Home Latest News & Updates इलाहाबाद हाईकोर्ट की निजी अस्पतालों पर सख्त टिप्पणीः कहा- मरीजों को ATM मशीन समझ रखे हैं नर्सिंग होम

इलाहाबाद हाईकोर्ट की निजी अस्पतालों पर सख्त टिप्पणीः कहा- मरीजों को ATM मशीन समझ रखे हैं नर्सिंग होम

by Sanjay Kumar Srivastava
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Allahabad High Court

न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आजकल नर्सिंग होम और निजी अस्पतालों के लिए अपर्याप्त डॉक्टरों या बुनियादी ढांचे न होने के बावजूद मरीजों को इलाज के लिए लुभाना आम बात है.

Prayagraj: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मरीजों के साथ “गिनी पिग या एटीएम मशीन” जैसा व्यवहार किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है. हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला की मौत पर उसके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई के खिलाफ डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी. न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आजकल नर्सिंग होम और अस्पतालों के लिए अपर्याप्त डॉक्टरों या बुनियादी ढांचे न होने के बावजूद मरीजों को इलाज के लिए लुभाना आम बात है. अदालत ने कहा कि चिकित्सा सुविधाओं ने “पैसे ऐंठने के लिए मरीजों के साथ गिनी पिग/एटीएम मशीन जैसा व्यवहार करना” शुरू कर दिया है. इसलिए अदालत ने नर्सिंग होम के मालिक डॉ. अशोक कुमार राय की याचिका खारिज कर दी, जिसने एक गर्भवती महिला को प्रसव और सर्जरी के लिए भर्ती किया था.

हाईकोर्ट ने डॉक्टर की याचिका की खारिज

इस दौरान इलाज के लिए एनेस्थेटिस्ट नर्सिंग होम में देर से पहुंचा, जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण की मृत्यु हो गई और परिवार को शारीरिक व मानसिक आघात पहुंचा, साथ ही आर्थिक नुकसान भी हुआ. डॉक्टर इस मामले में अपने खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को चुनौती दे रहे थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी और कहा कि चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा होनी चाहिए, लेकिन उन लोगों की नहीं जो बिना उचित सुविधाओं, बुनियादी ढांचे या बिना डॉक्टरों के नर्सिंग होम चला रहे हैं और केवल मरीजों को लूट रहे हैं. रिकॉर्ड देखने के बाद अदालत ने पाया कि यह मामला पूरी तरह से एक दुर्घटना का था, जहां डॉक्टर ने मरीज़ को भर्ती किया और परिवार के सदस्यों से ऑपरेशन की अनुमति लेने के बाद एनेस्थेटिस्ट की अनुपलब्धता के कारण समय पर ऑपरेशन नहीं किया.

लापरवाही के लिए डॉक्टर को ठहराया जिम्मेदार

अदालत ने पाया कि यह डॉक्टर के अयोग्य होने का मामला नहीं है, बल्कि यह है कि क्या उन्होंने समय पर चिकित्सा प्रदान करने में उचित सावधानी बरती या लापरवाही बरती. हाईकोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि सहमति लगभग 12 बजे ली गई थी, लेकिन ऑपरेशन लगभग 5:30 बजे किया गया. अगर सहमति लगभग 12 बजे दी गई थी, तो ऑपरेशन लगभग 4/5 बजे क्यों किया गया? डॉक्टर/नर्सिंग होम/अस्पताल की ओर से देरी का कोई औचित्य नहीं है. ऐसी लापरवाही के लिए केवल डॉक्टर/आवेदक ही ज़िम्मेदार हो सकते हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला उन निजी अस्पतालों के लिए एक सख्त संदेश है, जो समय पर इलाज की बजाए मरीजों से पैसा वसूलने में लगे रहते हैं, मरीजों के परिजन भी इलाज के लिए मकान और खेत तक बेचने को मजबूर हो जाते हैं.

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