Dev Diwali Significance: देव दिवाली का त्यौहार हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं.
4 November, 2025
Dev Diwali Significance: देव दिवाली का त्यौहार हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है. काशी में देव दिवाली पर अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है. इस दिन काशी नगरी दीपों से जगमगाती है. दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और राजेंद्र प्रसाद घाट पर एक साथ लाखों दीप जलाए जाते हैं. गंगा आरती, भजन, शंखनाद और पटाखे पूरे वातावरण को भक्ति से भर देते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं, इसलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है. इसकी पौराणिक कथा भगवान शिव और राक्षस त्रिपुरासुर से जुड़ी है.
देव दिवाली की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत में तारकासुर नामक राक्षस के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. ये तीनों मिलकर त्रिपुरासुर के नाम से जाने जाते थे. जब भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया, तो उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का निर्णय लिया. उन्होंने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और वरदान मांगा कि उनकी मृत्यु केवल अत्यंत कठिन परिस्थितियों में ही हो जब तीनों तारे एक सीध में हों, अभिजित नक्षत्र उपस्थित हो, और जब कोई उन्हें एक ही बाण से मार डाले. ब्रह्मा ने उन्हें यह वरदान दिया.

इसके बाद, तीनों राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया. परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास मदद के लिए गए. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया. उन्होंने पृथ्वी को अपना रथ, सूर्य और चंद्रमा को अपने पहिये, मेरु पर्वत को अपना धनुष और वासुकि नाग को अपनी डोर बनाया और भगवान विष्णु को अपना बाण बनाकर, भगवान शिव ने एक ही बाण से त्रिपुरासुर का वध कर दिया.
देवताओं ने मनाई दिवाली
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था. इस उपलक्ष्य में, देवताओं ने काशी में दीप जलाकर दिवाली मनाई. तभी से इस दिन को देव दिवाली कहा जाता है. त्रिपुरासुर के वध के कारण भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है और इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
देव दिवाली पर धार्मिक मान्यताएं
देव दिवाली पर गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से गंगा स्नान के लिए उतरते हैं. इस दिन गंगा स्नान करने से देवताओं के समान पुण्य प्राप्त होते हैं और सभी पाप धुल जाते हैं. इस दिन लोग दीपदान करते हैं और भगवान शिव और मां गंगा की पूजा करते हैं. इस दिन मंदिरों में भजन कीर्तन होता है.
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