आई ड्रॉप, त्वचा क्रीम, इनहेलर, टैबलेट और इंजेक्शन के इस्तेमाल से अंतःनेत्र दबाव बढ़ सकता है, जिससे ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचता है.
New Delhi: एम्स दिल्ली में 10 वर्ष की आयु तक के बच्चों में ग्लूकोमा के मामले सामने आए हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इसका कारण नेत्र संबंधी उपचार के लिए बिना किसी देखरेख के स्टेरॉयड आधारित आई ड्रॉप का लंबे समय तक इस्तेमाल है. एम्स के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थाल्मिक साइंसेज में ग्लूकोमा इकाई के प्रभारी प्रोफेसर डॉ. तनुज दादा ने कहा कि स्टेरॉयड के किसी भी लंबे समय तक इस्तेमाल से ग्लूकोमा के कारण अंधापन हो सकता है.
त्वचा क्रीम, इनहेलर, टैबलेट और इंजेक्शन के इस्तेमाल से बढ़ता है आंखों पर दबाव
आई ड्रॉप, त्वचा क्रीम, इनहेलर, टैबलेट और इंजेक्शन जैसे विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किए जाने वाले स्टेरॉयड से अंतःनेत्र दबाव बढ़ सकता है, जिससे ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचता है. डॉ. दादा ने कहा कि बच्चों में ग्लूकोमा का पता न चल पाने का मुख्य कारण क्रोनिक एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के लिए स्टेरॉयड आई ड्रॉप का अप्रतिबंधित उपयोग है. एम्स आरपी सेंटर में हर महीने हमें राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों से 10-15 साल की उम्र के बच्चे स्टेरॉयड प्रेरित ग्लूकोमा से पीड़ित मिलते हैं. जब इन क्षेत्रों में बच्चों की आंखों में धूल और पराग के कारण लालिमा और जलन होती है, तो वे स्थानीय गांव के डॉक्टर के पास जाते हैं जो स्टेरॉयड आधारित आई ड्रॉप लिखते हैं जो कुछ समय के लिए लक्षणों को कम कर देते हैं. लेकिन जब लक्षण फिर से उभर आते हैं, तो वे फिर से वही आई ड्रॉप लेते हैं और बिना किसी निगरानी के उनका उपयोग करते रहते हैं जिससे ग्लूकोमा विकसित होता है.
10-15 साल के बच्चों में ग्लूकोमा होना गंभीर विषय
डॉ. दादा ने कहा कि चूंकि शुरुआत में ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं होते हैं, इसलिए ये बच्चे अक्सर बहुत उन्नत चरणों में गंभीर दृश्य हानि या यहां तक कि अंधेपन के साथ हमारे पास आते हैं. इसी तरह अस्थमा, फेफड़ों की पुरानी बीमारियों और एलर्जिक राइनाइटिस और साइनसाइटिस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इनहेलर से आंखों पर दबाव बढ़ सकता है और पहले से ही इस बीमारी से पीड़ित मरीजों में ग्लूकोमा भी बिगड़ सकता है. डॉ. दादा ने कहा कि ऐसे इनहेलर का अल्पकालिक उपयोग भी पहले से ही ग्लूकोमा से पीड़ित मरीजों के लिए विशेष रूप से खतरनाक है. उन्होंने कहा कि आम तौर पर वयस्कों में ग्लूकोमा 40 वर्ष की उम्र के बाद होता है. लेकिन 10-15 साल की उम्र के बच्चों में ग्लूकोमा होना गंभीर विषय है.
योग्य डॉक्टर के पर्चे के बिना न करें आई ड्रॉप का उपयोग
दिल्ली के आर एंड आर अस्पताल में नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर और प्रमुख ब्रिगेडियर डॉ संजय के मिश्रा ने गोरी त्वचा पाने के लिए त्वचा संबंधी स्टेरॉयड क्रीम के इस्तेमाल और एथलीटों के बीच मांसपेशियों के निर्माण के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी दी है. क्योंकि इससे बहुत गंभीर प्रकार का ग्लूकोमा हो सकता है. डॉ मिश्रा ने कहा कि चेहरे और आंखों के आसपास इस्तेमाल की जाने वाली स्टेरॉयड युक्त क्रीम ग्लूकोमा का कारण बन सकती हैं. लोगों को बहुत सावधान रहना चाहिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि स्टेरॉयड आधारित आई ड्रॉप और क्रीम का इस्तेमाल कभी भी योग्य डॉक्टर के पर्चे के बिना नहीं करना चाहिए.
पूरे भारत में एम्स जैसी सुविधाओं की जरूरत
आरपी सेंटर में सामुदायिक नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर और प्रभारी अधिकारी डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने देश भर में स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. डॉ. वशिष्ठ ने कहा कि ग्लूकोमा से पीड़ित अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें यह है. हमें प्राथमिक देखभाल स्तर पर अधिक जागरूकता और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि एम्स में 21 दृष्टि केन्द्र हैं, जो कृत्रिम बुद्धि आधारित ग्लूकोमा जांच परीक्षण उपलब्ध कराते हैं. उन्होंने पूरे भारत में ऐसी सुविधाओं के विस्तार पर जोर दिया. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ग्लूकोमा का शीघ्र पता लगाना और उपचार शुरू करना इस रोग से अंधेपन को रोकने की कुंजी है.
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