ट्राई ने दूरसंचार विभाग (डीओटी) को अपनी सिफारिशों में कहा कि शहरी क्षेत्रों में उपग्रह आधारित ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं देने वाले ऑपरेटरों को प्रति ग्राहक सालाना 500 रुपये अतिरिक्त देने होंगे.
New Delhi: अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के अनुरोध को ठुकराते हुए ट्राई ने आदेश दिया है कि वह अपने कुल राजस्व का 4 प्रतिशत स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में सरकार को भुगतान करे. जबकि स्टारलिंक ने इसे 1 प्रतिशत से कम रखने और कोई अन्य शुल्क नहीं लगाने का आग्रह किया था. एजीआर वह राशि है जिसे दूरसंचार कंपनियां सरकार को राजस्व के रूप में साझा करती हैं, जिसमें दूरसंचार और गैर-दूरसंचार दोनों स्रोतों से प्राप्त राजस्व शामिल होता है. दूरसंचार नियामक ट्राई ने शुक्रवार को सिफारिश की कि स्टारलिंक जैसी उपग्रह संचार कंपनियां अपने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) का 4 प्रतिशत स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में सरकार को भुगतान करे. यह दर इन फर्मों द्वारा की जा रही मांग से कहीं अधिक है.
ऑपरेटरों को प्रति ग्राहक सालाना 500 रुपये देने होंगे अतिरिक्त
ट्राई ने दूरसंचार विभाग (डीओटी) को अपनी सिफारिशों में कहा कि शहरी क्षेत्रों में उपग्रह आधारित ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं देने वाले ऑपरेटरों को प्रति ग्राहक सालाना 500 रुपये अतिरिक्त देने होंगे. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क लागू नहीं होगा. अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क की स्टारलिंक और अमेजन इंक की सहायक कंपनी कुइपर सिस्टम्स ने ट्राई के साथ परामर्श के दौरान स्पेक्ट्रम शुल्क को एजीआर के 1 प्रतिशत से कम रखने और कोई अन्य शुल्क नहीं लगाने का आग्रह किया था.उपग्रह स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण गैर-भूस्थिर उपग्रह कक्षा और भूस्थिर उपग्रह कक्षा आधारित स्थिर उपग्रह सेवा और मोबाइल उपग्रह सेवा दोनों के लिए है.
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स्पेसएक्स का भारत में रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के साथ करार
ट्राई ने कहा कि एजीआर स्पेक्ट्रम शुल्क का 4 प्रतिशत न्यूनतम वार्षिक स्पेक्ट्रम शुल्क 3,500 रुपये प्रति मेगाहर्ट्ज के अधीन होगा. स्टारलिंक को इस सप्ताह की शुरुआत में अपनी सेवाएं शुरू करने के लिए आशय पत्र (LoI) मिला था. अब इसे भारत में सेवाएं शुरू करने से पहले लाइसेंस हासिल करना होगा. एलन मस्क के नेतृत्व वाली एयरोस्पेस कंपनी स्पेसएक्स ने पहले ही भारत में स्टारलिंक की ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं लाने के लिए प्रतिद्वंद्वियों रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के साथ करार किया है. दोनों भारतीय कंपनियां अपने नेटवर्क के जरिए स्टारलिंक उपकरण उपलब्ध कराएंगी और उपकरणों पर ग्राहक की स्थापना और सक्रियण का भी समर्थन करेंगी.
एलन मस्क की स्टारलिंक को जल्द मिलेगा लाइसेंस
एयरटेल समर्थित यूटेलसैट वनवेब और जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशन को भारत में सैटकॉम सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) सेवा लाइसेंस पहले ही मिल चुका है, जबकि एलन मस्क के नेतृत्व वाली स्टारलिंक को जल्द ही लाइसेंस मिलने वाला है. पिछले वर्ष अक्टूबर में सरकार ने वायु तरंगों के आवंटन के मुद्दे पर मस्क का पक्ष लिया था. भारत की सबसे बड़ी वायरलेस सेवा प्रदाता कंपनी जियो और दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश में दूसरे नंबर की कंपनी एयरटेल, जहां डेटा का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, दोनों को डर था कि कम प्रवेश लागत के कारण उनके ग्राहक आधार में कुछ कमी आएगी.
स्टारलिंक स्पेसएक्स द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा लो-अर्थ-ऑर्बिट (LEO) तारामंडल
ट्राई की सिफारिशों के आधार पर दूरसंचार विभाग अब उपग्रह स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण के लिए मंत्रिमंडल के पास जाएगा और एक बार मंजूरी मिलने के बाद भारत में सेवाएं देने के इच्छुक कोई भी सैटकॉम आवेदन कर सकता है. स्टारलिंक स्पेसएक्स द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा लो-अर्थ-ऑर्बिट (LEO) तारामंडल है. भारती पहले से ही दूसरे सबसे बड़े LEO तारामंडल, यूटेलसैट वनवेब के साथ साझेदारी कर रही है. इसी तरह जियो प्लेटफॉर्म्स का SES के साथ एक संयुक्त उद्यम है, जो एक प्रमुख वैश्विक उपग्रह-आधारित सामग्री कनेक्टिविटी समाधान प्रदाता है. जियो स्पेस टेक्नोलॉजी लिमिटेड,जहां जियो की 51 फीसदी और एसईएस की 49 फीसदी हिस्सेदारी है, मल्टी-ऑर्बिट स्पेस नेटवर्क का उपयोग करेगी जो कि जियोस्टेशनरी (GEO) और मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO) उपग्रह तारामंडल का संयोजन है. स्टारलिंक वर्तमान में 6 हजार से अधिक LEO उपग्रहों का संचालन करता है, जबकि अमेज़न की कुइपर परियोजना 2025 की शुरुआत में 3,236 उपग्रहों को तैनात करने की योजना बना रही है.
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