Ayodhya dispute: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित वह धार्मिक स्थल, जहां 1992 में बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था.इस घटना ने भारत के राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य को बदल दिया.
Ayodhya dispute: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित वह धार्मिक स्थल, जहां 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था. वर्षों से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद का केंद्र रहा है. आइए इसके इतिहास पर डालते हैं एक नजर…
1528: हिंदुओं का यह मानना था कि उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया है, जहां हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक, भगवान राम का जन्म हुआ था.
1853: पूजा को लेकर पहली बार उस स्थल पर दो समुदायों के बीच झगड़े की नौबत आई.
1859: ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने पूजा स्थलों को अलग करने के लिए एक बाड़ लगाई, जिससे आंतरिक परिसर का उपयोग मुसलमानों द्वारा और बाहरी परिसर का उपयोग हिंदुओं द्वारा किया जा सके.
1949: मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां दिखाई दीं. इसका मुसलमानों ने विरोध किया. दोनों पक्षों ने दीवानी मुकदमा दायर किया. सरकार ने परिसर को विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया और द्वार बंद कर दिए.
1984: रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा हिंदुओं ने दिया. हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थान को मुक्त कराने और उनके सम्मान में मंदिर बनाने के लिए एक समिति का गठन किया, जिसका नेतृत्व विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने किया.तत्कालीन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अभियान का नेतृत्व संभाला.
1986: फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति देने के लिए विवादित मस्जिद के द्वार खोलने का आदेश दिया. मुसलमानों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
1989: विहिप ने अभियान तेज किया और विवादित मस्जिद से सटी जमीन पर राम मंदिर की नींव रखी.
1990: विहिप के कार्यकर्ताओं ने मस्जिद को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के ज़रिए विवाद सुलझाने की कोशिश की, जो नाकाम रही.
1991: भाजपा उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई. इसके बाद राम मंदिर आंदोलन और तेज हो गया.
1992: विहिप, शिवसेना और भाजपा के समर्थकों ने मस्जिद को गिरा दिया, जिससे देश भर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे. जिसमें 1,500 से ज़्यादा लोग मारे गए.
1998: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई.
2001: मस्जिद के विध्वंस की बरसी पर तनाव बढ़ा. विहिप ने उस जगह पर फिर से हिंदू मंदिर बनाने का संकल्प लिया.
जनवरी 2002: श्री वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या प्रकोष्ठ की स्थापना की. हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को नियुक्त किया.
फरवरी 2002: भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में मंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्धता जताने से इनकार किया. विहिप ने निर्माण शुरू करने के लिए 15 मार्च की समय सीमा तय की. सैकड़ों स्वयंसेवक मौके पर जमा हुए. गोधरा में अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही एक ट्रेन पर हुए हमले में कम से कम 58 लोग मारे गए.
मार्च 2002: ट्रेन हमले के बाद गुजरात में हुए दंगों में करीब 1,000 लोग मारे गए.
अप्रैल 2002: उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों ने धार्मिक स्थल के मालिकाना हक के निर्धारण के लिए सुनवाई शुरू की.
जनवरी 2003: पुरातत्वविदों ने अदालत के आदेश पर सर्वेक्षण शुरू किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि उस स्थान पर भगवान राम का मंदिर था या नहीं.
अगस्त 2003: सर्वेक्षण में कहा गया कि मस्जिद के नीचे एक मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं, लेकिन मुसलमानों ने इस निष्कर्ष पर विवाद किया. श्री वाजपेयी ने हिंदू कार्यकर्ता रामचंद्र दास परमहंस के अंतिम संस्कार में कहा कि वह मरते हुए व्यक्ति की इच्छा पूरी करेंगे और अयोध्या में एक मंदिर बनवाएंगे. हालाकि, उन्हें उम्मीद है कि अदालतों और बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा.
सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला सुनाया कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस को उकसाने के लिए सात हिंदू नेताओं पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए, लेकिन श्री आडवाणी, जो 1992 में उस स्थल पर मौजूद थे, के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया.
अक्टूबर 2004: श्री आडवाणी ने कहा कि उनकी पार्टी अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए अब भी प्रतिबद्ध है.
नवंबर 2004: उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि मस्जिद के विध्वंस में श्री आडवाणी की भूमिका से उन्हें दोषमुक्त करने वाले पूर्व के आदेश की समीक्षा की जानी चाहिए.
जुलाई 2005: संदिग्ध आतंकवादियों ने विवादित स्थल पर हमला किया. विस्फोटकों से लदी एक जीप का इस्तेमाल करके परिसर की दीवार में छेद कर दिया. सुरक्षा बलों ने पांच लोगों को मार गिराया, जिनके बारे में उनका कहना था कि वे आतंकवादी हैं.
जून 2009: मस्जिद के विध्वंस से जुड़ी घटनाओं की जांच कर रहे लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच शुरू करने के 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.
नवंबर 2009: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित होने पर संसद में हंगामा मच गया. इसमें हिंदू राष्ट्रवादी भाजपा के प्रमुख नेताओं को मस्जिद के विध्वंस में भूमिका के लिए दोषी ठहराया गया.
सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि स्थल को विभाजित किया जाना चाहिए, जिसमें मुस्लिम समुदाय को एक तिहाई, हिंदुओं को एक तिहाई और शेष निर्मोही अखाड़ा संप्रदाय को दिया जाएगा. मुख्य विवादित भाग, जहां मस्जिद गिराई गई थी, का नियंत्रण हिंदुओं को दिया गया. मुस्लिम समुदाय के एक वकील ने कहा कि वह अपील करेंगे.
मई 2011: हिंदू और मुस्लिम समूहों द्वारा 2010 के फैसले के खिलाफ अपील करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को स्थगित कर दिया.
2020 में विशेष अदालत ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि विध्वंस सुनियोजित नहीं था और अचानक हुआ था.