सभी वोटों के लिए वीवीपैट (VVPAT) मशीनों के उपयोग पर जोर दिया है, जैसा कि विकसित देशों में चल रहा है. अमर पटनायक ने कहा कि भारत में भी इसे लागू करना लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य है.
BJD का हाईकोर्ट का रास्ता चुनना चुनावी लोकतंत्र में जवाबदेही की मांग को मजबूत करता है. यह मामला सिर्फ ओडिशा ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चुनावी सिस्टम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता की परीक्षा है. अब सबकी निगाहें ओडिशा हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो आने वाले चुनावों के लिए एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है.
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