Home Latest News & Updates उत्तराखंड के बागेश्वर में बार-बार क्यों आ रही आपदा, राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी गई रिपोर्ट, सामने आई ये वजह

उत्तराखंड के बागेश्वर में बार-बार क्यों आ रही आपदा, राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी गई रिपोर्ट, सामने आई ये वजह

by Sanjay Kumar Srivastava
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Bageshwar

बागेश्वर के कई गांवों के घरों में दरारें, सूखते झरने, भूस्खलन और फसल के नुकसान को देखते हुए यह रिपोर्ट तैयार की गई.

New Delhi: बागेश्वर में बार-बार आ रही आपदाओं का कारण जानने के लिए सरकार ने पैनल नियुक्त किया था. तमाम जांच के बाद पैनल ने चेतावनी दी है कि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में अवैज्ञानिक खनन ही आपदाओं के लिए जिमेमदार है. गांवों और कृषि को भी खतरे में डाल रहा है. इसके अलावा नाजुक हिमालयी क्षेत्र में जल स्रोतों को भी बाधित कर रहा है. पैनल ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण को 30 जुलाई को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. रिपोर्ट में कहा गया है कि जोखिमों को कम करने के लिए खनन में व्यापक सुधार की आवश्यकता है. बागेश्वर के कई गांवों के घरों में दरारें, सूखते झरने, भूस्खलन और फसल के नुकसान को देखते हुए यह रिपोर्ट तैयार की गई. बागेश्वर, विशेष रूप से कांडा-कन्याल घाटी क्षेत्र, भारत में सोपस्टोन के कुछ सबसे समृद्ध भंडारों के लिए जाना जाता है. यह एक नरम रूपांतरित चट्टान है जिसका व्यापक रूप से कागज़, पेंट, सौंदर्य प्रसाधनों और निर्माण में उपयोग किया जाता है.

61 खदानों की हुई जांच

बागेश्वर के निवासियों ने यह आरोप लगाया था कि जिले में पर्यावरणीय सुरक्षा की परवाह किए बिना खनन किया जा रहा है. इस पर भूविज्ञान और खनन विभाग, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, उत्तराखंड भूस्खलन शमन और प्रबंधन केंद्र व भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के विशेषज्ञों ने कांडा, बागेश्वर और दुगनाकुरी तहसीलों में 61 खदानों की जांच की. रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश खदानों ने खड़ी कटाई के माध्यम से प्राकृतिक ढलानों को बदल दिया है और उचित बेंचों की कमी है, जिससे इलाका भूस्खलन और चट्टानों के गिरने के लिए अत्यधिक संवेदनशील हो गया है. टीम ने कई जगहों पर दरारें, जमीन का धंसना और चट्टानों का खिसकना देखा. कई पट्टे गांवों, कृषि भूमि और जल स्रोतों के साथ ओवरलैप होते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को सीधे तौर पर खतरा है.

भूकंपीय क्षेत्र V में स्थित है बागेश्वर

समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बागेश्वर भूकंपीय क्षेत्र V में स्थित है, जो देश के सबसे अधिक भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में से एक है. ऐसे क्षेत्रों में खनन गतिविधियों को यदि वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित नहीं किया गया, तो भू-अस्थिरता बढ़ सकती है. विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि वर्तमान निगरानी प्रणाली अपर्याप्त है और समय के साथ ढलान में कैसे बदलाव आए हैं, इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. उपग्रह विश्लेषणों ने कई खदानों के आसपास भूमि विरूपण का भी संकेत दिया है, जिससे आगे भू-धंसाव के जोखिम की पुष्टि होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि खनन ने जल निकासी के तरीकों को बाधित किया है, जिससे भूजल का “क्षरण और प्रदूषण” हुआ है. स्थानीय पेयजल और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण झरने, कई प्रभावित गांवों में सूख गए हैं या उनका प्रवाह कम हो गया है. समिति ने यह भी पाया कि खनन-मुक्त क्षेत्रों में पुनर्ग्रहण के प्रयास ज़्यादातर सतही थे और दीर्घकालिक ढलान स्थिरता या पारिस्थितिक बहाली सुनिश्चित करने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए थे.

वैज्ञानिक तरीके से हो खनन कार्य

विशेषज्ञ पैनल ने सिफारिश की है कि जिले में सभी खनन कार्य सख्त वैज्ञानिक तरीके से हो. इसने सूक्ष्म भूकंपों पर नजर रखने के लिए एक स्थानीय भूकंपीय नेटवर्क की स्थापना, ज़मीन की विकृति का पता लगाने के लिए उपग्रह-आधारित एसएआर तकनीक की तैनाती और सभी मौजूदा और प्रस्तावित खदानों के लिए अनिवार्य ढलान स्थिरता विश्लेषण का प्रस्ताव रखा. इसने कहा कि इस तरह के विश्लेषणों की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिष्ठित शैक्षणिक और शोध संस्थानों द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए. पैनल ने अतिक्रमणों को रोकने और जोखिम-ग्रस्त क्षेत्रों को बेहतर ढंग से ट्रैक करने के लिए सभी पट्टा सीमाओं का एक भू-संदर्भित डेटाबेस बनाने का आग्रह किया. इसने राज्य से गांवों, जल स्रोतों या कृषि भूमि के साथ ओवरलैपिंग पट्टों का पुनर्मूल्यांकन करने को कहा.

एक्वीफर मैपिंग की सिफारिश

भूजल भंडार पर खनन के दीर्घकालिक प्रभाव को समझने के लिए एक्वीफर मैपिंग की सिफारिश की गई थी. समिति ने ढलानों को स्थिर करने के लिए नियंत्रित विस्फोट, उचित जल निकासी प्रबंधन और इंजीनियरिंग उपायों सहित टिकाऊ खनन प्रथाओं को अपनाने पर जोर दिया. खनन योजनाओं और पर्यावरण मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से क्षेत्रीय निरीक्षण किया जाना चाहिए. पैनल ने कहा कि नदी तल पर खनन, यदि निर्धारित सीमा के भीतर किया जाए, तो भूकंपीय स्थिरता के लिए खतरा पैदा नहीं करता है.

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