Home Religious Aja Ekadashi 2025: जो खोया वह जरूर मिलेगा, जानें राजा हरिश्चंद्र की पावन कथा, व्रत का महत्व और शुभ फल

Aja Ekadashi 2025: जो खोया वह जरूर मिलेगा, जानें राजा हरिश्चंद्र की पावन कथा, व्रत का महत्व और शुभ फल

by Jiya Kaushik
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Aja Ekadashi 2025:अजा एकादशी व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह जीवन में आशा, पुनः प्राप्ति और ईश्वर की कृपा का प्रतीक है.

Aja Ekadashi 2025: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से जीवन की सभी कठिनाइयां दूर हो जाती हैं और खोया हुआ सौभाग्य व संपत्ति पुनः प्राप्त होती है. इसीलिए अजा एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला और कल्याणकारी माना गया है. इसकी कथा से स्पष्ट होता है कि यदि श्रद्धा और नियम से व्रत किया जाए तो जीवन की हर कठिनाई समाप्त हो सकती है और खोया हुआ सुख फिर से लौट सकता है.

अजा एकादशी 2025 की तिथि और पारण समय

पंचांग के अनुसार इस बार अजा एकादशी व्रत की तिथि 19 अगस्त 2025 (मंगलवार) को है.

  • एकादशी प्रारंभ: 18 अगस्त, शाम 05:22 बजे
  • एकादशी समाप्त: 19 अगस्त, दोपहर 03:32 बजे
  • पारण का समय: 20 अगस्त, सुबह 05:53 से 08:29 बजे तक

अजा एकादशी का महत्व

अजा एकादशी व्रत को करने से पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है. खास मान्यता यह भी है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को खोया हुआ वैभव, परिवार और सौभाग्य दोबारा मिल सकता है. यही कारण है कि इस दिन राजा हरिश्चंद्र की कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है.

अजा एकादशी व्रत कथा क्या है

प्राचीन समय में सत्य और धर्म के प्रतीक राजा हरिश्चंद्र ने अपना सब कुछ खो दिया था. राजपाट, परिवार और वैभव छिन गया और वे एक चांडाल के दास बन गए. एक दिन गौतम ऋषि ने उन्हें अजा एकादशी का व्रत करने का उपदेश दिया. ऋषि के बताए अनुसार हरिश्चंद्र ने विधिपूर्वक व्रत रखा और भगवान विष्णु की भक्ति की. व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए और उन्हें परिवार व राज्य पुनः प्राप्त हुआ. मृत्यु के बाद वे विष्णु लोक को प्राप्त हुए. इसीलिए कहा जाता है, अजा एकादशी व्रत से व्यक्ति को खोया हुआ सौभाग्य और सुख अवश्य लौटता है.

अजा एकादशी व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह जीवन में आशा, पुनः प्राप्ति और ईश्वर की कृपा का प्रतीक है. राजा हरिश्चंद्र की कथा से स्पष्ट होता है कि यदि श्रद्धा और नियम से व्रत किया जाए तो जीवन की हर कठिनाई समाप्त हो सकती है और खोया हुआ सुख फिर से लौट सकता है.

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